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नई दिल्ली। कोयले की महारत्न कंपनी-कोल इंडिया लिमिटेड ने समाप्त वित्त वर्ष  2011-12 के अवधि के दौरान 435.84 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया है, जो पिछले  वित्त वर्ष के कोयला उत्पादन से 4.52 मिलियन टन ज्यादा है और इसमें एक प्रतिशत की वृद्धि  हुई है। अब यह कंपनी 2012 में निर्धारित 470 मिलियन टन कोयला उत्पादन के लक्ष्य को  प्राप्त करने के लिए बेहतर प्रदर्शन को तैयार है। यह बात इस कंपनी के अध्यक्ष सह-प्रबंध  निदेशक जोहरा चटर्जी ने मंगलवार को नई दिल्ली में इस कंपनी के प्रदर्शन की समीक्षा  के दौरान कही। 
  उन्होंने कहा कि भारी  बारिश की वजह से अगस्त और सितंबर 2011 के महीने में इस कंपनी के कोयला उत्पादन में  क्रमश: 19 प्रतिशत और 16.9 प्रतिशत की गिरावट आई और वित्त वर्ष के अंत में इसमें सुधार  आया, जिससे उत्पादन  में एक प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। फरवरी 2012 में उत्पादन बढ़ा और पिछले वर्ष की तुलना  में इस दरम्यान 17 प्रतिशत रिकार्ड वृद्धि दर्ज की गई जो कोल इंडिया के समस्त दल के  तैयारियों की वजह से संभव हो सका। एक दिन का अधिकतम उत्पादन 2.03 मिलियन टन के रिकार्ड  स्तर पर पहुंच गया, जबकि कोयला  लदान एक दिन में 231 रेक के स्तर पर जा पहुंचा, जिससे ऊर्जा क्षेत्र में  संतोष का स्तर 94 प्रतिशत तक बनाए रखने में मदद मिली जो पिछले वर्ष की तुलना में 2  प्रतिशत ज्यादा है। कोयला उत्पादन और लदान मार्च के महीने में अब तक के किसी एक महीने  में सबसे ज्यादा रहा। 
  अल्पावधि एवं दीर्घावधि  में कोयला इंडिया लिमिटेड के उत्पादन, उत्पादकता और इसके संपूर्ण प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए बहुस्तरीय तरीके  अपनाए गए जिनमें से कुछ निम्नलिखित है-फरवरी और मार्च 2012 के महीने में गहन क्षेत्र  स्तर निगरानी प्रक्रिया अपनाई गई और क्षेत्र स्तर पर लक्ष्य को प्राप्त न करने की जवाबदेही  के साथ खननवार  निगरानी के लिए निर्देश भी जारी  किए गए। रेलवे बोर्ड  के अध्यक्ष के साथ बैठक भी की गई और फरवरी और मार्च 2012 के महीने में प्रतिदिन कम  से कम 10 से 12 रेकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गहन निगरानी की गई। इक्तीस मार्च 2012 को अब तक सबसे  ज्यादा रिकार्ड 231 रेक उपलब्ध कराए गए और साथ ही मार्च के महीने में अब तक का सबसे  ज्यादा औसतन प्रतिदिन 199 रेकों का लदान किया गया। सभी सहायक अनुसंगी कंपनियों को 2012-13 के लिए  विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के लिए दिशा निर्देश भी दिए गए। 
कोयले के तीव्र खनन को  सुविधाजनक बनाने के लिए एनसीएल के जयंत परियोजना के लिए सीएचपी की स्वीकृति 12 मार्च  2012 को हुए 279वें बोर्ड की बैठक में लिया गया। कोयले की बिक्री से संबंधित 3545 करोड़ रूपये  की बकायों की जल्द वसूली के लिए इस विषय को संबंधित राज्यों के ऊर्जा विभाग के सचिव, मुख्य सचिवों  के समक्ष उठाया गया। वित्त वर्ष  2011-12 के दौरान सीआईएल के प्रदर्शन के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-वित्त वर्ष  2011-12 के दौरान कच्चे कोयले का उत्पादन वित्त वर्ष 2010-11 के 431.32 मिलियन टन की  तुलना में 435.84 मिलियन टन रहा, जिसमें एक प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 4.52 मिलियन टन उत्पादन बढ़ा। माह-वार उत्पादन के विश्लेषण  को देखते हुए यह पता चलता है कि जुलाई 2011 तक कंपनी ने 1.4 प्रतिशत की समग्र वृद्धि  दर को बनाए रखा था, हालांकि अगस्त  एवं सितंबर, 2011 के महीने  में लगभग सभी कोल फील्ड में भारी बारिश की वजह से कोयला उत्पादन पर असर पड़ा, जिससे इस  दौरान इसके उत्पादन में क्रमश: 19 प्रतिशत और 16.9 प्रतिशत की गिरावट आई। 
ऋणात्मक वृद्धि का दौर  अक्तूबर, 2011 के महीने  में भी जारी रहा जो ऋणात्मक 8.4 प्रतिशत था, लेकिन सीआईएल टीम के समन्वित  प्रयास और केन्द्रित रणनीति की वजह से समग्र ऋणात्मक वृद्धि जनवरी, 2012 तक 1.6 प्रतिशत के  स्तर पर आ गया और यह फरवरी के महीने में पुन: सकारात्मक वृद्धि को बनाए रखने में सफल  रहा और इस दौरान उत्पादन में 17 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। यह प्रयास मार्च, 2012 में भी जारी रहा, जिसकी वजह  से मार्च 2011 के 50.71 मिलियन टन कोयला उत्पादन की तुलना में कुल उत्पादन 54.14 मिलियन  टन रहा। इस दौरान इसमें 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। एसईसीएल और एमसीएल नामक दो अनुसंगी कंपनियों  का योगदान भी सराहनीय रहा। इन कंपनियों ने भारी बारिश के बाद अब तक का सबसे ज्यादा  उत्पादन क्रमश: 113.84 मिलियन टन और 103.12 मिलियन टन किया। 
वित्त वर्ष 2011-12 की अवधि के दौरान कच्चे कोयले का लदान में वृद्धि जारी रही, जो अब तक के रिकार्ड 432.53 मिलियन टन के स्तर पर पहुंच  गया। यह वृद्धि पिछले वर्ष प्राप्त उच्च 424.50 मिलियन टन से भी ज्यादा रहा और इस कारण  इसमें 1.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। जहां तक  एएपी लक्ष्य का संबंध है, यह  96.6 प्रतिशत प्राप्त किया गया। फरवरी, 2012 में  रेकों का लदान सर्वकालिक उच्च रहा। इनका औसत 196.6 रेक प्रतिदिन के हिसाब से लदान किया  गया और मार्च, 2012 में  यह 198.9 रेक प्रतिदिन था, जबकि पिछले  वर्ष के इस महीने में यह औसत क्रमश: 168.1 रेक प्रतिदिन और 179.6 रेक प्रतिदिन रहा  था। एएपी लक्ष्य  से मुख्य अंतर ईसीएल, सीसीएल, एमसीएल और एनसीएल में देखा गया। खाली वैगनों की पर्याप्त  आपूर्ति न होने के कारण ईसीएल, सीसीएल  और एमसीएल की लदान क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सका। सीसीएल ने ओबीआर में एएपी लक्ष्य को पार कर लिया। उसका विकास 5.0 प्रतिशत रहा और  ओबीआर में सर्वाधिक विकास एनसीएल में 15.7 प्रतिशत देखा गया। उसके बाद ईसीएल का विकास  7.3 प्रतिशत और डब्ल्यूसीएल का 5.8 प्रतिशत पाया गया।