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'जनसत्ता के प्रभाष जोशी' पुस्तक का लोकार्पण

आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने किया है पुस्तक का संपादन

पत्रकारिता एवं अकादमिक क्षेत्र की हस्तियों ने किया लोकार्पण व परिचर्चा

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Friday 17 October 2025 04:33:35 PM

launch of the book 'prabhas joshi of jansatta'

नई दिल्ली। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कला निधि प्रभाग ने ‘जनसत्ता के प्रभाष जोशी’ पुस्तक का लोकार्पण और उसपर परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया। पुस्तक का संपादन वरिष्ठ पत्रकार लेखक और आईजीएनसीए के अध्यक्ष पद्मभूषण रामबहादुर राय ने किया है। रामबहादुर राय ने इस अवसर पर कहाकि यह पुस्तक प्रभाष जोशी को पुनः स्मरण करने केलिए लिखी गई है, इसका उद्देश्य नई पीढ़ी को उन्हें जानने, पहचानने और समझने में सक्षम बनाना है। उन्होंने कहाकि प्रभाष जोशी एकमात्र ऐसे हिंदी संपादक थे, जिन्होंने एक अंग्रेजी अख़बार भी निकाला, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस का चंडीगढ़ संस्करण और फिर जनसत्ता शुरू किया।
रामबहादुर राय ने कहाकि प्रभाष जोशी का व्यक्तित्व अत्यंत महान था, उन्होंने अपने सहयोगियों केप्रति कभी द्वेष नहीं रखा, उन्हें पूरी स्वतंत्रता दी, उनके जीवन में निरंतरता थी और हम उस निरंतरता को कैसे समझते हैं, यह हमपर निर्भर करता है। रामबहादुर राय ने कहाकि प्रभाष जोशी ने जो कुछभी लिखा, उसे प्रतिक्रिया में नहीं, बल्कि पूरे विश्वास केसाथ लिखा। रामबहादुर राय ने कहाकि उन्होंने सफलता की नहीं, सार्थकता की खोज की, उनकी आजभी ज़रूरत है और हमेशा रहेगी। लेखक एवं पत्रकार बनवारी ने कहाकि प्रभाष जोशी एक असाधारण व्यक्तित्व थे, इसलिए उनपर प्रकाशित पुस्तक का भी असाधारण होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहाकि यह पुस्तक जोशी का एक अंतरंग संस्मरण है। बनवारी ने पत्रकारिता से परे प्रभाष जोशी के जीवन के रोचक पहलुओं पर बात की। उन्होंने कहाकि उनके जीवन और लेखन में निरंतरता है और उनके लेखन के किसी एक विशेष कालखंड के आधार पर उनका मूल्यांकन करना अनुचित होगा।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि इस पुस्तक में प्रभाष जोशी के विविध आयामों और उनकी पत्रकारिता के विविध पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने कहाकि आज जिस तरह की पत्रकारिता और संपादक हम देखते हैं, उसे देखते हुए प्रभाष जोशी के बारेमें जानना किसी परीकथा जैसा लगता है। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि लोग पूछेंगेकि क्या ऐसे संपादक भी होते थे? प्रभाष जोशी ने राग-द्वेष की सारी भावनाओं को एक तरफ रखकर एक पत्रकार के रूपमें अपना कर्तव्य निभाया। उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री एवं भारत सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ अशोक वाजपेयी ने प्रभाष जोशी की असाधारण पत्रकारिता पर कहाकि प्रभाष जोशी के स्थान को रेखांकित करने केलिए कोईभी चर्चा पर्याप्त नहीं होगी। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के डीन (प्रशासन) प्रोफेसर रमेशचंद्र गौड़ ने कहाकि यह पुस्तक पत्रकारिता जगत के शिखर पुरुष प्रभाष जोशी पर केंद्रित है।
वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक राहुल देव ने भी परिचर्चा में अपने विचार साझा किए। पुस्तक परिचर्चा सत्र में किताबों केप्रति जनता की रुचि और प्रभाष जोशी के पत्रकारिता दृष्टिकोण की प्रासंगिकता पर सार्थक चर्चा हुई। वक्ताओं ने उद्गार व्यक्त करते हुए कहाकि प्रभाष जोशी भारतीय पत्रकारिता के उस युग के प्रतीक हैं, जब कलम विचारों और मूल्यों, दोनों के माध्यम के रूपमें कार्य करती थी, उनकी पत्रकारिता ने भारतीय समाज में लोकसत्ता की एक सुदृढ़ परंपरा स्थापित की। पुस्तक लोकार्पण एवं परिचर्चा कार्यक्रम में पत्रकारिता जगत और अकादमिक क्षेत्र की प्रतिष्ठित हस्तियों ने सहभागिता की। मनोज मिश्र ने कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम आईजीएनसीए के समवेत सभागार में हुआ, जिसमें दिल्ली सहित देशभर से वरिष्ठ पत्रकारों, विद्वानों और छात्रों ने भाग लिया।

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