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Tuesday 30 September 2025 06:28:18 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा हैकि देश में गन्ने पर रिसर्च केलिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) में एक अलग टीम बनाई जाए, जो यह देखेकि गन्ने की पॉलिसी कैसी होनी चाहिए, व्यावहारिक समस्याओं पर गौर करे, किसान और इंडस्ट्री की मांगों के अनुरूप रिसर्च करे, क्योंकि जिस रिसर्च का किसान को फायदा नहीं, उसका कोई मतलब नहीं। कृषिमंत्री देश में गन्ने की अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय परामर्श सत्र को संबोधित कर रहे थे। यह परामर्श सत्र नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूसा कैम्पस में मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस और नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के सहयोग से आयोजित किया गया। शिवराज चौहान ने बतायाकि गन्ने की 238 वैरायटी में चीनी की मात्रा अच्छी निकली है, लेकिन इसमें रेड रॉट की समस्या आ रही है। उन्होंने अनुसंधानकर्ताओं से कहाकि हमें सोचना पड़ेगाकि एक वैरायटी कितने साल चलेगी, हमें साथ-साथ दूसरी वैरायटी पर भी काम करना पड़ेगा।
कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहाकि फसल की नई वैरायटी आती है तो रोग भी आते हैं, मोनोक्रॉपिंग अनेक रोगों को निमंत्रण देती है, इससे नाइट्रोजन फिक्सेशन की समस्या भी उपजती है। उन्होंने कहाकि यह देखा जाना चाहिएकि मोनोक्रॉपिंग की जगह इंटरक्रॉपिंग कितनी व्यावहारिक है। उन्होंने अनुसंधानकर्ताओं से कहाकि समस्याओं से हम परिचित हैं, हमें उत्पादन बढ़ाना है, मैकेनाइजेशन की जरूरत है, यहभी देखना हैकि लागत कैसे घटाएं? चीनी की रिकवरी ज्यादा कैसे हो? पानी के इस्तेमाल का भी सवाल है? पानी की आवश्यकता को हम कैसे कम कर सकते हैं? इसके लिए ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ सोच होनी जरूरी है, इसके साथ यहभी देखना हैकि किसान उतना खर्च करेगा कैसे, क्योंकि ड्रिप बिछाने केलिए पैसे चाहिए। उन्होंने कहाकि बायो प्रोडक्ट और ज्यादा कैसे उपयोगी हो सकते हैं इसपर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहाकि एथेनॉल का अपना महत्व है, मोलासेस की अपनी उपयोगिता है, इनसे कौन से अन्य प्रोडक्ट बन सकते हैं, जिनसे किसानों का लाभ हो और उनकी आय बढ़े।
शिवराज चौहान ने कहाकि यहभी देखा जाना चाहिएकि क्या प्राकृतिक खेती फर्टिलाइजर की समस्या में सहायक हो सकती है, वैल्यू चेन एक बड़ा सवाल है, इसे लेकर किसानों की शिकायत व्यवहारिक है। शिवराज चौहान ने जिक्र कियाकि चीनी मिलों की अपनी समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन किसानों को गन्ने के भुगतान में देरी होती है, मजदूरी की भी समस्या है, आजकल श्रमिक आसानी से नहीं मिलते। उन्होंने कहाकि यह देखना चाहिएकि क्या हम ट्रेनिंग देकर कैपेसिटी बिल्डिंग का कामकर सकते हैं, मैकेनाइजेशन डिवीजन भी इसपर सोचेकि कम मेहनत से कैसे गन्ने की कटाई की जा सकता है। सेमिनार में आईसीएआर महानिदेशक और डेयर सचिव डॉ एमएल जाट ने रिसर्च केलिए चार प्रमुख फोकस बताए, पहला रिसर्च में क्या फोकस करना है, दूसरा रिसर्च आगे लेजाने केलिए क्या डेवलपमेंटल मुद्दे हैं, तीसरा इंडस्ट्री से संबंधित क्या मुद्दे हैं और चौथा पॉलिसी से संबंधित क्या कदम उठाए जाने चाहिएं।
डॉ एमएल जाट ने कहाकि गन्ने में पानी का काफी उपयोग होता है, फर्टिलाइजर काभी काफी इस्तेमाल होता है, पानी की समस्या दूर करने केलिए कई अनुसंधान हुए हैं। उन्होंने कहाकि महाराष्ट्र की तरह अन्य जगहों पर भी गन्ने में माइक्रो इरिगेशन हो तो पानी की बचत होगी। उन्होंने कहाकि जिस तरीके से फर्टिलाइजर का इस्तेमाल हो रहा है, वह ठीक नहीं है, उर्वरकों की एफिशिएंसी बढ़ाना जरूरी है। उन्होंने कहाकि मोनोक्रॉपिंग दूर करने केलिए विविधीकरण आवश्यक है और सुझायाकि गन्ने केसाथ इंटरक्रॉपिंग में दलहन और तिलहन का प्रयोग किया जा सकता है, इंटरक्रॉपिंग से किसानों की आमदनी बढ़ेगी और सस्टेनेबिलिटी को बढ़ावा मिलेगा। गन्ने की अर्थव्यवस्था पर राष्ट्रीय परामर्श सत्र में आईसीएआर में क्रॉप साइंस के उप महानिदेशक डॉ देवेंद्र कुमार यादव, आईसीएआर में डीडीजी एक्सटेंशन डॉ राजबीर सिंह और गन्ना किसान भी उपस्थित थे।