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वेशभूषा किरदारों को परिभाषित करती है-लखानी

'वेशभूषा और चरित्र निर्माण: सिनेमा के ट्रेंडसेटर' पर मास्टरक्लास

इफ्फी में साझा किया कॉस्ट्यूम डिज़ाइन का सिनेमाई सफ़र

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 27 November 2025 01:22:19 PM

costume designer eka lakhani and film producer jayaprad desai

पणजी। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में 'वेशभूषा और चरित्र निर्माण: सिनेमा के ट्रेंडसेटर' शीर्षक से मास्टरक्लास में इसबात पर चर्चा की गईकि कैसे परिधान महज़ पात्रों को ही नहीं सजाते, बल्कि खामोशी से उनकी कहानियों को आकार देते हैं, उन्हें दिशा देते हैं और कभी-कभी तो उन्हें नए शब्दों में बयां करते हैं। मशहूर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर एका लखानी और फिल्म निर्माता जयप्रद देसाई के सफर में दर्शकों को पर्दे के पीछे की उस दुनिया में जाने का एक अनूठा अवसर मिला, जहां परिधान और फिल्म निर्माण का मिलन होता है। जयप्रद देसाई ने एक साधारण सी सच्चाई बताकर माहौल तैयार कियाकि किसी पात्र के बोलने से पहले उसकी वेशभूषा बहुत कुछ कह चुकी होती है। एका लखानी ने अपने 15 साल के सफ़र का ज़िक्र किया, जो हाई फ़ैशन रनवे के सपनों से शुरू हुआ था, लेकिन आखिरकार सिनेमा के शोर, रंग और रचनात्मक उहापोह में बदल गया।
कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर एका लखानी ने मणिरत्नम की फिल्म 'रावण' के सेट पर सब्यसाची मुखर्जी केसाथ इंटर्नशिप करते हुए अपने शुरुआती दिनों को याद किया। उन्होंने कहाकि उन्हें लगता थाकि फ़ैशन का मतलब सुंदर कपड़े बनाना है, लेकिन रावण ने मुझे सिखायाकि सुंदरता भावनाओं केसाथ आती है। सब्यसाची केसाथ उन्होंने सीखाकि कैसे रंग एक फ्रेम में समा जाते हैं और कैसे कॉस्ट्यूम डिज़ाइन महज़ एक विभाग नहीं, बल्कि एक भाषा है। एका लखानी ने बतायाकि रावण में उनके काम ने सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन को प्रभावित किया, जिन्होंने उन्हें सिर्फ़ 23 साल की उम्र में 'उरुमी' फ़िल्म ऑफर की और उनका असली सफ़र यहीं से शुरू हुआ। एका लखानी ने बतायाकि मणिरत्नम जैसे फिल्म निर्माताओं केसाथ कभी-कभी लेखन केबीच में ही कॉस्ट्यूम पर काम होने लगता है। उन्होंने कहाकि मणिरत्नम सर उन्हें स्क्रिप्टिंग के चरण में शामिल करते हैं, जब वे समझती हैंकि कोई किरदार कैसे कपड़े पहनता है तो वे उस किरदार के व्यवहार के बारेमें ज़्यादा समझ पाते हैं।
एका लखानी ने कहाकि सिनेमा टीमवर्क है, मैं सबसे खूबसूरत पोशाक बनाने की कोशिश नहीं कर रही हूं, जो अभिनेता एवं अभिनेत्री को सहजता से किरदार में ढलने दे। उनकी कार्यप्रणाली में संदर्भों की खोज, विजुअल जर्नलिंग, विस्तृत नोट्स बनाना और अपनी टीम केसाथ बेहतर सहयोग प्रमुख है। उन्होंने उल्लेख कियाकि फिल्म पोन्नियिन सेल्वन केलिए मणिरत्नम ने उनको एकभी डिज़ाइन बनाने से पहले तंजावुर भेजा था, यह यात्रा उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, क्योंकि उन्होंने मंदिर की कांस्य मूर्तियों और रूपांकनों के ज़रिए चोल युग की भव्यता को गहराई से समझा, जिसने फिल्म के विजुअल की दुनिया को आकार दिया। फिर उन्होंने किरदारों के रूपरंग को कई हिस्सों में बांटा और सत्र को एक छोटे फिल्म स्कूल में बदल दिया। उन्होंने बतायाकि नंदिनी को मोह और शक्ति की भाषा में रचा गया था, उसकी वेशभूषा उसके चुंबकीय आकर्षण और शक्ति की भूख को दर्शाती है। दूसरी ओर कुंदवई शक्ति केसाथ जन्मी थी और उसका रूप उस सहज अधिकार को दर्शाता है-शांत और संयमित।
आदित्य करिकालन का रंगरूप उसकी आंतरिक उथल पुथल से प्रेरित था, उसका क्रोध, पीड़ा और भावनात्मक बेचैनी गहरे लाल और काले रंगों में दर्शाया गया। इसके उलट अरुलमोझी वर्मन की लोगों के शांत, प्रिय नेता के रूपमें कल्पना की गई, जिससे उसे शांत आइवरी और कोमल सुनहरे रंग पहनाए, जो उसकी स्पष्टता, करुणा और शांत कुलीनता को दर्शाते थे। एका लखानी ने बतायाकि कैसे एकही किरदार तारा को 'ओके कनमनी' और 'ओके जानू' में दो बिल्कुल अलग परिधानों की ज़रुरत पड़ी। उन्होंने बतायाकि दर्शकों की संवेदनशीलता परिधानों के चुनाव को प्रभावित करती है। उन्होंने श्रद्धा कपूर की अबतक की सबसे चर्चित 'हम्मा हम्मा' शॉर्ट्स को कुशन कवर बदलने से आखिरी समय में बदलने का एक मज़ेदार किस्सा साझा किया। 'संजू' पर काम करते वक्त एका लखानी ने ज़्यादा शोध आधारित नज़रिया अपनाया।
एका लखानी ने किरदार के लुक को एकसाथ ढालने में मदद केलिए मेकअप, हेयर टीम, प्रोडक्शन डिज़ाइनरों और फ़ोटोग्राफ़रों के निर्देशकों को श्रेय दिया। उन्होंने कहाकि डीओपी एक कस्टमर के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं, वे आपको बता देंगेकि कोई रंग स्क्रीन पर आपपर अच्छा लगेगा या नहीं। एका लखानी ने 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' का उदाहरण देते हुए अपनी बात खत्म की, जहां रॉकी का बदलता परिधान, उसके व्यक्तित्व के विकास को दर्शाता है। दर्शकों को रॉकी के लुक को समझने में बहुत मज़ा आया और उन्हें यहभी पता चलाकि वेशभूषा किसी किरदार को कैसे परिभाषित करती है। वेशभूषा महज़ एक दृश्य सजावट से कहीं बढ़कर है, वे कहानी कहने के साधन हैं, जो किरदारों में जान फूंकते हैं। एका लखानी की दुनिया में हर सिलाई का एक मकसद होता है और हर रंग का एक अर्थ होता है।

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