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इफ्फी में कला सहयोग और सिनेमा की स्मृतियां

पणजी में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की 'इन कन्वर्सेशन' वर्कशॉप

दिग्गज अभिनेत्रियों सुहासिनी मणिरत्नम और खुशबू सुंदर का जीवंत संवाद

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 22 November 2025 01:28:43 PM

actresses suhasini maniratnam and khushbu sundar

पणजी। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) के ‘इन कन्वर्सेशन’ वर्कशॉप सत्र ने कला अकादमी को एक ऐसे मंच में बदला, जहां कला, सहयोग और सिनेमा की स्मृतियां एकसाथ जुड़ गईं। ‘द ल्यूमिनरी आइकॉन्स: क्रिएटिव बॉन्ड्स एंड फियर्स परफॉर्मेंसेज़’ शीर्षक वाले सत्र में दिग्गज अभिनेत्रियां सुहासिनी मणिरत्नम और खुशबू सुंदर शामिल हुईं। दो ऐसी महिलाएं, जिन्होंने दशकों तक सिनेमा को जिया, समझा और आकार दिया है। इसलिए यह सत्र प्रदर्शन कला की स्थायी खूबसूरती पर एक विचारशील और जीवंत संवाद का मंच बना। कार्यक्रम की शुरुआत फिल्म निर्माता रवि कोट्टाराक्कारा ने वक्ताओं के गर्मजोशीभरे स्वागत से की और कुछही क्षणों में मंच जीवंत हो गया। इसमें हास्य, पुरानी यादें और ऐसी केमिस्ट्री थी, जो केवल दो अनुभवी कलाकार ही बना सकते हैं। सुहासिनी मणिरत्नम ने अपनी जानी पहचानी स्पष्टवादिता से शुरुआत करते हुए हंसकर उन शुरुआती दिनों का ज़िक्र किया, जब लोग इसपर शक करते थेकि उनका संबंध कमल हासन से है।
प्रशिक्षित सिनेमैटोग्राफ़र, जो लेंस और स्पॉटलाइट केबीच सहजता से बदलावकर लेती हैं, उन्होंने बातचीत के मूल में जाते हुए ख़ुशबू सुंदर से यह पूछकर शुरुआत कीकि आर्टहाउस और मुख्यधारा सिनेमा केप्रति उनका क्या दृष्टिकोण है। खुशबू सुंदर ने कहाकि वह ऐसा कोई फ़र्क नहीं करतीं, चाहे केजी जॉर्ज जैसे मशहूर पैरेलल सिनेमा डायरेक्टर केसाथ काम करना हो या पी वासु जैसे कमर्शियल फ़िल्ममेकर केसाथ वह हर प्रोजेक्ट में नरम मिट्टी की तरह जाती हैं, जो डायरेक्टर के विज़न को अपनाने केलिए तैयार रहती हैं। उन्होंने याद कियाकि कैसे निर्देशक भारती राजा ने एक तैराक और घुड़सवार के रूपमें उनके वास्तविक जीवन के कौशल को देखते हुए उन खूबियों को उजागर करने केलिए एक किरदार गढ़ा, जो निर्देशक और अभिनेता केबीच विश्वास का एक उदाहरण है। सुहासिनी मणिरत्नम ने बातचीत का रुख व्यावसायिक सिनेमा की अप्रत्याशित दुनिया की ओर मोड़ दिया। उन्होंने पूछाकि क्या खुशबू सुंदर को कभी कहानी सुनते समय हिट का अहसास हुआ है? इसपर खुशबू सुंदर ने अपनी ब्लॉकबस्टर फिल्म चिन्नाथम्बी का उदाहरण दिया, लेकिन अपने दिल के करीब फिल्मों जैसे कैप्टन मगल और जठी मल्ली के बारेमें भी खुलकर बात की, जिन्होंने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया।
सुहासिनी मणिरत्नम ने कहाकि हर अभिनेता एक सफल फिल्म की उम्मीद करता है, लेकिन बॉक्स ऑफिस की अप्रत्याशितता एक निरंतर समस्या बनी रहती है। सुहासिनी मणिरत्नम ने कहाकि अभिनेता अनिवार्य रूपसे अपने व्यक्तित्व के छोटे-छोटे हिस्से अपने किरदारों में ले आते हैं। उन्होंने कहाकि हर सीन महत्वपूर्ण होता है, हर दृश्य की शुरुआत ऐसे करें जैसे आप एक नई फिल्म शुरू कर रहे हों। खुशबू सुंदर ने बतायाकि उनकी प्रक्रिया अक्सर किरदार के रूप और शारीरिक बनावट की कल्पना से शुरू होती है और उन्होंने एक किस्सा साझा कियाकि निर्देशक की दृष्टि की प्रामाणिकता बनाए रखने केलिए उन्हें शॉट से पहले सारा मेकअप धोने केलिए कहा जाता था। दर्शकों में मौजूद उभरते हुए एक्टर्स केलिए सुहासिनी मणिरत्नम ने अपनी भाषा में डायलॉग लिखने और उन्हें बारबार दोहराने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहाकि भाषा अक्सर वह पहली बाधा होती है, जिसे एक अभिनेता को पार करना होता है। इसके बाद सेशन में अलग-अलग भाषाओं और दशकों के लोगों के अनुभवों का अच्छा आदान-प्रदान हुआ। खुशबू सुंदर ने अपनी पहली तमिल फिल्म की मुश्किलों को याद किया, जहां भाषा की जानकारी न होने की वजह से मज़ेदार और कभी-कभी शर्मनाक गलतियां हो जाती थीं। उन्होंने बतायाकि कैसे वह अपने संवाद और सह कलाकारों के संकेत हिंदी में लिखती थीं, ताकि उनका अभिनय अच्छा रहे। सुहासिनी मणिरत्नम ने एक कठिन कन्नड़ डायलॉग सुनाया, जिसे बोलने में उनके अनुभव के बावजूद 29 टेक लगे और उन्होंने दर्शकों केलिए उस सीन को स्क्रीन पर दिखाया।
सुहासिनी मणिरत्नम और खुशबू सुंदर ने बड़े सेट के सामने घबराहट, अभिनेता ममूटी के सामने लाइनें भूल जाने और शुरुआती डर की कहानियां सुनाईं, जिससे हर एक्टर चुपचाप लड़ता है। सुहासिनी मणिरत्नम ने अभिनेता चिरंजीवी और विष्णुवर्धन जैसे मेंटर्स की सटीकता के बारेमें भी बताया, जिनके स्पष्ट आकलन ने उनके अभिनय को और मज़बूत किया। उन्होंने मोहनलाल केसाथ वानप्रस्थम के एक दृश्य के माध्यम से बिना बोले कहानी कहने की शक्ति का चित्रण किया और अभिनय की बारीकियों को समझाया। सुहासिनी मणिरत्नम ने मंच पर ही एक छोटी परंतु बेहद सारगर्भित मास्टरक्लास देते हुए यह दिखायाकि चकित होने की भावना कैसे व्यक्त की जाती है, शूट के दौरान हिटिंग द मार्क यानी सही स्थान पर पहुंचने का महत्व क्या है और कैसे छोटे-छोटे माइक्रो-मूवमेंट्स कथा की स्पष्टता को आकार देते हैं। सत्र के मुख्य आकर्षणों में दो पुरानी यादें ताज़ा करने वाली घटनाएं शामिल थीं। खुशबू सुंदर ने चिन्नाथम्बी का अपना मशहूर सीन किया और जैसेही उन्होंने आंखों में आंसू लिए उसे समाप्त किया, पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। सुहासिनी मणिरत्नम ने कन्नकी का एक दृश्य प्रस्तुत किया और तभी नृत्य गुरु कला स्वतः मंच पर आ गईं। उन्होंने सुहासिनी मणिरत्नम की मुद्राओं का मार्गदर्शन किया, जिससे दर्शक आनंदित हो उठे। सत्र का समापन एक इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर सत्र केसाथ हुआ, जिसमें मार्गदर्शन, स्मृति, तकनीक और दो कलाकारों के जीवंत ज्ञान का सम्मिश्रण था, जो भारतीय सिनेमा को आकार दे रहे हैं।

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