पोरबंदर से 29 दिसंबर 2025 को करेगा मस्कट तक पहली समुद्री यात्रा
इतिहास शिल्प कौशल व आधुनिक नौसैनिक विशेषज्ञता का दुर्लभ संगमस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Tuesday 23 December 2025 12:37:01 PM
पोरबंदर (गुजरात)। भारत की प्राचीन जहाज निर्माण और समुद्री परंपराओं को पुन: साकार करते हुए भारतीय नौसेना का प्राचीन पाल विधि से निर्मित पोत आईएनएसवी कौंडिन्य 29 दिसंबर 2025 को अपनी पहली समुद्री यात्रा पर रवाना होगा। यह पोत गुजरात के पोरबंदर से ओमान के मस्कट तक की यात्रा करते हुए प्रतीकात्मक रूपसे उन ऐतिहासिक समुद्री मार्गों का पुनर्मूल्यांकन करेगा, जिन्होंने सहस्राब्दियों से भारत को व्यापक हिंद महासागर दुनिया से जोड़ा है। इसे प्राचीन भारतीय पोतों के चित्रण से प्रेरणा लेते हुए पूरी तरह से पारंपरिक सिलाई-तख्ता तकनीक का उपयोग करके निर्मित किया गया है।
आईएनएसवी कौंडिन्य इतिहास, शिल्प कौशल और आधुनिक नौसैनिक विशेषज्ञता का एक दुर्लभ संगम है। समकालीन पोतों के विपरीत, इसके लकड़ी के तख्तों को नारियल के रेशे की रस्सी से सिला गया है और प्राकृतिक राल से सील किया गया है। यह भारत के तटों और हिंद महासागर में प्राचीन समय में प्रचलित पोत निर्माण की परंपरा को दर्शाता है। इस तकनीक ने भारतीय नाविकों को आधुनिक नौवहन और धातु विज्ञान के आगमन से बहुत पहले पश्चिम एशिया, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया तक लंबी दूरी की यात्राएं करने में सक्षम बनाया था। इस परियोजना का शुभारंभ संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और होडी इनोवेशन्स केबीच एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन से किया गया था। यह भारत की स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को पुनः खोजने और उन्हें पुन: निर्मित करने के प्रयासों का एक हिस्सा है।
मास्टर शिपराइट बाबू शंकरन के मार्गदर्शन में पारंपरिक शिल्पियों द्वारा निर्मित और भारतीय नौसेना एवं शैक्षणिक संस्थानों में व्यापक अनुसंधान, डिजाइन और परीक्षण के सहयोग से यह पोत पूरी तरह से समुद्र में यात्रा करने योग्य और महासागर में नौकायन में सक्षम है। इस पोत का नाम पौराणिक नाविक कौंडिन्य के नाम पर रखा गया है, जिनके बारेमें माना जाता हैकि उन्होंने प्राचीनकाल में भारत से दक्षिण पूर्व एशिया तककी यात्रा की थी। यह पोत एक समुद्री राष्ट्र के रूपमें भारत की ऐतिहासिक भूमिका का भी प्रतीक है।