बालिकाओं की शिक्षा पर सफीना हुसैन के कई राज्यों में एनजीओ
एजुकेट गर्ल्स ने संवारी शोभा और नगिना बानो की ज़िंदगीस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Monday 24 November 2025 12:47:12 PM
हर बालिका की शिक्षा, समाज की प्रगति की नींव है, जब लड़की पढ़ती है तो उसका आत्मविश्वास ही नहीं, पूरी दुनिया बदल जाती है। वर्ष 2008 की बात है, राजस्थान के छोटे से गांव में एक नौ साल की बालिका मिली नाम था शोभा! उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में जिज्ञासा और चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक। मैंने जब शोभा से पूछा कि क्या तुम स्कूल जाती हो? उसने मुस्कुराकर कहाकि हां, लेकिन स्कूल के रजिस्टर में उसका नाम नहीं था। दरअसल वह रोज़ अपने भाई केसाथ स्कूल तक जाती और बाहर बैठकर उसे पढ़ते हुए देखती थी। उसके लिए यही स्कूल जाना था। शोभा के पिता दौलाराम को लगता थाकि बेटों को पढ़ाना ज़रूरी है, बेटियों को नहीं, लेकिन जब उन्होंने देखाकि उनकी बेटी कितनी लगन से सीखना पढ़ना चाहती है तो दौलाराम का नज़रिया बदल गया। आज वही दौलाराम कहते हैंकि हर किसी को स्कूल जाना चाहिए, क्योंकि बिना शिक्षा इंसान शोषित होता है।
इंसान आज मंगल ग्रह पर पहुंच चुका है, लेकिन हम बालिका को स्कूल तक नहीं पहुंचा पाए हैं। दुनिया में करीब 13 करोड़ 30 लाख बालिकाएं शिक्षा से वंचित हैं। भारत में लाखों बालिकाएं या तो स्कूल नहीं जाती हैं या विभिन्न कारणों से बीच में पढ़ाई छोड़ देती हैं। ग़रीबी, स्कूल की दूरी, बाल विवाह, घरेलू ज़िम्मेदारियां और सामाजिक परंपराएं ये सब उनकी राह में दीवारें हैं। आंकड़े बताते हैंकि बिना शिक्षा के बालिकाओं की 18 साल से पहले शादी होने की संभावना 16 गुना अधिक है। शिक्षा से दूर रहना उसे हिंसा, आर्थिक निर्भरता और असमानता के घेरे में बांधे हुए है, लेकिन घर में जब एक बालिका शिक्षित होती है तो पूरी कहानी बदल जाती है। शिक्षित बालिकाएं जल्द विवाह नहीं करतीं। स्त्री होकर अपने बच्चों को स्वस्थ और शिक्षित रखने की जिम्मेदारियां समझ जाती हैं और उनका निर्वहन करती हैं। वह अपने अधिकारों केलिए आवाज़ उठा सकती हैं। शिक्षा उनके जीवन में नई आज़ादी जोड़ देती है।
एजुकेट गर्ल्स की स्थापना उनकी शिक्षा केलिए ही हुई है, ताकि हर बालिका को स्कूल का रास्ता मिले। हमारी टीम बालिका स्वयंसेवक गांव-गांव जाकर उन बालिकाओं की पहचान करती है, जो शिक्षा से वंचित हैं और उनके परिवारों को समझाकर उन्हें शिक्षा से जोड़ती है। संस्था एआई और डेटा एनालिटिक्स की मदद से यहभी पता लगाती हैकि किन गांवों में सबसे अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। एक अध्ययन के अनुसार भारत के केवल 5 प्रतिशत गांवों में देश की 40 प्रतिशत शिक्षा से वंचित बालिकाएं रहती हैं। संस्था अपने अथक प्रयासों से 30000 से अधिक गांवों में कार्यरत है, 55000 टीम बालिका स्वयंसेवक जुड़े हैं और 20 लाख से अधिक बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ा गया है। ये आंकड़े केवल सफलता की कहानियां नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की जीवंत मिसाल हैं। लड़कियों की शिक्षा केवल समानता का प्रश्न नहीं, यह विकास का इंजन है। लड़कियां शिक्षित होती हैं तो वे बेहतर निर्णय लेती हैं, सामाजिक बदलाव में भाग लेती हैं और आने वाली पीढ़ियों को मजबूत बनाती हैं।
किसीभी देश की तरक्की तभी संभव है, जब उसकी आधी आबादी को बराबर का अवसर मिले। शिक्षा वह चाबी है, जो ग़रीबी, पितृसत्ता और असमानता की सबसे मज़बूत जंजीरों को तोड़ सकती है। लगभग 20 वर्ष तक बालिकाओं की शिक्षा केलिए काम करते हुए मैंने आजतक कोई ऐसी बालिका नहीं देखी, जिसने कहा होकि मैं घर पर रहना चाहती हूं, मैं मवेशी चराना चाहती हूं या मैं बाल विवाह चाहती हूं। हर बालिका जिससे मैं मिली, उसने सिर्फ एकही बात कहीकि मैं स्कूल जाना चाहती हूं। इसी भावना को स्वयंसेविका नगिना बानो ने अपने जीवन से साबित किया है। कभी बाल विवाह की शिकार रही नगिना बानो को उनके परिवार ने त्याग दिया था, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा को अपनी ताकत बनाया। शिक्षा ने न सिर्फ उन्हें जीने का साहस दिया, बल्कि उसके बच्चों के भविष्य को भी रोशनी दी। आज जब नगिना बालिकाओं की शिक्षा की प्रबल समर्थक हैं तो वह कहती हैंकि मेरी शिक्षा ही एकमात्र मेरा जीवन है, कोई इसे मुझसे नहीं छीन सकता, न बाढ़, न अकाल, न कोई आदमी। (सफीना हुसैन एजुकेट गर्ल्स की संस्थापक हैं और बालिकाओं की शिक्षा प्रेरणा हैं)।