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Wednesday 7 May 2025 06:00:18 PM
मुंबई। आयुष मंत्रालय की केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) ने पारंपरिक चिकित्सा में देश की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दो दुर्लभ और महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक पांडुलिपियों-द्रव्यरत्नाकरनिघण्टुः और द्रव्यनामाकरनिघण्टुः को पुनर्जीवित किया है। इन प्रकाशनों का अनावरण मुंबई में राजा रामदेव आनंदीलाल पोदार (आरआरएपी) केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान के एक कार्यक्रम में किया गया। इस कार्यक्रम में केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के महानिदेशक प्रोफेसर वैद्य रविनारायण आचार्य उपस्थित थे। उन्होंने पारंपरिक आयुर्वेदिक साहित्य के अनुसंधान, डिजिटलीकरण और पुनरुद्धार में 'केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद आयुष मंत्रालय की गतिविधियों' पर मुख्य भाषण भी दिया।
मुंबई के प्रसिद्ध पांडुलिपि विज्ञानी और अनुभवी आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ सदानंद डी कामत ने पांडुलिपियों का आलोचनात्मक संपादन और अनुवाद किया है। विमोचन समारोह में रंजीत पुराणिक अध्यक्ष आयुर्वेद प्रसारक मंडल और प्रबंध निदेशक धूतापेश्वर लिमिटेड, डॉ रवि मोरे प्राचार्य आयुर्वेद महाविद्यालय सायन, आयुर्वेद प्रसारक मंडल से डॉ श्याम नाबर और डॉ आशानंद सावंत, डॉ आर गोविंद रेड्डी सहायक निदेशक (आयुष) सीएआरआई मुंबई और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। प्रोफेसर वैद्य रविनारायण आचार्य ने भारत के प्राचीन ज्ञान को समकालीन शोध ढांचों केसाथ जोड़ने में इस तरह के पुनरुद्धार के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहाकि ये ग्रंथ केवल ऐतिहासिक कलाकृतियां नहीं हैं, वे जीवित ज्ञान प्रणालियां हैं, जो सोच समझकर अध्ययन और लागू किए जाने पर समकालीन स्वास्थ्य सेवा दृष्टिकोण को बदल सकती हैं।
आयुर्वेदिक दुर्लभ ग्रंथों के इन महत्वपूर्ण संस्करणों से छात्रों, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और आयुर्वेद चिकित्सकों केलिए अमूल्य संसाधन के रूपमें काम करने की उम्मीद है। यह विद्वानों के अन्वेषण और देश के शास्त्रीय चिकित्सा साहित्य केसाथ गहन जुड़ाव को प्रेरित करेंगे। द्रव्यरत्नाकरनिघण्टु: 1480 ईस्वी में मुद्गल पंडित लिखित इस पहले अप्रकाशित शब्दकोश में अठारह अध्याय हैं, जो औषधि के पर्यायवाची, चिकित्सीय क्रियाओं और औषधीय गुणों पर गहन ज्ञान प्रदान करते हैं। महाराष्ट्र में 19वीं शताब्दी तक व्यापक रूपसे संदर्भित यह ग्रंथ धनवंतरि और राजा निघण्टु जैसे शास्त्रीय निघण्टुओं से प्रेरणा लेता है, जबकि पौधे, खनिज और पशु मूल से कई नए औषधीय पदार्थों का दस्तावेजीकरण करता है। डॉ एसडी कामत द्वारा पुनर्जीवित यह महत्वपूर्ण संस्करण द्रव्यगुण और संबद्ध आयुर्वेदिक विषयों में एक स्मारकीय योगदान है।
भीष्म वैद्य रचित यह अद्वितीय कार्य धनवंतरि निघण्टु केलिए एक स्वतंत्र परिशिष्ट के रूपमें कार्य करता है। आयुर्वेद केलिए अध्ययन का यह एक जटिल क्षेत्र है, जो विशेष रूपसे औषधि और पौधों के नाम के समानार्थी शब्दों पर केंद्रित है। कुल 182 श्लोकों और दो कोलोफोन श्लोकों को शामिल करते हुए इस पाठ को डॉ कामत ने सावधानीपूर्वक संपादित और टिप्पणी की है, जिससे रसशास्त्र, भैषज्य कल्पना और शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषध विज्ञान के विद्वानों केलिए इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। डॉ कामत सरस्वती निघण्टु, भावप्रकाश निघण्टु और धनवंतरि निघण्टु पर अपने प्रामाणिक कार्य केलिए जाने जाते हैं। वे एकबार फिर देश की आयुर्वेदिक विरासत को संरक्षित करने केलिए अपनी गहन विद्वता और प्रतिबद्धता लेकर आए हैं। ये महत्वपूर्ण संस्करण विद्वानों की उपलब्धियों से कहीं अधिक हैं। ये भविष्य के आयुर्वेदिक चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और शिक्षकों केलिए प्रेरणास्रोत हैं। इन कार्यों को डिजिटल बनाने, संपादित करने और व्याख्या करने से केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद और इसके सहयोगी न केवल साहित्यिक समृद्धि की सुरक्षा कर रहे हैं, बल्कि मान्य प्राचीन अंतर्दृष्टि केसाथ देश की पारंपरिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी समृद्ध कर रहे हैं।