उपराष्ट्रपति का शांति, मानवाधिकार और धार्मिक सद्भाव का वैश्विक आह्वान
'श्रीगुरु तेग बहादुर का बलिदान भारत की भावना में गहराई से समाया हुआ'स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Thursday 18 December 2025 12:01:14 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने श्रीगुरु तेग बहादुर की 350वीं शहीदी दिवस वर्षगांठ पर नई दिल्ली में आयोजित अंतरधार्मिक सम्मेलन को शांति, मानवाधिकार और धार्मिक सद्भाव केलिए एक वैश्विक आह्वान बताया। उन्होंने कहाकि ऐसे सम्मेलन में भाग लेना उनके लिए अत्यंत सम्मान की बात है। उपराष्ट्रपति ने श्रीगुरु तेग बहादुर को गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में श्रद्धांजलि अर्पित करने को याद किया और उन्हें नैतिक साहस का प्रतीक बताया, जिनका जीवन और बलिदान समस्त मानवता केलिए है। उपराष्ट्रपति ने श्रीगुरु तेग बहादुर की शहादत का वर्णन करते हुए कहाकि यह धार्मिक स्वतंत्रता की ऐतिहासिक पुष्टि में से एक है, उन्होंने राजनीतिक सत्ता या किसी एक धर्म की श्रेष्ठता केलिए नहीं, बल्कि व्यक्तियों के अपने अंतरात्मा के अनुसार जीने और पूजा करने के अधिकार की रक्षा केलिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। उपराष्ट्रपति ने कहाकि असहिष्णुता के दौर में वे उत्पीड़ितों के रक्षक बनकर खड़े रहे।
उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन ने शाश्वत प्रासंगिकता को उजागर करते हुए श्रीगुरु तेग बहादुर के संदेश में कहाकि उन्होंने विश्व को यह शिक्षा दीकि करुणा से प्रेरित साहस समाजों को रूपांतरित कर सकता है और अन्याय के सामने मौन रहना सच्चे विश्वास के विपरीत है। उन्होंने कहाकि इन्हीं मूल्यों के कारण श्रीगुरु तेग बहादुर को न केवल एक सिख गुरु के रूपमें, बल्कि सर्वोच्च बलिदान और नैतिक साहस के सार्वभौमिक प्रतीक के रूपमें पूजा जाता है और उन्हें 'हिंद दी चादर' की उपाधि से सम्मानित किया गया है। उपराष्ट्रपति ने उल्लेख कियाकि भारत की ताकत हमेशा से ही विविधता में एकता रही है, प्राचीनकाल से ही भारत ने विभिन्न धर्मों, दर्शनों और संस्कृतियों का स्वागत किया है, इसी भावना को बादमें संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों के जरिए स्थापित किया, जो विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और पूजा की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। भारत को अनेक भाषाओं, संस्कृतियों, परंपराओं और धर्मों का राष्ट्र बताते हुए उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के आह्वान का उल्लेख किया और इसे भारत की सभ्यतागत आत्मा में निहित एक परिकल्पना बताया। उन्होंने 2047 तक विकसित भारत केलिए सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गतिशील नेतृत्व में भारत ने सफलतापूर्वक जी20 की अध्यक्षता की और उपनिषद के दर्शन वसुधैव कुटुंबकम को एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य के वैश्विक विषय में रूपांतरित किया। उन्होंने कहाकि भारत मिशन लाइफ से जलवायु परिवर्तन सहित जटिल वैश्विक चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत कर रहा है। उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान भारत की मानवीय भूमिका को याद करते हुए कहाकि भारत ने वैक्सीन मैत्री पहल के अंतर्गत 100 से अधिक देशों को मुफ्त टीके उपलब्ध कराए। प्राचीन तमिल कहावत ‘याधुम ऊरे, यावरुम केलिर’ का हवाला देते हुए जिसका अर्थ हैकि सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है, उपराष्ट्रपति ने कहाकि भारत की सभ्यतागत भावना वैश्विक सद्भाव को प्रेरित करती रहती है। उन्होंने कहाकि श्रीगुरु तेग बहादुर का बलिदान भारत की भावना में गहराई से समाया हुआ है, एक ऐसा राष्ट्र जहां एकता एकरूपता से नहीं, बल्कि आपसी सम्मान और समझ से निर्मित होती है। उन्होंने कहाकि श्रीगुरु तेग बहादुर का संदेश आज औरभी अधिक प्रासंगिक है, जो मानवता को याद दिलाता हैकि शांति बलपूर्वक थोपी नहीं जा सकती, बल्कि न्याय, सहानुभूति और मानवीय गरिमा के सम्मान पर आधारित होनी चाहिए।
श्रीगुरु तेग बहादुर की 350वीं शहीदी दिवस वर्षगांठ पर अंतरधार्मिक सम्मेलन का आयोजन राज्यसभा सांसद और ग्लोबल इंटरफेथ हार्मनी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ विक्रमजीत सिंह साहनी ने किया था। इस सम्मेलन में जैन आचार्य लोकेश मुनि, नामधारी सतगुरु उदय सिंह, दिल्ली में इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष मोहन रूपा दास, अजमेर दरगाह शरीफ के हाजी सैयद सलमान चिश्ती, दिल्ली धर्मप्रांत के उपाध्यक्ष रेव फादर मोनोदीप डेनियल और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह, प्रख्यात धार्मिक और आध्यात्मिक नेता भी उपस्थित थे।