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भाजपा के हाथ में उद्धव ठाकरे का काॅलर!

सीबीआई दिलाएगी अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत को 'न्याय'

बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक की राजनीति में उथल-पुथल

Wednesday 19 August 2020 06:58:37 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

sushant and riya

नई दिल्ली/ मुंबई। ...तो अब भाजपा के हाथ में उद्धव ठाकरे का कॉलर आ ही गया। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मुंबई में उसके फ्लैट में हत्या या आत्महत्या से मौत को केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई सुलझाएगी कि वास्तव में यह क्या है, मगर अब यह उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा है, जितना यह है कि महाराष्ट्र के महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को घुटनों पर लाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस मामले की जांच सीबीआई को यह मानकर सौंप दी है कि मुंबई पुलिस इसे नहीं सुलझा पाई, इसलिए वह इससे जुड़े सारे दस्तावेज़ सीबीआई को सौंपे और जांच में पूरा सहयोग दे। गौरतलब है कि यह मामला देशभर में तूल पकड़ा है और इसकी जांच को लेकर दो महीने से मुंबई और बिहार पुलिस में ज़बरदस्त खींचतान चल रही थी। इसके केंद्र में एक अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती है और उसके चारों तरफ है मुंबई के शक्तिशाली लोगों का एक सिंडिकेट, जिसपर आरोप है कि उसके बिना मुंबई फिल्मी नगरी का एक पत्ता भी नहीं हिलता है और वह उद्धव ठाकरे सरकार एवं मुंबई पुलिस से सांठ-गांठ कर इस मामले को उलझाए हुए है और सीबीआई जांच से ही इस केस की सच्चाई सामने आ सकेगी। महाराष्ट्र सरकार सुप्रीमकोर्ट में इस मामले की सीबीआई से जांच कराने का कड़ा विरोध कर रही थी, लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने उसकी सारी दलीलें ठुकरा दीं और मामला पूरी निगरानी के साथ सीबीआई को सौंप दिया।
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का मामला जितना हाई प्रोफाइल बना, वास्तव में सुशांत सिंह राजपूत की उतनी लोकप्रियता नहीं थी, लेकिन इस मामले में कुछ हिम्मतियों के सब्र का बांध टूट गया और उसकी हत्या या आत्महत्या से जुड़े गंभीर घटनाक्रम सामने आए। मुंबई फिल्मी दिग्गजों में इसे लेकर जो बयानबाज़ी राजनीति और तर्क-वितर्क हुए उससे यह मामला दिन प्रतिदिन हाई प्रोफाइल होता गया और देशभर में यह निष्कर्ष सामने आया कि मुंबई में फिल्मी हस्तियों, फिल्म निर्माताओं और फिल्म उद्योग में बड़ी भयानक गंदगी है, जिस कारण न जाने कितने सुशांत सिंह राजपूत अपने फिल्मी कैरियर के अनचाहे संघर्ष में ऐसे ही कालकल्वित हो चुके हैं। सुशांत सिंह राजपूत मामले ने इतना तूल पकड़ा है कि इसमें उद्धव सरकार के हाथ जल उठे हैं। इसकी गर्माहट इसलिए भी जोर पकड़ी है, क्योंकि इसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पुत्र और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री आदित्य ठाकरे की संलिप्तता की कहानियां उछल रही हैं। मुंबई पुलिस सुशांत सिंह राजपूत की मौत को आत्महत्या मानती है, लेकिन अधिकांश लोग और अपराध विशेषज्ञ इसे एक सुनियोजित हत्या मानते हैं। इसे लेकर बिहार और महाराष्ट्र राज्य सरकारों में गंभीर टकराव होता आ रहा था। मुद्दा यही था कि इसकी जांच सीबीआई ही करे, जिसका निर्णय हो गया है और सीबीआई जल्द ही मुंबई में 'अपना बहुउद्देशीय काम' शुरु कर देगी।
सीबीआई के लिए यह मामला कई दृष्टिकोण से बहुत मायने रखता है। एक तो यह कि यह जांच लंबी चलेगी, जिसमें एक तीर से कई शिकार हो रहे हैं, दूसरे उद्धव ठाकरे सरकार को इसमें पहला तगड़ा झटका सुप्रीमकोर्ट से मिल ही गया है, उसकी सारी दलीलों को ठुकराकर और मामले के सारे पक्ष सीबीआई को सौंपकर। जाहिर है कि सीबीआई जिस तरह से चाहेगी, उद्धव ठाकरे को नचाएगी और चूंकि उद्धव ठाकरे के राजनीतिक महत्वाकांक्षी पुत्र और अक्सर कुछ फिल्म अभिनेत्रियों के बीच दिखने वाले आदित्य ठाकरे का इस मामले से कनेक्शन चर्चा में है तो यह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए बड़ी ही परेशानी का सबब है। उद्धव ठाकरे के लिए यह बड़ी राजनीतिक मुसीबत है और यदि सीबीआई का हाथ आदित्य ठाकरे के कॉलर तक पहुंचता है तो यह उद्धव ठाकरे और शिवसेना के लिए अत्यंत कठिन समय होगा। समझा जा रहा है कि सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या या हत्या की जांच अब इतनी महत्वपूर्ण नहीं रही है, जितना महत्वपूर्ण यह है कि इस जांच के सहारे ऊंट पहाड़ के नीचे आया है, जिसमें उद्धव ठाकरे की सारी हेकड़ी निकल जाएगी और उनको भाजपा को धोखा देने या आंख दिखाने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। कहने वाले कहते हैं कि यह सीबीआई जांच महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े गुल खिलाने जा रही है, जिसमें देखना है कि यह जांच महाराष्ट्र में शिवसेना को कैसे-कैसे रंग दिखाती है। जहां तक सुशांत सिंह राजपूत को 'अब न्याय' मिलने का सवाल है तो उसे वह न्याय मिले या न मिले, मगर वह अपनी जान देकर भाजपा के हाथ में उद्धव ठाकरे का कॉलर जरूर दे गया।
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का मामला दो पाटों के बीच में ऐसे फंस गया था कि किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या होगा। उद्धव सरकार बहुत आशांवित थी कि मामला दफन हो गया है, मगर एक समय बाद इसपर कई उद्देश्यपूर्ण नज़रें गड़ गईं, मामला उद्धव सरकार के हाथ से निकल गया और सरकार देखती रह गई। सुशांत सिंह राजपूत बिहार के रहने वाले थे और एक होनहार फिल्मी कलाकार थे। कहा जाता है कि वे मुंबई फिल्म जगत के कई दिग्गज अभिनेताओं के लिए बड़ी चुनौती की ओर बढ़ रहे थे। यहीं से उनका फिल्मी माफियाओं से टकराव शुरू हुआ, जिसकी उन्होंने अपने पिता, बहनों और मित्रों से भी चर्चा की थी। कई तो टीवी चैनलों पर यह कहकर बोल रहे हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की हत्या ही हुई है। इसके पीछे कुछ दिग्गज फिल्म अभिनेताओं, फिल्म निर्माताओं, फाइनेंसरों और अभिनेत्रियों का दाएं-बाएं से नाम भी लिया जा रहा है। रिया चक्रवर्ती सुशांत सिंह राजपूत की हमराज है, जिसके बयानों ने सुप्रीमकोर्ट, बिहार सरकार, सुशांत के परिवार और फिल्मी दुनिया के लोगों को यह सोचने को मजबूर कर दिया कि हो न हो इस मौत में रिया चक्रवर्ती की भी कोई भूमिका है। यह शक तब और ज्यादा गहराया, जब मुंबई पुलिस, उद्धव ठाकरे सरकार और शिवसेना के नेता संजय राउत ज्यादा ही रिया चक्रवर्ती की हमदर्दी में उतर आए इसके बाद ही रिया चक्रवर्ती के खिलाफ बिहार में एफआईआर हुई। एफआईआर दर्ज होते ही दोनों राज्यों में राजनीति शुरू हो गई, जिसका पटाक्षेप आज सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया।
अब एक प्रश्न सबके सामने है कि सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या या हत्या से जुड़े सबूत क्या इतने दिन बाद सलामत होंगे? तब, जब मुंबई पुलिस और उद्धव सरकार पर यह गंभीर आरोप है कि उसने इस मामले को हर तरह से रफादफा करा दिया है। सुशांत सिंह राजपूत के शव को बिना पुलिस की मौजूदगी के आत्महत्या के फंदे से उतारने से लेकर और पोस्टमार्टम कराने तक में झोल ही झोल हैं और बयानबाज़ियां हैं, इसलिए क्या सीबीआई का इस केस की तह तक पहुंचना इतना आसान होगा या यह मामला भी एक सनसनी के चरम तक पहुंचने के बाद ठंडा पड़ जाएगा या 'मैनेज' हो जाएगा? फिल्मी दुनिया में भी इसे लेकर जबरदस्‍त लामबंदी चल रही है और सभी अपनी-अपनी साख बचाने या किसी को भेंट चढ़ाने में लगे हुए हैं। रिया चक्रवर्ती अब मात्र एक टूल बन गई है, जिसके बारे में यह भी कहा जा रहा है कि उसने सुशांत सिंह राजपूत के करोड़ों रुपये हड़प कर कोई खेल किया है। इसमें आशंका व्यक्त की जा रही है कि अब क्या रिया चक्रवर्ती का भी जीवन खतरे में आ चुका है, क्योंकि सीबीआई की जांच से बचने के लिए इसका भी पत्ता साफ किया-कराया जा सकता है या इसे भी आत्महत्या के लिए मजबूर किया जा सकता है। इस मामले ने जो आगे के रास्ते बनाए हैं, उनमें बिहार का चुनाव भी सामने है, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का 'काम' और भी आसान हो गया है, दूसरी तरफ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए आगे की राहें और भी कठिन हो गई हैं और ऐसे ही 'अवसर' की ताक में भाजपा थी, जो उसे मिल ही गया। आगे-आगे देखिए होता है क्या!

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