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कैसे बचेगा हिमालय और उत्तराखंड?

उत्तराखंड की जनता पर 24 हजार करोड़ का कर्ज

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 12 February 2013 08:46:24 AM

देहरादून। आरटीआई एक्टिविस्ट भार्गव चंदोला ने कहा है कि उत्तराखंड की अदूरदृष्टी और राजशाही भोगी कांग्रेस और बीजेपी की सरकारों ने प्रदेश को भारी कर्जे में डुबोकर उत्तराखंड को वित्तविहीन प्रदेश बना दिया है। इतना ही नहीं, प्रदेश की जनता को 24000 करोड़ के कर्जे में डुबोने के बाद भी अपने ऐश-ओ-आराम के लिए बहुगुणा सरकार जनता के धन को लुटाने में जरा भी शर्म नहीं कर रही है, चाहे वो लग्ज़री गाड़ियां खरीदनी हों या हवाई यात्रा के लिए हेलीकॉप्टरों की खरीद। उत्तराखंड में शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी, उच्च शिक्षा आदि मूलभूत सुविधाएं देने में भी सरकार पूर्णतः नाकाम साबित हो रही है। पहाड़ी राज्य लगातार पलायन की मार झेल रहा है, इतना ही नहीं उत्तराखंड सरकार देश की जनता को भी भारी ख़तरे की ओर धकेल रही है।
भार्गव चंदोला ने कहा कि हिमालय के साथ-साथ देश की सुरक्षा को भी गंभीर खतरा नज़र आ रहा है। वर्ष 2005 के बाद किए गए आंकलन के अनुसार भारतीय हिमालयी जोन में 292 बांध बनाए जा रहे हैं, जिससे 1 लाख 70 हज़ार वन भूमि प्रभावित होगी। इसमे 54,117 हेक्टयर भूमि पूर्ण रूप से पानी में डूब जाएगी और 1,14,361 हेक्टयर बन भूमि नष्ट हो जाएगी। इन बांधों के निर्माण से हिमालय में हर तीन हज़ार किलोमीटर में एक रिज़रवायर होगा, जो कि ग्लोबल ऐवरेज डैम डें‌सिटी से 62 गुना ज्यादा है। सवाल उठता है कि मनुष्य को तो विस्थापित किया जा सकता है, पर वनों को कहां विस्थापित किया जाएगा और कैसे? और हिमालय को उजाड़ कर अगर हिमालय रेंज से बाहर ये वन लगाए भी जाते हैं, जैसे की पूर्व में टिहरी डैम को बनाने के बाद कहा गया कि झांसी में वन लगाए गए, अब लगाए भी गए हैं, तो झांसी के उत्तराखंड में होने वाले भू-स्खलन और आपदा को कैसे रोकेंगे? क्या हिमालय अपना अस्तित्व रख पाएगा? आपदा से हम कैसे निपटेंगे?
भार्गव चंदोला का कहना है कि चीन और नेपाल उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र की सीमा से जुड़े हैं और बेरोज़गारी, मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी के कारण पहाड़ के पहाड़ खाली हो रहे हैं, क्या हम जानबूझकर देश को कई तरह के खतरों की ओर नहीं धकेल रहे हैं? उत्तराखंड जिस उद्देश्य से बनाया गया था, जनभावनाओं के अनुरूप उत्तराखंड की स्थाई राजधानी को गैरसैंण तत्काल घोषित किया जाना चाहिए, ताकि उत्तराखंड के कुमांऊ और गढ़वाल का दूरगामी और चौमुखी विकास हो सके साथ ही पहाड़ी और मैदानी कृषि भूमि को भी बचाया जा सके। हिमालय बसेगा तो हिमालय बचेगा उसके लिए कदम भी कारगर उठाने होंगे। उत्तराखंड के दूरगामी विकास के लिए उत्तराखंड की 670 न्याय पंचायतों में ऐसी टाउनशिप तैयार की जाए, जिसमें एक ही परिसर में स्कूल, चिकित्सालय, बैंक, स्पोर्ट्स स्टेडियम, स्पोर्ट कांप्लेक्स, टेक्नीकल, मेडिकल एंड हायर एजुकेशन, लोकल प्रोडक्ट शॉपिंग मॉल, फ़ूड पार्क, हॉर्टिकल्चर, फ्लोरिकल्चर, डेरी पालन, केंद्र, स्माल इंडस्ट्रीज, बॉयज एंड गर्ल्स होस्टल्स, कर्मचारी आवास, ट्रांसपोर्ट एंड रोड कनेक्टिविटी आदि की सुविधाएं हों, ताकि उत्तराखंड का दूरगामी और चौहुमुखी विकास किया जा सके।
उनका कहना है कि जब तक ऐसा नहीं किया गया तब तक न तो हिमालय बचेगा और न ही पलायन रुकेगा। ये सारी मूलभूत सुविधाएं हैं और अभी तक सरकार इन्हें ही पूरा नहीं कर पाई है और जब ये सुविधाएं मिलेंगी, गांव के लोग गांव में ही रहना पसंद करेंगे, साथ ही बंधुआ मजदूरों की तरह बाहर काम करने वालों को भी अपने गांव में रोज़गार प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। जब स्थानीय लोग अपने घर के पास रोज़गार प्राप्त करेंगे और गांव के गांव आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत होंगे तो वो विकास कहलाएगा।

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