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Wednesday 1 October 2025 03:42:59 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा हैकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी समारोह देश केलिए आरएसएस की ऐतिहासिक उपलब्धियों का सम्मान करता है, भारत की सांस्कृतिक यात्रा में इसके स्थायी योगदान और राष्ट्रीय एकता के संदेश को भी उजागर करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डॉ अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र दिल्ली में आरएसएस के शताब्दी समारोह को संबोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने देशवासियों को नवरात्र की यह कहकर बधाई और शुभकामनाएं दींकि आज महानवमी और देवी सिद्धिदात्री का दिन है, कल विजयादशमी का महापर्व है, जो भारतीय संस्कृति के शाश्वत उद्घोष का प्रतीक है, अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश की विजय। प्रधानमंत्री ने कहाकि सौ वर्ष पूर्व इस पावन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी और यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्ष की प्राचीन परंपरा का पुनरुद्धार है, जिसमें राष्ट्रीय चेतना प्रत्येक युग की चुनौतियों का सामना करने केलिए नए रूपों में प्रकट होती है। उन्होंने कहाकि इस युग में संघ उस शाश्वत राष्ट्रीय चेतना का एक सद्गुणी अवतार है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष का साक्षी बनना वर्तमान पीढ़ी के स्वयंसेवकों केलिए सौभाग्य बताते हुए नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रसेवा के संकल्प में समर्पित असंख्य स्वयंसेवकों को शुभकामनाएं दीं। प्रधानमंत्री ने संघ के संस्थापक डॉ केशवराव बलीराम हेडगेवार के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह के एक भाग के रूपमें प्रधानमंत्री ने राष्ट्र केप्रति आरएसएस के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने संघ पर विशेष रूपसे डिजाइन किया गया स्मारक डाक टिकट और सौ रुपये का सिक्का जारी किया। सौ रुपये के सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह और दूसरी ओर स्वयंसेवकों द्वारा सलामी दिए जा रहे सिंह केसाथ वरद मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि अंकित है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवतः यह पहली बार है, जब भारत माता की छवि भारतीय मुद्रा पर है। उन्होंने कहाकि सिक्के पर संघ का मार्गदर्शक आदर्श वाक्य भी अंकित है-‘राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय, इदं न मम।’
स्मारक डाक टिकट के महत्व और इसकी गहरी ऐतिहासिक प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड के महत्व को भी याद किया और कहाकि 1963 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने देशभक्ति की धुनों पर ताल से ताल मिलाते हुए बड़े गर्व केसाथ परेड में भाग लिया था। उन्होंने कहाकि यह डाक टिकट उस ऐतिहासिक क्षण की स्मृति को समेटे हुए है। नरेंद्र मोदी ने संघ पर स्मारक सिक्कों और डाक टिकट जारी होने पर भारत के नागरिकों को बधाई देते हुए कहाकि यह स्मारक डाक टिकट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के अटूट समर्पण को दर्शाता है, जो राष्ट्र की सेवा और समाज को सशक्त बनाने केलिए निरंतर प्रयासरत हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि जिस प्रकार महान नदियां अपने तटों पर मानव सभ्यताओं का पोषण करती हैं, उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी असंख्य जीवन पोषित और समृद्ध किए हैं। उन्होंने एक नदी जो अपने माध्यम से बहने वाली भूमि, गांवों और क्षेत्रों को आशीर्वाद देती है और संघ जिसने भारतीय समाज और राष्ट्र के हर क्षेत्र को छुआ है के बीच तुलना करते हुए इस बात पर ज़ोर दियाकि यह निरंतर समर्पण और एक शक्तिशाली राष्ट्रीय धारा का परिणाम है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक नदी की तुलना करते हुए, जो अनेक धाराओं में विभाजित होकर अलग-अलग क्षेत्रों को पोषित करती है, प्रधानमंत्री ने कहाकि यह संघ की यात्रा का प्रतिबिंब है, जहां इसके विभिन्न सहयोगी संगठन जीवन केसभी पहलुओं शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, आदिवासी उत्थान, महिला सशक्तिकरण, कला और विज्ञान, तथा श्रम क्षेत्र में राष्ट्र सेवा में संलग्न हैं। नरेंद्र मोदी ने कहाकि संघ की अनेक धाराओं में विस्तार के बावजूद, उसमें कभी विभाजन नहीं हुआ, प्रत्येक धारा विविध क्षेत्रोंमें कार्यरत प्रत्येक संगठन, एक ही उद्देश्य और भावना साझा करता है-राष्ट्र प्रथम। प्रधानमंत्री ने कहाकि अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक महान उद्देश्य राष्ट्र निर्माण को अपनाया है, इस उद्देश्य की पूर्ति केलिए संघ ने राष्ट्रीय विकास की नींव के रूपमें व्यक्तिगत विकास का मार्ग चुना है, इस मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ने केलिए संघ ने एक अनुशासित कार्यपद्धति अपनाई है-‘शाखाओं का दैनिक और नियमित संचालन।’ प्रधानमंत्री ने कहाकि डॉ केशवराव बलीराम हेडगेवार समझते थेकि राष्ट्र तभी वास्तविक रूपसे सशक्त होगा, जब प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व केप्रति जागरुक होगा, भारत तभी उन्नति करेगा, जब प्रत्येक नागरिक राष्ट्र केलिए जीना सीखेगा। उन्होंने कहाकि इसीलिए डॉ हेडगेवार एक अद्वितीय दृष्टिकोण अपनाते हुए व्यक्तिगत विकास केलिए प्रतिबद्ध रहे।
नरेंद्र मोदी ने डॉ हेडगेवार के मार्गदर्शक सिद्धांत को उद्धृत कियाकि लोगों को वैसे ही स्वीकार करो जैसे वे हैं, उन्हें वैसा बनाओ जैसा उन्हें होना चाहिए। उन्होंने डॉ हेडगेवार के जनसम्पर्क के तरीके की तुलना एक कुम्हार से भी की, जो साधारण मिट्टी से शुरुआत करता है, उसपर लगन से काम करता है, उसे आकार देता है, पकाता है और अंततः ईंटों का उपयोग करके एक भव्य संरचना का निर्माण करता है। उन्होंने कहाकि उसी तरह डॉ हेडगेवार ने सामान्य व्यक्तियों का चयन किया, उन्हें प्रशिक्षित किया, उन्हें दूरदृष्टि प्रदान की और उन्हें राष्ट्र के लिए समर्पित स्वयंसेवकों के रूपमें आकार दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि इसीलिए संघ के बारे में कहा जाता हैकि सामान्य लोग असाधारण और अभूतपूर्व कार्यों को पूरा करने केलिए एकसाथ आते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में व्यक्तिगत विकास की महान प्रक्रिया के निरंतर फलने-फूलने पर प्रधानमंत्री ने शाखा स्थल को प्रेरणा का एक पवित्र स्थल बताया, जहां एक स्वयंसेवक सामूहिक भावना का प्रतिनिधित्व करते हुए ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर अपनी यात्रा शुरू करता है। उन्होंने कहाकि ये शाखाएं चरित्र निर्माण की यज्ञ वेदियां हैं, जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देती हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि शाखाओं के भीतर, राष्ट्रसेवा की भावना और साहस जड़ पकड़ता है, त्याग और समर्पण स्वाभाविक हो जाते हैं, व्यक्तिगत श्रेय की लालसा कम हो जाती है और स्वयंसेवक सामूहिक निर्णय लेने और टीम वर्क के मूल्यों को आत्मसात करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सौवर्ष की यात्रा तीन आधारभूत स्तंभ राष्ट्र निर्माण की भव्य परिकल्पना, व्यक्तिगत विकास का स्पष्ट मार्ग और शाखाओं के रूपमें सरल, किंतु गतिशील कार्य पद्धति पर आधारित रही है, इन स्तंभों पर खड़े होकर संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को तैयार किया है, जो समर्पण, सेवा और राष्ट्रीय उत्कृष्टता केलिए प्रतिबद्ध प्रयास से विभिन्न क्षेत्रोंमें राष्ट्र को आगे बढ़ा रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने कहाकि स्थापना केबाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी प्राथमिकताओं को राष्ट्र की प्राथमिकताओं केसाथ संरेखित किया है, हर युग में संघ ने देश के सामने आनेवाली बड़ी चुनौतियों का डटकर सामना किया है, स्वतंत्रता संग्राम में डॉ हेडगेवार और कई अन्य कार्यकर्ताओं ने सक्रिय रूपसे भाग लिया था, डॉ हेडगेवार को कईबार कारावास भी भुगतना पड़ा था, चिमूर में 1942 के आंदोलन में कई स्वयंसेवकों ने ब्रिटिश शासन के भीषण अत्याचार सहे। उन्होंने कहाकि स्वतंत्रता के बादभी संघ ने अपने त्याग जारी रखे, हैदराबाद में निज़ाम के उत्पीड़न का विरोध करने से लेकर गोवा और दादरा एवं नगर हवेली की मुक्ति में योगदान देने तक, पूरे आंदोलन में संघ की मूल भावना राष्ट्र प्रथम रही और उसका अटल लक्ष्य ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ रहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राष्ट्रसेवा की अपनी यात्रा में अनेक आक्रमणों और षड्यंत्रों का सामना करना पड़ा है। उन्होंने कहाकि गुरुजी को झूंठे मामलों में फंसाकर जेल भेजा गया, फिरभी वे विचलित नहीं हुए। प्रधानमंत्री ने कहाकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी भी कटुता नहीं रखी, इसका एक प्रमुख कारण लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में प्रत्येक स्वयंसेवक की अटूट आस्था है। उन्होंने आपातकाल के दौरान स्वयंसेवकों को सशक्त और प्रतिरोध करने की शक्ति प्रदान करने का स्मरण किया। उन्होंने कहाकि संघ एक विशाल वटवृक्ष की तरह अडिग रहकर राष्ट्र और समाज की निरंतर सेवा करता आ रहा है। नरेंद्र मोदी ने 1956 में गुजरात के अंजार में विनाशकारी भूकंप का भी ज़िक्र किया, जिसमें व्यापक विनाश हुआ और संघ ने राहत और बचाव कार्यों में सक्रिय रूपसे भाग लिया। नरेंद्र मोदी ने 1962 के युद्ध को भी याद किया, जिसमें आरएसएस के स्वयंसेवकों ने सशस्त्र बलों का अथक समर्थन किया, उनका मनोबल बढ़ाया और सीमावर्ती गांवों तक सहायता पहुंचाई। प्रधानमंत्री ने 1971 के संकट का भी ज़िक्र किया, जब पूर्वी पाकिस्तान से लाखों शरणार्थी बिना किसी आश्रय या संसाधन के भारत पहुंचे थे, उस कठिन समय में स्वयंसेवकों ने भोजन की व्यवस्था की, आश्रय प्रदान किया, स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कीं, उनके आंसू पोंछे। नरेंद्र मोदी ने कहाकि स्वयंसेवकों ने 1984 के दंगों के दौरान भी कई सिखों को शरण दी थी और दंगा पीड़तों की सहायता की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्मरण कियाकि पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम चित्रकूट में नानाजी देशमुख के आश्रम में देखी गई सेवा गतिविधियों से बहुत आश्चर्यचकित थे, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर की अपनी यात्रा के दौरान संघ के अनुशासन और सादगी से बहुत प्रभावित हुए थे। प्रधानमंत्री ने कहाकि पंजाब में बाढ़, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में आई आपदाओं और केरल के वायनाड में हुई त्रासदी जैसी आपदाओं में संघ सबसे पहले सहायता प्रतिक्रिया देने वालों में से है। उन्होंने कहाकि कोविड-19 महामारी के दौरान पूरी दुनिया ने संघ के साहस और सेवा भावना को प्रत्यक्ष रूप से देखा। प्रधानमंत्री ने कहाकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्ष की यात्रा में उसका एक सबसे महत्वपूर्ण योगदान समाज के विभिन्न वर्गों में आत्मजागरूकता और गौरव का जागरण रहा है। उन्होंने कहाकि संघ ने देश के सबसे दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में विशेष रूपसे भारत के लगभग दस करोड़ आदिवासी भाइयों और बहनों के बीच निरंतर कार्य किया है। उन्होंने कहाकि जहां एक ओर सरकारें अक्सर इन समुदायों की उपेक्षा करती रही हैं, वहीं संघ ने उनकी संस्कृति, त्योहारों, भाषाओं और परंपराओं को प्राथमिकता दी है, सेवा भारती, विद्या भारती और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन आदिवासी सशक्तिकरण के स्तंभ बनकर उभरे हैं। नरेंद्र मोदी ने कहाकि आज आदिवासी समुदायों में बढ़ता आत्मविश्वास उनके जीवन में बदलाव ला रहा है, जिसके पीछे संघ का योगदान है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि जाति आधारित भेदभाव और प्रतिगामी प्रथाओं जैसी सामाजिक बुराइयां लंबे समय से हिंदू समाज केलिए एक गंभीर चुनौती रही हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इन चिंताओं को दूर करने केलिए निरंतर कार्य किया है। वर्धा में एक संघ शिविर में महात्मा गांधी की यात्रा का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि गांधीजी ने संघ की समानता, करुणा और सद्भाव की भावना की खुले दिल से प्रशंसा की थी। उन्होंने कहाकि डॉ हेडगेवार से लेकर आजतक संघ के प्रत्येक प्रतिष्ठित व्यक्ति और सरसंघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के विरुद्ध लड़ाई लड़ी है। नरेंद्र मोदी ने बालासाहेब देवरस को उद्धृत किया, जिन्होंने कहा थाकि यदि छुआछूत पाप नहीं है तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है। उन्होंने कहाकि सरसंघचालक के रूपमें रज्जू भैया और केसी सुदर्शन ने भी इसी भावना को आगे बढ़ाया। प्रधानमंत्री ने कहाकि वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने समाज के सामने सामाजिक समरसता का एक स्पष्ट लक्ष्य रखा है, जो एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान के दृष्टिकोण में निहित है। उन्होंने कहाकि संघ ने इस संदेश को देश के कोने-कोने तक पहुंचाया है, भेदभाव, विभाजन और कलह से मुक्त समाज का निर्माण किया है। उन्होंने कहाकि यही समरसता और समावेशी समाज के संकल्प का आधार है, जिसे संघ नए जोश के साथ मज़बूत करता रहता है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि एक सदी पहले जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी, उस समय की ज़रूरतें और संघर्ष अलग थे, भारत सदियों पुरानी राजनीतिक पराधीनता से मुक्ति पाने और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा केलिए प्रयासरत था। उन्होंने कहाकि आज जब भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, चुनौतियां भी बदल गई हैं।
प्रधानमंत्री ने कहाकि आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी से उबर रहा है, नए क्षेत्र युवाओं केलिए अवसर पैदा कर रहे हैं और भारत कूटनीति से लेकर जलवायु नीतियों तक, वैश्विक स्तरपर अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा है। उन्होंने कहाकि आज की चुनौतियों में दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, राष्ट्रीय एकता को तोड़ने की साजिशें और जनसांख्यिकीय हेरफेर शामिल हैं और यह संतोष की बात हैकि सरकार इन मुद्दों का शीघ्रता से समाधान कर रही है। नरेंद्र मोदी ने एक स्वयंसेवक के रूपमें इस बातपर गर्व व्यक्त कियाकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने न केवल इन चुनौतियों की पहचान की है, बल्कि उनका सामना करने केलिए एक ठोस रोडमैप भी तैयार किया है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांच परिवर्तनकारी संकल्प-आत्म जागरुकता, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, नागरिक अनुशासन और पर्यावरण चेतना को स्वयंसेवकों केलिए राष्ट्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का सामना करने हेतु सशक्त प्रेरणा बताया। उन्होंने कहाकि आत्म जागरूकता का अर्थ है-दासता की मानसिकता से मुक्ति और अपनी विरासत तथा मातृभाषा पर गर्व करना। प्रधानमंत्री ने समाज से स्वदेशी के मंत्र को सामूहिक संकल्प के रूपमें अपनाने का आह्वान किया और सभी से वोकल फ़ॉर लोकल अभियान को सफल बनाने केलिए अपनी पूरी ऊर्जा समर्पित करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सामाजिक समरसता को सदैव प्राथमिकता दी है। उन्होंने सामाजिक समरसता को हाशिए पर पड़े लोगों को प्राथमिकता देकर सामाजिक न्याय की स्थापना और राष्ट्रीय एकता को मज़बूत करने के रूप में परिभाषित किया।
नरेंद्र मोदी ने इस बात पर प्रकाश डालाकि आज राष्ट्र ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो सीधे तौर पर उसकी एकता, संस्कृति और सुरक्षा को प्रभावित करती हैं, जिनमें अलगाववादी विचारधाराओं और क्षेत्रवाद से लेकर जाति और भाषा के विवाद और बाहरी ताकतों द्वारा भड़काई गई विभाजनकारी प्रवृत्तियां शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि भारत की आत्मा हमेशा विविधता में एकता में निहित रही है और चेतावनी दीकि अगर इस सिद्धांत को तोड़ा गया, तो भारत की ताकत कम हो जाएगी। इसलिए उन्होंने इस आधारभूत लोकाचार को निरंतर सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि आज सामाजिक सद्भाव जनसांख्यिकीय हेरफेर और घुसपैठ से गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, जिसका सीधा असर आंतरिक सुरक्षा और भविष्य की शांति पर पड़ रहा है। उन्होंने कहाकि इसी चिंता के चलते उन्होंने लालकिले से जनसांख्यिकी मिशन की घोषणा की। उन्होंने इस खतरे का सामना करने केलिए सतर्कता और दृढ़ कार्रवाई का आह्वान किया। नरेंद्र मोदी ने कहाकि पारिवारिक प्रबोधन समय की मांग है। उन्होंने इसे पारिवारिक संस्कृति के पोषण के रूपमें परिभाषित किया, जो भारतीय सभ्यता की नींव है और भारतीय मूल्यों से प्रेरित है। उन्होंने पारिवारिक सिद्धांतों को बनाए रखने, बड़ों का सम्मान करने, महिलाओं को सशक्त बनाने, युवाओं में मूल्यों का संचार करने और अपने परिवार के प्रति ज़िम्मेदारियों को निभाने के महत्व पर ज़ोर दिया।