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Monday 29 September 2025 05:31:58 PM
नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आज आईसीजी मुख्यालय नई दिल्ली में 42वें भारतीय तटरक्षक कमांडरों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए आईसीजी बल की व्यावसायिकता और मानवीय सेवा की सराहना की और भारतीय तटरेखा सहित द्वीपीय क्षेत्रों की सुरक्षा में उल्लेखनीय भूमिका पर प्रकाश डाला। रक्षामंत्री ने आईसीजी को राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ कहा, जिसने अपनी शुरुआत में एक मामूली बेड़े से खुदको 152 जहाजों और 78 विमानों केसाथ एक दुर्जेय बल में बदल लिया है। रक्षामंत्री ने कहाकि आईसीजी ने लगातार नागरिकों का विश्वास अर्जित किया है और अपनी व्यावसायिकता व मानवीय सेवा केलिए वैश्विक मान्यता भी अर्जित की है। यह तीन दिवसीय भारतीय तटरक्षक कमांडर सम्मेलन उभरती समुद्री सुरक्षा चुनौतियों और हिंद महासागर क्षेत्रके बढ़ते सामरिक महत्व की पृष्ठभूमि में सामरिक, प्रचालनगत और प्रशासनिक प्राथमिकताओं पर विचार विमर्श केलिए सेना के वरिष्ठ नेतृत्व को एक मंच प्रदान करता है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने बाह्य और आंतरिक सुरक्षा के समन्वय पर कार्य करने के आईसीजी के अद्वितीय अधिदेश पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहाकि जहां सशस्त्र बल बाहरी खतरों से बचाव पर ध्यान केंद्रित करते हैं और दूसरी एजेंसियां आंतरिक सुरक्षा का दायित्व संभालती हैं, वहीं आईसीजी दोनों क्षेत्रोंमें निर्बाध रूपसे कार्य करता है। उन्होंने कहाकि विशिष्ट इकोनोमिक जोन में गश्त करके आईसीजी न केवल बाहरी खतरों को रोकता है, बल्कि अवैध मछली पकड़ने, मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी, मानव तस्करी, समुद्री प्रदूषण और अनियमित समुद्री गतिविधियों से भी निपटता है। रक्षामंत्री ने नौसेना, राज्य प्रशासन एवं और दूसरी सुरक्षा एजेंसियों केसाथ बहुएजेंसी समन्वय को आईसीजी की सबसे बड़ी ताकत बताया। उन्होंने कहाकि आईसीजी केवल एक सुरक्षा प्रदाता नहीं हैं, बल्कि एक सच्चे बल गुणक हैं। राजनाथ सिंह ने कहाकि आईसीजी के आधुनिकीकरण केलिए सरकार ने इसके पूंजीगत बजट का लगभग 90 प्रतिशत स्वदेशी परिसंपत्तियों केलिए आवंटित किया है। उन्होंने भारत में जहाजों और विमानों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव में हुई प्रगति की सराहना की और इसे आत्मनिर्भरता की महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। उन्होंने कहाकि इससे आईसीजी की प्रचालनगत क्षमता बढ़ी है, भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र और अर्थव्यवस्था को भी बल मिला है।
रक्षामंत्री ने कहाकि जहां स्थलीय सीमाएं स्थायी, स्पष्ट रूपसे चिन्हित और अपेक्षाकृत पूर्वानुमानित होती हैं, वहीं समुद्री सीमाएं परिवर्तनशील होती हैं और ज्वारभाटे, लहरों और मौसम के कारण लगातार बदलती रहती हैं। उन्होंने जिक्र कियाकि एक तस्करी करने वाला जहाज मछली पकड़ने वाली नाव जैसा दिख सकता है, एक आतंकवादी समूह समुद्र की खुली जगह का लाभ उठा सकता है और खतरे अदृश्य रूपसे उभर सकते हैं। उन्होंने कहाकि समुद्री सुरक्षा स्थलीय सीमाओं की तुलना में कहीं अधिक जटिल और अप्रत्याशित है और इसके लिए निरंतर सतर्कता की आवश्यकता होती है। राजनाथ सिंह ने कहाकि भारत की 7500 किलोमीटर लंबी तटरेखा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय क्षेत्रों केसाथ मिलकर भारी चुनौतियां प्रस्तुत करती है, जिसके लिए उन्नत प्रौद्योगिकी, अच्छी तरह से प्रशिक्षित कार्मिकों और चौबीस घंटे निगरानी की आवश्यकता होती है। रक्षामंत्री ने आईसीजी के आपदा प्रबंधन एवं बचाव कार्यों पर प्रकाश डाला और कहाकि चाहे चक्रवात, तेल रिसाव, औद्योगिक दुर्घटनाएं या संकटग्रस्त विदेशी जहाजों की स्थिति में सहायता करना हो आईसीजी ने हमेशा जानमाल की रक्षा केलिए तत्परता से कार्य किया है। उन्होंने कहाकि विश्व भारत का मूल्यांकन इस आधार पर करता हैकि हम ऐसे संकटों में कैसे कार्य करते हैं और आईसीजी हमें लगातार सम्मान दिलाता रहा है।
राजनाथ सिंह ने आईसीजी में महिला सशक्तिकरण पर कहाकि आज महिला अधिकारी न केवल सहायक भूमिकाओं, बल्कि अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं के रूपमें भी कार्यरत हैं, उन्हें अब पायलट, पर्यवेक्षक, होवरक्राफ्ट ऑपरेटर, हवाई यातायात नियंत्रक, लॉजिस्टिक्स अधिकारी और विधि अधिकारी के रूपमें प्रशिक्षित और तैनात किया जा रहा है। उन्होंने कहाकि यह परिवर्तन समावेशी भागीदारी के हमारे विजन को दर्शाता है, जहां महिलाएं नेतृत्व और प्रचालनगत क्षमताओं में समान रूपसे योगदान देती हैं। रक्षामंत्री ने कहाकि समुद्री खतरे तेज़ीसे प्रोद्योगिकी संचालित और बहुआयामी होते जा रहे हैं, तस्करी या समुद्री डकैती के जो तरीके पहले आसानी से समझ में आते थे, वे अब जीपीएस स्पूफिंग, रिमोट-नियंत्रित नावों, एंक्रिप्टेड संचार, ड्रोन, सैटेलाइट फ़ोन और यहां तककि डार्क वेब पर चलने वाले नेटवर्क का इस्तेमाल करके परिष्कृत गतिविधियों में बदल गए हैं। उन्होंने चेतावनी दीकि आतंकवादी संगठन अपनी गतिविधियों की योजना बनाने केलिए डिजिटल मैपिंग और रीयलटाइम इंटेलिजेंस जैसे आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। राजनाथ सिंह ने कहाकि पारंपरिक तरीके अब पर्याप्त नहीं हैं, हमें अपने समुद्री सुरक्षा ढांचे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग आधारित निगरानी, ड्रोन, साइबर रक्षा प्रणाली और स्वचालित प्रतिक्रिया तंत्र को एकीकृत करके अपराधियों और विरोधियों से आगे रहना होगा।
रक्षामंत्री ने सावधान कियाकि साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध अब काल्पनिक ख़तरे नहीं, बल्कि वर्तमान वास्तविकताएं हैं। उन्होंने कहाकि कोई देश मिसाइलों से नहीं, बल्कि हैकिंग, साइबर हमलों और इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग से हमारी प्रणालियों को पंगु बनाने की कोशिश कर सकता है। उन्होंने कहाकि आईसीजी को ऐसे ख़तरों से बचाव के लिए अपने प्रशिक्षण और उपकरणों को निरंतर उन्नत और अनुकूलित करना होगा। राजनाथ सिंह ने रेखांकित कियाकि पड़ोसी देशों में अस्थिरता अक्सर समुद्री क्षेत्रमें भी फैल जाती है। उन्होंने म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल और अन्य क्षेत्रीय देशों में लगातार हो रहे घटनाक्रमों को संदर्भित किया जो शरणार्थियों की घुसपैठ, अवैध प्रवास और अनियमित समुद्री गतिविधियों, विशेष रूपसे बंगाल की खाड़ी में तटीय सुरक्षा को प्रभावित करती हैं। उन्होंने आईसीजी से न केवल नियमित निगरानी बनाए रखने, बल्कि भू-राजनीतिक जागरुकता और बाहरी गतिविधियों पर त्वरित प्रतिक्रिया देने केलिए तत्परता बनाए रखने का भी आग्रह किया। समुद्री सुरक्षा को भारत की आर्थिक समृद्धि से सीधे जोड़ते हुए रक्षामंत्री ने इस कहाकि बंदरगाह, नौवहन मार्ग और ऊर्जा अवसंरचना देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएं हैं। उन्होंने कहाकि समुद्री व्यापार में किसी भी तरह का व्यवधान, चाहे वह वास्तविक हो या साइबर, सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है, हमें राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा को एक ही मानना होगा।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आईसीजी से भविष्योन्मुखी रोडमैप तैयार करने का आग्रह किया, जो नई चुनौतियों का पूर्वानुमान लगा सके, अत्याधुनिक तकनीकों को एकीकृत और रणनीतियों को निरंतर अनुकूलित कर सके। उन्होंने कमांडरों को याद दिलायाकि अब युद्ध महीनों में नहीं, बल्कि घंटों और सेकंडों में मापा जाता है, क्योंकि उपग्रह, ड्रोन और सेंसर संघर्ष की प्रकृति को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। उन्होंने कहाकि तैयारी, अनुकूलनशीलता और त्वरित प्रतिक्रिया आईसीजी के विजन की आधारशिला होनी चाहिए। रक्षामंत्री ने कहाकि 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की भारत की यात्रा समृद्धि और सुरक्षा के दो स्तंभों पर टिकी है। उन्होंने भारतीय तटरक्षक बल के आदर्श वाक्य 'वयं रक्षामः' (हम रक्षा करते हैं) का उल्लेख करते हुए इसे सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि एक प्रतिज्ञा बताया। उन्होंने कहाकि यह प्रतिज्ञा, जो प्रत्येक भारतीय तटरक्षक कर्मी में निहित है, यह सुनिश्चित करती हैकि हम आने वाली पीढ़ियों को एक मज़बूत, सुरक्षित और आत्मनिर्भर भारत सौंपें। उन्होंने कहाकि यह सम्मेलन अंतर सेना समन्वय को बढ़ाने, समुद्री क्षेत्रमें जागरूकता को सुदृढ़ करने और यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैकि भविष्य की क्षमताएं भारत की राष्ट्रीय समुद्री प्राथमिकताओं के अनुरूप हों। नौसेना प्रमुख और इंजीनियर इन चीफ, प्रतिष्ठित प्रतिभागी, परिचालन प्रदर्शन, लॉजिस्टिक्स, मानव संसाधन विकास, प्रशिक्षण और प्रशासन पर चर्चा करेंगे, जिसमें भारत की समुद्री उपस्थिति को मज़बूत करने पर रणनीतिक ज़ोर दिया जाएगा।
आईसीजी महानिदेशक परमेश शिवमणि ने सम्मेलन का उद्घाटन किया और हाल की उपलब्धियों, प्रचालनगत चुनौतियों और सेना के रणनीतिक विजन का अवलोकन प्रस्तुत किया। स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता पर बल दिया गया, जिसमें आईसीजी की स्वदेशी प्लेटफार्मों और प्रौद्योगिकियों पर बढ़ती निर्भरता सरकार के आत्मनिर्भर भारत के विजन को दर्शाती है। गौरतलब हैकि अपनी स्थापना के बादसे आईसीजी ने भारतीय जल क्षेत्र में अवैध गतिविधियों में शामिल 1638 विदेशी जहाजों और 13775 विदेशी मछुआरों को पकड़ा है। इसने 37833 करोड़ रुपये मूल्य के 6430 किलोग्राम नशीले पदार्थ भी जब्त किए हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री अपराध से निपटने में इसकी बढ़ती प्रभावशीलता को दर्शाता है। खोज और बचाव अभियानों केप्रति आईसीजी का समर्पण उल्लेखनीय है, इसवर्ष जुलाई तक 76 मिशन चलाए, जिनमें 74 लोगों की जान बचाई और आपदा प्रतिक्रिया अभियानों में 14500 से अधिक लोगों की जान बचाई। आईसीजी ने एमवी वान हाई 503 में आग लगने और केरल तट पर एमवी एमएससी ईएलएसए -3 के डूबने जैसी गंभीर घटनाओं के दौरान प्रचालनगत तत्परता और पर्यावरणगत संरक्षण क्षमताओं का भी प्रदर्शन किया है। इस अवसर पर रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह, सचिव (रक्षा उत्पादन) संजीव कुमार, रक्षा मंत्रालय और आईसीजी के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।