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अयोध्याजी जीवंत स्वप्न और आध्यात्मिक लोक!

'मेरी अयोध्या धाम यात्रा मेरा देशाटन और मेरा आध्यात्मिक दर्शन'

श्रीराम मंदिर सनातनियों का एक अद्भुत और आश्चर्य धर्मस्थल

Tuesday 2 December 2025 03:59:32 PM

अशोक मधुप

अशोक मधुप

nirmal and ashok madhup

एक पेशेवर पत्रकार केलिए अनुभव के अनुसार कुछ न कुछ खोजते लिखते सृजन करते रहना उसके जीवन की सच्चाई है, उसके साथ देशाटन भी हो जाए तो मेरा और मेरी अर्धांगिनी निर्मल केलिए यह सबसे पसंदीदा है। देशाटन की बात आई है तो हमारा लंबा अनुभव हैकि देशाटन अगर बहुमुखी हो तो उसका महत्व और आनंद ही कुछ और हो जाता है। एक लंबी प्रतीक्षा केबाद हमारे लिए देशाटन का एक शानदार अवसर आया। हमारे पत्रकार संगठन उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन हम पत्रकारों केलिए ऐसे शानदार अवसर लाया करती है, जिसमें पेशेवर कार्यशालाएं हों और देशाटन भी और वह भी किसी ऐतिहासिक स्थल और देश का देशाटन। उत्तर प्रदेश में भारत के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक और आध्यात्मिक नगर अयोध्या में उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के अधिवेशन का संदेश मिलते ही हम दोनों पति-पत्नी उसमें शामिल होने की उत्सुकता से भर गए। यह सबसे ज्यादा प्रफुल्लित और उत्सुक कर देने वाला पल था और वैसे भी हमें कभी अयोध्या आने का अवसर ही नहीं मिला था। उत्तर प्रदेश श्रमजीवी पत्रकार यूनियन का अधिवेशन और उसकी कार्यशालाएं मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में हों और वहां भगवान श्रीराम के नवनिर्मित भव्य मंदिर धाम में रामलला और उनकी सारी कलाओं के बहुत सुलभ और आह्लादित दर्शन होंगे, हम उस दिन यानी 6 और 7 नवंबर 2025 की प्रतीक्षा करने लगे।
ऐसी यात्रा केलिए भावनाएं बहुत प्रबल होती हैं इसलिए एक माह कब गुजर गया तैयारी का पता ही नहीं चला। जिज्ञासा दिनोंदिन बढ़ रही थीकि जो दुनिया के सनातनधर्मियों की प्रबल आस्था का विश्वविख्यात केंद्र है, वहां भगवान श्रीराम की राजधानी और उनका मंदिर कितना भव्य होगा! आखिर ट्रेन से अयोध्याश्री के प्रस्थान का समय आ गया। एकबात तो पहले से ही मेरे अनुभव में हैकि देशाटन पर जाइए तो आने जाने और ठहरने का पहले से ही प्रबंध सुनिश्चित कर लेना जरूरी है, क्योंकि देशाटन ज्ञान आरामदायक यात्रा और खुशियों से जीने केलिए है, तनावपूर्ण यात्रा केलिए नहीं है। एक सच यह भी हैकि नरेंद्र मोदी सरकार ने देश में कहीं भी आवागमन का यातायात सुगम बना दिया है। रेल सेवाएं सबसे आरामदायक हो गई हैं। पर्यटन और कनेक्टिविटी ने सब आसान कर दिया है। हमारा अयोध्या का रेल आरक्षण था और हम दोनों यात्रा शुरू करने अगले दिन सवेरे अयोध्या में थे। अयोध्या रेलवे स्टेशन वाकई में सजाधजा है। पूरी अयोध्या आस्थामय है। श्रीराम मंदिर आने-जाने वाले मार्गों पर मंदिरों में घंटियों और शंखों की आवाज़, श्रीरामायण के रचयिता आचार्य तुलसीदास की चौपाइयां और छन्द कर्णों में गूंज रहे हैं। एक पंडा हमें यहां का सिलसिलेवार यहां का महत्व बता रहा था, लेकिन यह भी सावधानी बरतने की आवश्यकता हैकि किसी भी ट्रेवल एजेंसी या ऑटो या फिर पंडाओं से कुछ तो सावधानी जरूरी है।
अयोध्याश्री में श्रीराम जानकी महल में हमारी पत्रकार यूनियन के प्रबंधन ने पत्रकारों के ठहरने की अच्छी व्यवस्था कराई थी। पत्रकारों केलिए खानपान की व्यवस्था की भी तारीफ करनी होगी। हमारी पत्रकार अधिवेशन और उसकी कार्यशालाओं में तो दिलचस्पी थी। उसमें विशिष्ट अतिथि आमंत्रित किए गए थे, जिनमें राज्य के दो मंत्रीगण और श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के सचिव और विहिप के नेता चंपत राय भी शामिल हैं। पत्नी निर्मल अयोध्या में श्री हनुमानगढ़ी में संकटमोचक हनुमान और श्रीराम जन्मभूमि पर भगवान श्रीरामलला के मंदिर और उनके दिव्य दर्शनों केलिए बहुत अधीर थी। हम कह रहे थेकि कभी हम अयोध्याजी नहीं आए, मगर हमारे पत्रकार संगठन ने हमें अयोध्या दिखा दी। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव चम्पत रायजी का हमें आतिथ्य मिला। सादगीपूर्ण व्यक्तित्व के धनी और श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के सम्पूर्ण निर्माण के दृष्टा हैं चम्पत रायजी। उनसे मंदिर निर्माण व्यवस्था जैसे विषयों पर काफी चर्चा हुई। उन्होंने अयोध्या में श्रीराम मंदिर और श्रीरामलला के दर्शन आदि को बहुत सुलभ बनाया।
यद्यपि अयोध्या में सभी केलिए दर्शन, भ्रमण भजन और कीर्तन सहज सुलभ है। दर्शन भ्रमण में कोई भी परेशानी नहीं हुई। श्रीराम मंदिर और रामलला के दर्शन केलिए यदि अयोध्याजी जा रहे हैं तो निश्चिंत होकर जाएं। ये मानकर जाएंकि रामलला के घर जा रहे हैं। बस फिर दर्शन कार्यक्रम केलिए कोई सिफारिश या चिंता नहीं। सुरक्षा प्रबंध कड़े हैं और पुलिस आपके साथ है। श्रीराम मंदिर में दर्शन करिए और 20 से 30 मिनट में दर्शनकर मंदिर से बाहर आ जाइए। हमने देश विदेश के अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल देखे हैं, किसीभी धर्मस्थल, तीर्थस्थल के इससे ज्यादा सुलभ दर्शन कहीं संभव नही हैं। श्रीराम मंदिर आज दुनिया के हिंदुओं की आस्था का प्रमुख दिव्य तीर्थ है। यहां प्रतिदिन करीब 80 हजार से एक लाख भक्त रामलला के दर्शनकर उन्हें प्रणाम करते हैं। कई अवसर पर तो ये संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा हो जाती है। दुनियाभर के लगभग हर सनातनी के मन में यह प्रबल इच्छा हैकि किसी तरह वह अयोध्या जाकर श्रीराम मंदिर और रामलला के दर्शन कर सके। रामलला के दर्शन को बड़ी संख्या में आ रहे श्रद्धालुओं को देख मेरे साथी लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शर्मा ने कहा थाकि दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों के अपने-अपने श्रद्धा मान्यता पूजनीय धर्म स्थान हैं, लेकिन दुनिया के हिंदू धर्मावलंबी सनातनियों केलिए अयोध्या हिंदुओं का विश्व का प्रमुख श्रद्धा आस्था केंद्र होगा जहां आकर प्रत्येक हिंदू सनातनी अपने जीवन को एक लक्ष्य और धन्य बनाएगा।
अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनने से पहले कभी श्रद्धालुओं को संकरी गलियों, टेढ़े मेढ़े उबड़ खाबड़ रास्तों से गुजरकर श्रीराम मंदिर तक पहुंचना होता था। उस समय की सरकारों में अयोध्या की भारी उपेक्षा होती आई है। आम श्रद्धालुओं केलिए अयोध्या यात्रा और कितनी दुरूह रहती होगी, यह समझते बनता है, इस सबके बावजूद यहां आने वाले श्रद्धालुओं का उत्साह और जोश कम नहीं था। श्रीराम का भव्य परिसर और भव्य मंदिर बन गया है, जिसकी छटा देखते ही बनती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 नंवबर को श्रीराम मंदिर पर भव्य समागम में ध्वजारोहण किया। इसके प्रत्यक्षदर्शी बनने केलिए दुनियाभर से प्रमुख व्यक्ति पहुंचे। अयोध्या आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु इस बात को लेकर आंशकित होता हैकि इतनी भीड़ में दर्शन कैसे होंगे? पूजा कैसे होगी? प्रसाद कैसे चढ़ेगा? सब चाहते हैंकि श्रीराम मंदिर में आगमन की स्मृति फोटो अपने पास सुरक्षित रखें। यहां न पूजा की व्यवस्था है, न प्रसाद चढ़ाने का प्रबंध। यहां पूजन कराने वाले पुजारी भी नहीं हैं। मंदिर आइए, श्रीराम मंदिर और रामलला के दर्शन करिए। प्रभु को शीश नवाकर बाहर आ जाइए। यहां प्रसाद लेजाना मना है, मंदिर की ओर से ही श्रद्धालु को प्रसाद मिलता है। मंदिर परिसर में मोबाइल वर्जित है। परेशानी उन्हें होती है, जो सुरक्षा नियमों और प्रबंधों की उपेक्षा करते हैं। उन्हें मंदिर के गेट पर लॉकर में मोबाइल रखकर ही दर्शन को जाना पड़ता है। इस तरह इन्हें अन्य श्रद्धालुओं से एक डेढ़ किलोमीटर ज्यादा चलना होता है।
श्रीराम मंदिर में अपने सामान रखने केलिए लॉकर की व्यापक व्यवस्था है, किंतु इस काम में लगभग आधा घंटा लग जाता है। अच्छा यह हैकि अपना पर्स, लैदर की बैल्ट, मोबाइल और कैमरा अपने कमरे पर छोड़ कर मंदिर दर्शन को जाएं। आईडी और जरूरत केलिए रुपये जेब में रखलें। हमने ऐसा ही किया। इससे श्रीराम मंदिर जाने का हमारा आधे से एक घंटा बच गया। श्रीराम मंदिर ट्रस्ट ने व्हील चेयर की सुविधा दी है, मगर दिव्यांगों का मंदिर जाने का रास्ता अलग से है। श्रीराम मंदिर निर्माण केबाद अयोध्या के चारों ओर बड़ा विकास हो रहा है। ये विकास सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। करीब 15 से 16 करोड़ यात्री प्रतिवर्ष यहां आने लगे हैं। उम्मीद की जाती हैकि भविष्य में यह संख्या और बढ़ेगी। अयोध्या नगर सीमा में प्रवेश से पहले ही होटल, गेस्टहाउस, परिवहन सेवाएं, स्थानीय व्यापार व स्मृतिचिंतन उद्योग की रफ्तार गति पर है। इस प्रकार अयोध्या का महत्व उजागर हो रहा है और अयोध्या की पहचान बदल रही है। अयोध्या में विकास की कई बुनियादी संरचना परियोजनाएं लाई गई हैं।
अयोध्या की एयर कनेक्टिविटी केलिए यहां महर्षि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे का निर्माण हुआ है। इसमें विभिन्न चरणों में टर्मिनल और रनवे विस्तार भी है। चक्रवर्ती सम्राट राजर्षि दशरथ के नामपर स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय एवं मेडिकल कॉलेज का निर्माण किया गया है। अयोध्या को आधुनिक और विश्व प्रसिद्ध नगर बनाने केलिए क्या नहीं किया जा रहा है। अयोध्या धाम में अब श्रेष्ठतम रेलवे स्टेशन है। यात्रियों केलिए तीन सौ के आसपास डार्मेट्री और रिटायरिंग रूम बनाए गए हैं। श्रीराम मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थलों केलिए पैदल जाने का मार्ग विकसित किया जा रहा है। इसे भक्तिपथ नाम दिया गया है। यह मार्ग रामपथ से निकलता है। पैदल यात्रियों केलिए खास व्यवस्था है। यहां दुकानों, घरों को अलग रंगरूप दिया गया है। भक्तिपथ वाले हिस्सों में ‘सफ़ेद एवं भोरका’ रंग के बजाय एक विशिष्ट सजावट का उपयोग हुआ है। भक्तिपथ मंदिर मार्ग के उन हिस्सों को सूचीबद्ध करता है, जहां पैदल यात्रा अधिक होती है। उन्हें आरामदायक एवं सुरक्षित मार्ग दिया गया है। श्रीराम मंदिर तक पहुंच वाले मार्ग का नाम रामपथ है। यह एक प्रकार से रिंगरोड जैसा है। यह मार्ग लगभग 13 किलोमीटर लंबा है और प्रमुख रूपसे सहादतगंज से लेकर नयाघाट तक जाता है।
रामपथ के दोनों किनारों पर दुकानों घरों की एकरूप मरम्मत एवं पेंटिंग की गई है। सभी की एक समान रंगरूप में सजावट। सड़क को चौड़ा किया गया है, मुख्य रूपसे सड़क की 40 फीट या उससे अधिक चौड़ाई। लाइटिंग सिस्टम, फावड़े प्लांटर्स, पेड़ पौधे, फुटपाथ, मिडियन में धार्मिक प्रतीक स्तंभ सुशोभित होते हैं। स्थानीय प्रशासन ने श्रद्धालुओं केलिए यहां गोल्फ कार्ट (इलेक्ट्रिक बग्गी) चलाई है। इसका किराया 20 रुपया यात्री रखा गया है। सरकारी गोल्फ कार्ट के कारण ई रिक्शा चालक भी मनमाने दाम नहीं वसूल कर पाते हैं। पुरानी परंपरा के हिस्से के रूपमें 84 कोसी परिक्रमा मार्ग का अब श्रद्धा परिक्रमा मार्ग नाम है। इसे राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा (एनएच-227B) मिला है। इससे अयोध्या और आसपास के तीर्थस्थलों का जुड़ाव बढ़ गया है। पुलों और फ्लाई ओवर के दोनों ओर भगवान श्रीराम के जीवन से संबंधित झांकियां बनाई गई हैं। नगर केबीच से एक पंचकोसी प्रतिक्रमा के विकास पर भी काम चल रहा है। यहां की परिवहन व्यवस्था में सुधारों से न केवल तीर्थयात्रियों की सहजता बढ़ी है, बल्कि स्थानीय व्यापार संवाद और रोज़गार अवसरों में भी इजाफा हुआ है। आखिर आधुनिक विकास सिर्फ बड़ी इमारतें या सड़कें नहीं, बल्कि बेहतर जीवन मान और पर्यावरण संगत भी है। अयोध्या को ‘मॉडल सोलर सिटी’ घोषित किया गया है। चालीस मेगावाट का सौर संयंत्र सरयू नदी के किनारे स्थापित किया गया है, इससे शहर की मांग की लगभग 25-30 प्रतिशत ऊर्जा पूरा हो रही है। यहां 550 एकड़ के नव्या अयोध्या टाउनशिप का विकास हुआ है, जिसमें स्मार्ट बिजली डक्स, भूमिगत नाली-प्रणाली है। सरयू के घाटों का सौंदर्यीकरण व लॉन्ग वॉक-वे बनाए गए हैं। सरयू घाट की आरती देखने को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। आरती की और ज्यादा भव्यता और उसके प्रबंधन पर काम चल रहा है।
सुझाव के तौरपर इसे देखने केलिए बड़े टीवी स्क्रीन भी लगाए जा सकते हैं, ताकि श्रद्धालु कहीं भी बैठकर आराम से सरयू आरती देख सकेंगे। अयोध्या अब सिर्फ दर्शन तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि सांस्कृतिक और अनुभव आधारित पर्यटन पर भी यहां बहुत ध्यान दिया गया है। यहां नए संग्रहालय व सांस्कृतिक केंद्र बनाए जा रहे हैं। मंदिर परिसर के आसपास संग्रहालय, रामायण अध्ययन संस्थान जैसी योजनाएं चल रही हैं। उत्सव व कार्यक्रम को रोचक बनाया जा रहा है। दीपोत्सव में लाखों दीये, ड्रोन शो आदि का आयोजन होने लगा है, जो सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण का केंद्र बना है। पारंपरिक हस्तशिल्प व पर्यटन वस्तुओं को भी यहां बढ़ावा मिल रहा है, इससे स्थानीय कारीगरों को नए नए अवसर मिल रहे हैं। अयोध्या सिर्फ पूजापथ ही नहीं, बल्कि समृद्धि पथ भी है। यह उद्यम नगर बनता जा रहा है, लेकिन यह महत्वपूर्ण हैकि यह विकास वैश्विक दर्जे का होने केसाथ-साथ स्थानीय अनुभव सक्षम और पर्यावरण अनुकूल भी बने। अयोध्या का प्राचीन नाम साकेत है। भगवान श्रीराम के समय साकेत ही भव्य नगर था।
भगवान श्रीराम के साकेत पर महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की साकेत पर ये पंक्तियां इस नगर का भव्य चित्रण करती हैं-
देख लो, साकेत नगरी है यही, स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
केतु-पट अंचल-सदृश हैं उड़ रहे,कनक-कलशों पर अमर-दृग जुड़ रहे।
सोहती हैं विविध-शालाएं बड़ी, छत उठाए भित्तियां चित्रित खड़ीं।
गेहियों के चारु-चरितों की लड़ी, छोड़ती हैं छाप, जो उन पर पड़ी!
स्वच्छ, सुंदर और विस्तृत घर बने, इंद्रधनुषाकार तोरण हैं तने।
देव-दंपती अट्ट देख सराहते, उतरकर विश्राम करना चाहते।
फूल-फलकर, फैलकर जो हैं बढ़ी, दीर्घ छज्जों पर विविध बेलें चढ़ी
पौरकन्याएं प्रसून-स्तूप कर, वृष्टि करती हैं यहीं से भूप पर।
फूल-पत्ते हैं गवाक्षों में कढ़े, प्रकृति से ही वे गए मानो गढ़े।
दामनी भीतर दमकती है कभी, चंद्र की माला चमकती है कभी।
सर्वदा स्वच्छंद छज्जों के तले,प्रेम के आदर्श पारावत पले।
केश-रचना के सहायक हैं शिखी, चित्र में मानो अयोध्या है लिखी!

(लेखक अशोक मधुप वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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