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Tuesday 23 September 2025 02:03:17 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ, राष्ट्रीय संग्रहालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सहयोग से रूस के राज्य काल्मिकिया की राजधानी एलिस्टा में पहलीबार तीसरे अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध मंच में राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में संग्रहित पवित्र बौद्ध अवशेषों की प्रदर्शनी लगाई जा रही है। कल 24 से 28 सितंबर 2025 तक यह प्रदर्शनी लगेगी। प्रदर्शनी में वरिष्ठ भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय भिक्षुओं का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी गया है, जो इस क्षेत्रकी बौद्ध बहुल आबादी केलिए प्रार्थना करेगा। प्रदर्शनी में नई सहस्राब्दी में बौद्धधर्म विषय पर अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध मंच का मुख्य आकर्षण भारत से शाक्यमुनि के पवित्र अवशेष आईबीसी और राष्ट्रीय संग्रहालय की चार प्रदर्शनियां और तीन विशेष शैक्षणिक व्याख्यान होंगे। भगवान गौतम बुद्ध के पवित्र अवशेष एलिस्टा के मुख्य बौद्धमठ में स्थापित किए गए हैं। इसे गेडेन शेडुप चोइकोरलिंग मठ के नामसे भी जाना जाता है, जो शाक्यमुनि बुद्ध का स्वर्णिम निवास भी कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण तिब्बती बौद्ध केंद्र है, जिसे 1996 में जनता केलिए खोला गया था और यह काल्मिक मैदानों से घिरा हुआ है।
गौरतलब हैकि काल्मिकिया के भिक्षुओं के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने भारत का दौरा किया था और भारत के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत एवं संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू से बुद्ध के पवित्र अवशेषों को उनके गृहनगर में पूजा और आशीर्वाद केलिए लेजाने का अनुरोध किया था। इस अवसर पर समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर भी किए जाएंगे, इनमें एक समझौता ज्ञापन केंद्रीय बौद्ध रूस आध्यात्मिक प्रशासन और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ केबीच और दूसरा नालंदा विश्वविद्यालय केसाथ है। राष्ट्रीय संग्रहालय से पवित्र अवशेष को वरिष्ठ भिक्षु पूर्ण धार्मिक पवित्रता और प्रोटोकॉल केसाथ भारतीय वायुसेना के एक विशेष विमान में काल्मिकिया ले गए हैं। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल पवित्र अवशेषों केसाथ गया है। आईबीसी के महानिदेशक के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल में तिब्बती बौद्धधर्म के शाक्य संप्रदाय के प्रमुख 43वें शाक्य त्रिजिन रिनपोछे, द्रेपुंग गोमांग मठ के 13वें कुंडलिंग तकत्सक रिनपोछे, 7वें योंगजिन लिंग रिनपोछे और 17 वरिष्ठ भिक्षु शामिल हैं। भारत के तीन वरिष्ठतम भिक्षु स्थानीय भक्तों केलिए आशीर्वाद सत्र आयोजित करेंगे।
राष्ट्रीय संग्रहालय और आईबीसी भगवान बुद्ध के जीवन की चार महान घटनाओं को दर्शाती मूर्तिकला और कलाकृतियों की तीन प्रदर्शनियां हैं। इसमें शाक्य वंश की भी एक प्रदर्शनी है, जो राजधानी प्राचीन कपिलवस्तु पिपरहवा से शाक्यों की पवित्र विरासत-बुद्ध अवशेषों की खुदाई और प्रदर्शनी पर आधारित है। राष्ट्रीय संग्रहालय की प्रदर्शनी में ‘स्थायित्व की कला अपने राष्ट्रीय संग्रह दिल्ली से बौद्ध कला’ प्रदर्शित की गई है। प्रख्यात कलाकार पद्मश्री वासुदेव कामथ भी इस प्रदर्शनी में अपनी कलाकृतियों को ले गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध मंच पर 35 से अधिक देशों के आध्यात्मिक गुरू और अतिथि आएंगे। आईबीसी रूसी भाषा में एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) चैट बॉट का प्रदर्शन भी कर रहा है। यह एक वर्चुअल तकनीक है, जो बुद्ध धम्म की व्यापक समझ प्रदान करती है। इसे नोरबू कल्याण मित्त यानी आध्यात्मिक मित्र कहा जाता है। आईबीसी और संस्कृति मंत्रालय का पांडुलिपि प्रभाग, पवित्र 'कंजूर' मंगोलियाई धार्मिक ग्रंथ-108 खंडों का एक संग्रह, नौ बौद्ध संस्थानों और एक विश्वविद्यालय केलिए भेंट करेंगे, जो मूल रूपसे तिब्बती कंजूर से अनूदित है। तीसरा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध मंच एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य आध्यात्मिक संवाद को बढ़ावा देना और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना है, क्योंकि काल्मिकिया यूरोप का एकमात्र बौद्ध क्षेत्र है।
विशाल घास के मैदान काल्मिकिया की विशेषता है, हालॉकि इसमें रेगिस्तान भी है और यह रूस के यूरोपीय क्षेत्रके दक्षिण पश्चिमी भाग में है, जो कैस्पियन सागर की सीमा से लगा हुआ है। काल्मिक ओइरात मंगोलों के वंशज हैं, जो 17वीं शताब्दी के आरंभ में पश्चिमी मंगोलिया से आकर बसे थे। उनका इतिहास खानाबदोश जीवन शैली से गहराई से जुड़ा है, जो उनकी संस्कृति को प्रभावित करता है। वे यूरोप में एकमात्र जातीय समूह हैं, जो महायान बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। ज्ञातव्य हैकि बुद्ध के पवित्र अवशेष मंगोलिया, थाईलैंड और वियतनाम भी दर्शानार्थ ले जाए जा चुके हैं। राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे पिपरहवा अवशेषों को 2022 में मंगोलिया ले जाया गया था, जबकि सांची में स्थापित बुद्ध और उनके दो शिष्यों के पवित्र अवशेषों को 2024 में थाईलैंड में प्रदर्शनी में ले जाया गया था। इसवर्ष 2025 में सारनाथ से बुद्ध के पवित्र अवशेषों को वियतनाम ले जाया गया। दिल्ली राष्ट्रीय संग्रहालय में 'बौद्ध गैलरी' में पहले इन अवशेषों की रूस लेजाने केलिए पूजा हुई और फिर इन्हें काल्मिकिया ले जाया गया। उल्लेखनीय हैकि इससे पहले जुलाई के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बुद्ध के अबतक खोजे गए सबसे आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व के खजानों मेंसे एक पवित्र रत्न अवशेषों की स्वदेश वापसी का जश्न मनाया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक संदेश में कहा थाकि हर भारतीय को इस बात पर गर्व होगाकि भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष 127 वर्ष के लंबे अंतराल केबाद स्वदेश (भारत) आ गए हैं। ये पवित्र अवशेष भगवान बुद्ध और उनकी महान शिक्षाओं केसाथ भारत के घनिष्ठ संबंध को दर्शाते हैं, ये हमारी गौरवशाली संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के संरक्षण और सुरक्षा केप्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाते हैं। उल्लेखनीय हैकि भारत हांगकांग से पिपरहवा अवशेषों से जुड़े रत्नों को सफलतापूर्वक वापस लाने में सफल रहा, जहां उनकी नीलामी की जाने वाली थी। संस्कृति मंत्रालय के नेतृत्व में भारत और दुनियाभर के बौद्धों केबीच धूमधाम और उत्साह केसाथ ये अवशेष भारत वापस लाए गए। बुद्ध शाक्य वंश के थे, जिनकी राजधानी कपिलवस्तु थी। वर्ष 1898 में एक उत्खनन के दौरान विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में बर्डपुर केपास पिपरहवा में एक लंबे समय से विस्मृत स्तूप में अस्थियों के टुकड़े, राख और रत्नों से भरे पांच छोटे कलश खोजे थे। बाद में केएम श्रीवास्तव ने 1971 और 1977 केबीच पिपरहवा स्थल पर और ज्यादा खुदाई की। टीम को जली हुई हड्डियों के टुकड़ों से भरा एक संदूक मिला, जो उन्होंने उन्हें चौथी या पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व का बताया। इन उत्खननों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) पिपरहवा की पहचान कपिलवस्तु के रूपमें करता है।