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Friday 8 August 2025 05:31:49 PM
नई दिल्ली। फरीदाबाद (हरियाणा) के 28 साल के वासु बत्रा उत्तर भारत में ऐसे पहले स्वस्थ मरीज बने हैं, जिनके कंधे की सर्जरी ह्यूमन डर्मल एलोग्राफ्ट (एचडीए) पैच की मदद से की गई है। यह इलाज आमतौर पर अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में होता है, लेकिन यह कामयाब सर्जरी 5 जून 2025 को अमृता हॉस्पिटल फरीदाबाद में हुई। बताया गया हैकि देश में यह सर्जरी पहलीबार हुई, जब फटी हुई रोटेटर कफ मांसपेशी की मरम्मत केलिए एचडीए पैच का इस्तेमाल किया गया। यह पैच खासतौर पर अमेरिका से भारत मंगवाया गया था। वासु बत्रा की 2021 में बार-बार कंधा खिसकने की समस्या थी, जिसकी बैंकार्ट सर्जरी हुई थी, लेकिन वह सर्जरी लंबे समय तक राहत नहीं दे पाई और समय केसाथ उनकी हालत और बिगड़ गई। कंधा कमजोर और अस्थिर बना रहा, जिससे उन्हें बार-बार दर्द और कंधा खिसकने की परेशानी होती रही। इसके लिए डॉक्टरों को एक और सटीक एवं एडवांस्ड सर्जरी करनी पड़ी।
भारत में दुर्लभ यह केस अमृता हॉस्पिटल फरीदाबाद के सीनियर ऑर्थोपेडिक और अपर लिंब सर्जन डॉ प्रियतर्शी अमित ने संभाला। डॉ प्रियतर्शी अमित ने विस्तार से बतायाकि यह केस बहुत गंभीर था, क्योंकि हड्डी और मांसपेशी दोनों को नुकसान पहुंचा था। डॉ प्रियतर्शी अमित ने कहाकि चूंकि जॉइंट सॉकेट काफी फट चुका था और कंधे की मांसपेशी बुरी तरह घिस चुकी थी, इसलिए हमें ऐसा इलाज चाहिए था, जो दोनों समस्याओं को सटीकता और मजबूती से ठीक कर सके, इसी वजह से हमने बोन ग्राफ्ट केसाथ-साथ ह्यूमन डर्मल एलोग्राफ्ट पैच लगाने का फैसला किया। डॉ प्रियतर्शी अमित विदेश में भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर चुके हैं। उन्होंने बतायाकि फटी हुई रोटेटर कफ मांसपेशी को ठीक करने केलिए उन्होंने यह डर्मल पैच लगाया। इस तकनीक से लंबे समय तक अच्छे परिणाम मिलने की उम्मीद थी और दोबारा मांसपेशी फटने का खतरा भी कम था। इसमें डॉक्टरों ने मरीज के कंधे की फटी हुई मांसपेशी को सहारा देने केलिए डोनर से मिली इंसानी त्वचा से बना एक पैच इस्तेमाल किया। इस पैच को ‘ह्यूमन डर्मल एलोग्राफ्ट’ कहा जाता है। यह शरीर को प्राकृतिक सहारा देता है और ठीक होने की प्रक्रिया में मदद करता है। इसे कंधे के खराब हिस्से पर लगाया गया, ताकि मरम्मत मजबूत हो सके और फिरसे चोट लगने का खतरा कम हो जाए।
ह्यूमन डर्मल एलोग्राफ्ट पैच का इस्तेमाल उत्तर अमेरिका में काफी ज्यादा होता है। वहां हर साल लगभग 20000 सर्जरी होती हैं, लेकिन भारत में यह तकनीक अभीभी बहुत कम इस्तेमाल होती है, क्योंकि यहां नियमों और लॉजिस्टिकल से जुड़ी कई चुनौतियां हैं। अमेरिका में हुई स्टडीज़ के अनुसार जिन मरीजों को यह पैच लगाया गया, उनमें कंधे की ताकत बेहतर पाई गई और मांसपेशी के दोबारा फटने की संभावना भी कम हो गई, जहां सामान्य सर्जरी में दुबारा फटने की दर 26 प्रतिशत होती है, वहीं पैच के इस्तेमाल से यह घटकर 10 प्रतिशत रह जाती है। वासु बत्रा के केस में यह पैच अमेरिका से अवाना मेडिकल डिवाइसेज़ के माध्यम से विशेष रूपसे उनके लिए मंगवाया गया था। अवाना मेडिकल डिवाइसेज़ प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पी सुंदरराजन ने कहाकि उन्हें इस महत्वपूर्ण केस में समय पर और नियमानुसार डर्मल एलोग्राफ्ट उपलब्ध करवाकर सहयोग देने पर गर्व है। उन्होंने कहाकि हमारा लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल तकनीकों को भारत तक पहुंचाना है, ताकि यहां के मरीजों कोभी बिना किसी देरी के विश्वस्तरीय इलाज मिल सके। उन्होंने कहाकि हम गर्व महसूस करते हैं, जब भारत में नई तकनीकों को लाकर सर्जनों को अपने मरीजों का बेहतर इलाज करने में मदद कर पाते हैं।
वासु बत्रा ने बतायाकि लगातार दर्द के कारण उनके लिए रोज़मर्रा के काम करना बहुत मुश्किल हो गया था, यहां तककि हाथ उठाना या कपड़े पहनना भी दूभर हो गया था। उन्होंने कहाकि पिछली सर्जरी के फेल होने केबाद उन्हें लगने लगा थाकि शायद मैं कभी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाऊंगा या सामान्य जीवन नहीं जी पाऊंगा, लेकिन इस नई सर्जरी ने उन्हें दोबारा उम्मीद दी है। भारत में 40 साल से ऊपर के लोगों में करीब 20 प्रतिशत कंधे की समस्याएं रोटेटर कफ इंजरी के कारण होती हैं और हर साल हजारों लोगों को सर्जरी की जरूरत पड़ती है। हालांकि कई मरीजों को कमजोर टिश्यू क्वालिटी (ऊतकों की गुणवत्ता) या बार-बार सर्जरी के कारण दोबारा चोट लगने या पूरी तरह ठीक न होने की समस्या होती है। बेहतर योजना और सटीक इलाज की वजह से वासु बत्रा को 24 घंटे के भीतर हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई और वे फिलहाल रिहैबिलिटेशन (पुनर्वास) प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। ह्यूमन एलोग्राफ्ट पैच के अलावा डॉ प्रियतर्शी अमित के नेतृत्व में सर्जरी टीम ने भारत में कई अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा तकनीकों को भी अपनाया है। इनमें से एक तकनीक आर्थ्रेक्स वर्चुअल इम्प्लांट पोजिशनिंग सिस्टम है, जो सीटी स्कैन से बने 3D मॉडल की मदद से कंधे की रीविजन रिप्लेसमेंट सर्जरी की पहले से सटीक योजना बनाने में मदद करता है। जर्नल ऑफ शोल्डर एंड एल्बो सर्जरी के अनुसार यह प्रक्रिया सर्जरी की सटीकता को 30 प्रतिशत तक बेहतर बनाती है, खासकर ऐसे रीविजन केसों में जहां शरीर की बनावट विकृत हो चुकी होती है।