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न्यायाधीश पर एफआईआर होनी चाहिए-उपराष्ट्रपति

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस लीगल स्टडीज में छात्रों को संबोधन

'न्यायाधीश के यहां मिले पैसे से न्यायपालिका का गढ़ डगमगा रहा'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 7 July 2025 07:37:23 PM

address to students at national university of advanced legal studies

कोच्चि। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि संवैधानिक प्रावधानों में न्यायाधीशों से निपटने का संवैधानिक तंत्र एक रास्ता है, लेकिन यह कोई समाधान नहीं है, क्योंकि हम एक लोकतंत्र होने का दावा करते हैं और हम हैं भी, दुनिया भी हमें एक परिपक्व लोकतंत्र मानती है, जहां कानून का शासन है, समानता है, जिसका अर्थ हैकि हर अपराध की जांच होती है और होनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहाकि यदि धन की मात्रा इतनी अधिक है तो हमें इसका पता लगाना होगा। क्या यह दागी धन है? इस धन का स्रोत क्या है? यह एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास में कैसे जमा किया गया था? यह किसका था? इस प्रक्रिया में कई दंड प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है। उन्होंने कहाकि मुझे उम्मीद हैकि एक एफआईआर दर्ज की जाएगी, हमें मामले की जड़ तक जाना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र केलिए यह महत्वपूर्ण हैकि हमारी न्यायपालिका जिस पर अटूट विश्वास है, उसकी नींव हिल गई है, इस घटना के कारण न्यायपालिका का गढ़ डगमगा रहा है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस लीगल स्टडीज (एनयूएएलएस) में आज छात्रों और शिक्षकों से बातचीत करते हुए शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक जूलियस सीजर का जिक्र करते हुए कहाकि ज्योतिषी ने जूलियस सीजर को चेतावनी दी थीकि मार्च के विचारों से सावधान रहें और जब सीजर महल से अदालत कक्ष में जा रहा था, तो उसने ज्योतिषी को देखा और उसने कहाकि मार्च की ईद आ गई है और ज्योतिषी ने कहाकि हां, लेकिन गई नहीं है और दिन खत्म होने से पहले सीजर की हत्या कर दी गई। उपराष्ट्रपति ने कहाकि मार्च की ईद दुर्भाग्य और कयामत से जुड़ी है, हमारी न्यायपालिका में भी 14 और 15 मार्च की रात ईद थी, यानी एक भयानक समय था, जब दिल्ली में एक न्यायाधीश के निवास पर बड़ी मात्रा में नकदी जमा थी। उन्होंने कहाकि मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यह अब सार्वजनिक डोमेन में है, आधिकारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा हैकि उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आधिकारिक निवास पर बड़ी मात्रा में नकदी मिली थी।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि अब मुद्दा यह हैकि अगर नकदी बरामद होती तो सिस्टम को तुरंत काम करना चाहिए था और पहली प्रक्रिया यह होनी चाहिए थीकि इसे आपराधिक कृत्य के रूपमें निपटाया जाए, जो लोग दोषी हैं, उन्हें ढूंढ़ा जाए, उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जाए, लेकिन अभी तक कोई एफआईआर तक नहीं हुई है। उन्होंने कहाकि केंद्र स्तरपर सरकार अक्षम है, क्योंकि 90 के दशक की शुरुआत में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मद्देनजर एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। छात्रों को समस्याओं का सामना करने का साहस रखने केलिए प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहाकि हमें समस्याओं का सामना करने का साहस रखना चाहिए, हमें असफलताओं को तर्कसंगत नहीं बनाना चाहिए, हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हम एक ऐसे देश से हैं, जिसे वैश्विक आख्यान को परिभाषित करना है, हमें एक ऐसे विश्व का निर्माता बनना है, जो शांति और सद्भाव में रहे, हमें सबसे पहले अपने संस्थानों के भीतर असहज सच्चाइयों का सामना करने का साहस रखना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहाकि मैं न्यायपालिका की स्वतंत्रता केलिए पूरी तरह से तैयार हूं, मैं न्यायाधीशों की सुरक्षा का भी प्रबल समर्थक हूं।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि न्यायाधीश बहुत कठिन परिस्थितियों से निपटते हैं, वे कार्यपालिका के खिलाफ मामलों का फैसला करते हैं, वे कुछ ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां विधायिका मायने रखती है, हमें अपने न्यायाधीशों को तुच्छ मुकदमेबाजी से बचाना चाहिए, इसीलिए मैं विकसित तंत्र के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन जब ऐसा कुछ होता है तो कुछ चीजें चिंताजनक होती हैं। उन्होंने कहाकि न्यायपालिका में हाल ही में उथल-पुथल भरे दौर रहे हैं, लेकिन अच्छी बात यह हैकि एक बड़ा बदलाव हुआ है, हम न्यायपालिका केलिए अब अच्छे दिन देख रहे हैं। उन्होंने कहाकि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और उनके तत्काल पूर्ववर्ती ने हमें जवाबदेही और पारदर्शिता का एक नया युग दिया है। वे चीजों को वापस पटरी पर ला रहे हैं, लेकिन पिछले दो साल बहुत परेशान करने वाले और बहुत चुनौतीपूर्ण रहे हैं, सामान्य व्यवस्था सामान्य नहीं थी, बिना सोचे-समझे कई कदम उठाए गए, उन्हें वापस लेने में कुछ समय लगेगा। उन्होंने कहाकि यह बहुत बुनियादी बात हैकि संस्थाएं मनोनुकूल निष्पादन केसाथ काम करें। उन्होंने यह भी कहाकि हमारे देश में न्यायपालिका पर लोगों का बहुत भरोसा है, बहुत सम्मान है, लोगों का न्यायपालिका पर उतना भरोसा है, जितना किसी और संस्था पर नहीं है, अगर यह भरोसा खत्म हो गया तो संस्था डगमगा जाएगी, हमें गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ेगा और 1.4 बिलियन का यह देश इससे पीड़ित होगा।
जगदीप धनखड़ ने न्यायाधीशों केलिए सेवानिवृत्ति केबाद के कार्यभार पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए इस बातपर जोर दियाकि कुछ संवैधानिक प्राधिकारियों को अपने पद केबाद कार्यभार संभालने की अनुमति नहीं है, जैसे लोक सेवा आयोग का सदस्य सरकार के अधीन कोई दूसरा कार्यभार नहीं ले सकता, सीएजी दूसरा कार्यभार नहीं ले सकता, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त दूसरा कार्यभार नहीं ले सकते, क्योंकि उन्हें स्वतंत्र होना चाहिए, उन्हें प्रलोभनों और लालचों के अधीन नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहाकि यह न्यायाधीशों केलिए नहीं था, क्यों? क्योंकि न्यायाधीशों से पूरी तरह से इससे दूर रहने की उम्मीद की जाती थी और अब हम सेवानिवृत्ति केबाद न्यायाधीशों को पद दे रहे हैं। उन्होंने कहाकि सभी को समायोजित नहीं किया जा सकता, केवल कुछ को समायोजित किया जा सकता है, इसलिए जब आप सभी को समायोजित नहीं कर सकते और कुछ को समायोजित करते हैं, जब चयन होता है तो संरक्षण होता है, यही हमारी न्यायपालिका को गंभीर रूपसे नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने कहाकि राष्ट्रपति और राज्यपाल ही दो ऐसे संवैधानिक पद हैं, जिनकी शपथ उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, संसद सदस्यों, विधानसभा सदस्यों और न्यायाधीशों जैसे अन्य पदाधिकारियों से अलग है, क्योंकि हम सभी उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं, किंतु राष्ट्रपति और राज्यपाल संविधान को बनाए रखने, उसकी रक्षा करने और उसका बचाव करने की शपथ लेते हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि उनकी शपथ न केवल बहुत अलग है, बल्कि उनकी शपथ उन्हें संविधान को बनाए रखने, उसकी रक्षा करने और उसका बचाव करने के कठिन कार्य केलिए बाध्य करती है। उन्होंने कहाकि मुझे उम्मीद हैकि राज्यपाल के पद केलिए इस संवैधानिक अध्यादेश केबारे में हर जगह अहसास होगा, राष्ट्रपति या राज्यपाल हमसभी जैसे उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों से अलग जो बात सामने आती है, वह यह हैकि केवल इन दो पदों को ही अभियोजन से छूट प्राप्त है, किसी और को छूट प्राप्त नहीं है। उन्होंने कहाकि जबतक वे पद पर हैं, कार्यालय में होने के कारण वे किसी भी लंबित या विचाराधीन अभियोजन से मुक्त हैं और मुझे बहुत खुशी और प्रसन्नता हैकि राजेंद्र वी आर्लेकर राज्यपाल के रूपमें बहुत उच्च मानक स्थापित कर रहे हैं, क्योंकि राज्यपाल को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। उन्होंने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन के बारेमें कहाकि भारतीय संविधान की प्रस्तावना बच्चों केलिए माता-पिता की तरह है, आप चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, आप अपने माता-पिता की भूमिका को नहीं बदल सकते। उन्होंने कहाकि ऐतिहासिक रूपसे किसी भी देश की प्रस्तावना को कभी नहीं बदला गया है, हमारे संविधान की प्रस्तावना को उस समय बदला गया था, जब सैकड़ों और हजारों लोग सलाखों के पीछे थे, वह हमारे लोकतंत्र का सबसे काला दौर था, आपातकाल का दौर था, जब इसे बदल दिया गया, जहां लोकसभा का कार्यकाल भी 5 साल से ज्यादा बढ़ा दिया गया था। उन्होंने कहाकि इसे उस समय बदला गया, जब लोगों की पहुंच न्याय प्रणाली तक नहीं थी, मौलिक अधिकार पूरी तरह से निलंबित कर दिए गए थे।
उन्होंने कहाकि यदि कोई संस्था न्यायपालिका, कार्यपालिका या विधायिका दूसरे के क्षेत्रमें हस्तक्षेप करती है तो इससे सबकुछ अस्तव्यस्त हो सकता है, इससे असहनीय समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जो हमारे लोकतंत्र के लिए संभावित रूपसे बहुत खतरनाक हो सकती हैं। उन्होंने कहाकि मैं इस बात से हैरान हूंकि सीबीआई निदेशक जैसे कार्यपालिका अधिकारी को भारत के मुख्य न्यायाधीश की भागीदारी केसाथ नियुक्त किया जाता है। उन्होंने कहाकि सीबीआई निदेशक पदानुक्रम में सबसे वरिष्ठ व्यक्ति नहीं है, उसके ऊपर कई परतें-सीवीसी, कैबिनेट सचिव, सभी सचिव भी हैं, आखिरकार वह एक विभाग का नेतृत्व कर रहा है। उन्होंने कहाकि आपको अपनी कलम का इस्तेमाल करना चाहिए। क्या यह दुनिया में कहीं और हो रहा है? क्या यह हमारी संवैधानिक योजना के तहत हो सकता है? उन्होंने कहाकि कार्यपालिका की नियुक्ति कार्यपालिका के अलावा किसी और के द्वारा क्यों की जानी चाहिए, मैं दृढ़ता से ऐसा कहता हूं।

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