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शराब के बाद पौंटी चढ्ढा ने अब कोयला भी हड़पा

श्रवण शुक्ला

श्रवण शुक्ला

शेयर होल्डरों की सूची-list of shareholders

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में तिकड़मों से शराब के व्यवसाय में एकाधिकार कायम करने वाले शराब के ठेकेदार पौंटी चढ्ढा चार साल से कोयले का भी जमकर कारोबार कर रहें है, लेकिन यह सारा काम इतनी सफाई से हो रहा है कि किसी को कानों कान खबर तक नहीं है। प्रदेश में 14,000 ईंट भट्टों व हजारों छोटे उद्योगों को कोयले की आपूर्ति के लिए प्रदेश सरकार ने वर्ष 2006 में उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम को नोडल एजेंसी बनाया। भारत सरकार से कोयले के उठान व विपणन कार्य के लिए निगम ने रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी के साथ वर्ष 2006 में तीन वर्षीय करार किया। इस कंपनी के खाने के दांत और हैं और दिखाने के अलग। वैसे तो रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स में दिल्ली के निवासी गजराज जैन, नोएडा निवासी जुनेद अहमद और जालंधर निवासी मनमोहन सिंह वालिया हैं परंतु पर्दें के पीछे खड़े असली मालिक और इसे चलाने वाले वास्तव में उत्तर प्रदेश सरकार के मुं‍ह लगे पौंटी चढ्ढा हैं।
उत्तर
प्रदेश में कोयले के व्यापार में पौंटी चढ्ढा का घुसना काफी रहस्यमय है। वर्ष 2004-2005 में प्रदेश सरकार ने खाद्य एवं आवश्यक वस्तु निगम को भारत सरकार से कोयला उठान का जिम्मा सौंपा था। पौंटी चढ्ढा ने राज्य के दो नामी मंत्रियों के सहारे एक लाख टन कोयले की उठान का अधिकार हासिल कर लिया। यह वह दौर था जब 2001 में कोयला कंट्रोल मुक्त होने के बाद भी भारत सरकार ने विभिन्न न्यायालयों में वाद-विवाद के चलते अपनी नई कोयला नीति नहीं घोषित की थी। वर्ष 2006 में कोयला के उठान का जिम्मा उप्र लघु उद्योग निगम को मिला। कोयले में अकूत काली कमाई का स्वाद चख चुके पौंटी चढ्ढा ने अपने धन-बल के जरिए निगम में ऐसी घुसपैठ की कि वहां भी उसका सिक्का चल पड़ा और वह आजतक चल रहा है। निगम ने पौंटी चढ्ढा को फायदा पहुंचाने के लिए एक ऐसी निविदा जारी की जिससे पौंटी चड्ढा की कंपनी के अलावा बाकी सब बाहर हो जाएं। इस निविदा की शर्त थी कि निगम सिर्फ उसी कंपनी को कोआर्डिनेटर नियुक्त करेगा जिसका एक वर्ष में एक लाख टन कोयला उठाने का अनुभव हो। रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के अलावा ऐसी कोई दूसरी कंपनी यहां थी ही नहीं। इसलिए उसको ही कोयला उठान का काम मिला। इतना ही नहीं निगम ने पौंटी चढ्ढा की कंपनी के एकाधिकार के लिए उससे तीन वर्ष का करार भी कर लिया।
इसी
बीच 2007 में भारत सरकार ने अपनी नई कोयला नीति घोषित की। इस नीति के अनुसार राज्य सरकारों को यह अधिकार दिए गए कि वे भारत सरकार से कोयले के उठान के लिए एक या उससे अधिक एंजेसियां नियुक्त कर सकती हैं। नई नीति के मुताबिक उप्र लघु उद्योग निगम को पुनः निविदाएं आमंत्रित करना चाहिए था, परंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। पौंटी चढ्ढा की रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को ही नई नीति के अनुसार भारत सरकार से कोयला उठान जारी रखने दिया गया। निगम के साथ इस कंपनी का करार 2009 में समाप्त होना था मगर निगम ने इसे बढ़ाकर 2010 तक कर दिया है। पिछली सरकार में अपने रसूख से कोयले के काले व्यापार में पैठ बना चुके पौंटी चढ्ढा के राजनीतिक समीकरण मई 2007 में मायावती सरकार के आने से बिगड़ते इसके पहले ही पौंटी चढ्ढा ने पंचम तल के एक वरिष्‍ठ अधिकारी से संपर्क साधा। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री मायावती के खास चहेते के रूप में विख्यात इस अधिकारी ने पौंटी चढ्ढा को सूबे की मुखिया के करीब लाने में अहम भूमिका निभाई। पंचम तल के बाकी वरिष्ठ अधिकारियों के विरोध के बावजूद।
आरोप
है कि इस अधिकारी ने न सिर्फ पौंटी चढ्ढा के कोयले व्यापार को जारी रखवाने में मदद की वरन् उसकी एक कंपनी को शराब व्यवसाय के एकाधिकार का भी न्यौता दे डाला। पौंटी चढ्ढा की इस डील की सत्ता के गलियारों में खासी चर्चा रही। प्रदेश में कोयले का यह कारोबार कम दिलचस्प नहीं है और अगर इसे करने का एकाधिकार पौंटी चढ्ढा के पास हो तो यह और भी दिलचस्प हो जाता है। पौंटी चढ्ढा की कंपनी प्रदेश में अब तक लगभग 7 लाख मीट्रिक टन कोयले की उठान व विपणन कर चुकी है। प्रदेश सरकार की तरफ से ईंट भट्टा मालिकों की मांग को ध्यान में रखते हुए 10.59 लाख मीट्रिक टन की एक अतिरिक्त मांग भारत सरकार को भेजी जा चुकी है। निगम के सूत्रों का कहना है कि यह उठान भी पौंटी चढ्ढा की ही कंपनी को दी जानी है। लगभग हजार करोड़ से ऊपर के कोयले के कारोबार में पौंटी चढ्ढा की कंपनी ने करोड़ों की काली कमाई की है। सरकार के नियमानुसार उठान मूल्य में ढुलाई-भाड़ा सम्मिलित कर कंपनी 5 प्रतिशत के मुनाफे पर इस कोयले को केवल उन्हीं को बेच सकती है जो कि पहले से इंडस्ट्रीज विभाग में रजिस्टर्ड हों। लेकिन ऐसा होता नहीं है। पहले से रजिस्टर्ड झूठी कंपनियों व ईंट भट्टों के नाम पर उठाया गया कोयला 15 से 25 प्रतिशत प्रीमियम पर खुले बाजार व जरूरतमंदों को बेंच दिया जाता है। केवल 30 से 40 प्रतिशत कोयला वास्तविक हकदारों को मिलता है। वो भी प्रीमियम चुकाने के बाद। ऐसे उद्यमियों से कोयले का वास्तविक मूल्य तो एक नंबर में लिया जाता है और बाकी रकम की उगाही काले धन के रूप में की जाती है।
अब
एक नजर पौंटी चढ्ढा की रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड पर। कहने को गजराज जैन, जुनेद अहमद व मनमोहन सिंह वालिया इस कंपनी के अतिरिक्त निदेशक व निदेशक हैं, पर सिवाए जुनेद अहमद के इनमें से किसी और के पास एक पैसे की भी हिस्सेदारी नहीं है। अहमद के पास भी मात्र दस रुपए का एक ही शेयर है। कंपनी के रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज में जमा आखिरी रिटर्न के अनुसार मेसर्स पौंटी चढ्ढा सुगर्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम 516666 इक्विटी शेयर हैं। इसी प्रकार अन्य हिस्सेदारों में सरिता विहार दिल्ली निवासी रमनदीप सिंह आनन्द के पास 166667 शेयर, नोएडा की मेसर्स गत्तपु केमिकल प्राइवेट लिमिटेड के पास 133334 शेयर व जुनेद अहमद के पास मात्र एक शेयर है। कम्पनी की हिस्सेदारी के हिसाब से पौंटी चढ्ढा की मेसर्स सुगर्स प्राइवेट लिमिटेड की लगभग 63.3 प्रतिशत की हिस्सेदारी रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड में है। कम्पनी लॉ के अनुसार 51 प्रतिशत के ऊपर का हिस्सेदार ही कम्पनी का वास्तविक संचालक व मालिक है।

रिकॉर्ड के मुताबिक रियल कोनर्जी की कुल जमा पूंजी 8166680 रुपए है। 2008 में मेसर्स पौंटी चढ्ढा सुगर्स प्राइवेट लिमिटेड की सुगर डिवीजन व कोल डिवीजन ने क्रमशः 3.11 करोड़ रुपए और 72892 रुपए का ऋण रियल कोनर्जी को दिया था। इसी वर्ष गजराज जैन ने भी एक लाख का ऋण इस कंपनी को दिया था। इस प्रकार देखा जाए तो रियल कोनर्जी ने अपनी कुल जमा पूंजी से चार गुने ज्यादा का ऋण बिना किसी प्रत्याभूत के उठाया था। प्रश्न यह उठता है कि जब कम्पनी के वास्तविक मालिक पौंटी चढ्ढा है तो वह स्वयं क्यों रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मंडल में शामिल नहीं हुए? ऐसी क्या वजह थी कि गजराज जैन व अन्य को सामने कर कोयले का काला व्यापार किया गया? कोयले की कालाबाजारी रोकने के लिए उप्र लघु उद्योग निगम ने सिर्फ पौंटी चढ्ढा की कंपनी को ही क्यों चुना जबकि नई कोयला नीति में एक से अधिक नोडल एजेंसी व कोआर्डिनेटरी को चुनने की स्वतंत्रता है।
कारण
साफ है। गजराज जैन व अन्य सिर्फ मुखौटा है कोयला के कालाबाजार के खेल के असली खिलाड़ी तो पौंटी चढ्ढा हैं। लेकिन वो सामने कहीं भी नहीं हैं। इस संबंध में पौंटी चढ्ढा से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने पहले तो प्रदेश में कोयले का व्यवसाय करने से इंकार किया, परंतु बाद में माना कि गजराज जैन उनके मित्र हैं और उनकी एक कंपनी मेसर्स पौंटी चढ्ढा सुगर्स प्राइवेट लिमिटेड ने समय-समय पर रियल कोनर्जी प्राइवेट लिमिटेड की आर्थिक सहायता की है। हालांकि पौंटी चढ्ढा ने रियल कोनर्जी में अपनी 63.3 प्रतिशत की हिस्सेदारी से इंकार किया लेकिन वो रजिस्ट्रार आफ कंपनीज में जमा रिकार्डों को झुठला नहीं सकते। रियल कोनर्जी के एक अधिकारी सतीश सिंह भी शुरू में पौंटी चढ्ढा का हाथ इस कंपनी में होने से इंकार करते रहे लेकिन बाद में रिकार्ड देखने के बाद खबर को रुकवानें के लिए मिन्नतें करने लगे। प्रदेश में कोयले के काले व्यापार में पौंटी चढ्ढा व उनके सहयोगी तो शामिल हैं ही, उप्र लघु उद्योग निगम व वर्तमान सरकार के कुछ अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है,जो जल्द सामने आ जाएगी। (डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट से साभार)

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