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देवों, धर्मशास्त्रों के हमलावर को मायावती की शह?

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लखनऊ। जौनपुर के बसपाई पिता-पुत्र पारसनाथ मौर्य और राजीव रत्न दोनों राज्य की मुख्यमंत्री मायावती के जातिगत एजेंडे को अधम गति से परवान चढ़ाए हुए हैं। मायावती ने मानो पूरी छूट दे रखी है कि जिसे भी ब्राह्मणों, वेदों, पुराणों, देवी-देवताओं और गैर दलित महापुरूषों का जिस तरह भी अपमान करना हो, करें, राज्य में उनके खिलाफ कुछ नहीं होगा। एक समय यही काम मायावती सरेआम करती थीं, यह काम वे अभी भी करती आ रही हैं लेकिन मुख्यमंत्री बनने से उनका तरीका बदल गया है, अब उन्होंने उस शैली में यह काम अपने 'प्यादों' के जिम्मे छोड़ दिया है, प्यादे हैं, जो मायावती की यह 'विरासत' और 'जिम्मेदारी' पूरी 'नीचताई' से संभाले हुए हैं और बेखौफ होकर सर्वसमाज में विघटन का ज़हर घोल रहे हैं। पूरे राज्य में जातिगत वैमनस्यता का नंगा नाच हो रहा है जहां केवल 'चमार' या 'हरिजन' बोलने पर भी लोग दलित अत्याचार निवारण एक्ट में जेल भेजे जा रहें हैं वहीं इस समाज के लोगों को ब्राह्मणों और देवी-देवताओं को अपमानित करने पर पुरस्कृत किया जा रहा है। पारसनाथ मौर्य इन्हीं में से एक हैं जो अपनी एक निम्न दर्जे की तथाकथित पत्रिका में प्रतिक्रियावादी गंदी गालियों और जातीय नफरत पैदा करने का अभियान चलाए हुए हैं और मायावती ने इन्हें ईनाम में पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया हुआ है।
अमिताभ ठाकुर ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को एक पत्र लिखकर अपनी आहत भावनाओं को प्रकट करते हुए इस पत्रिका के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि 'मैं किसी भी प्रकार से धार्मिक व्यक्ति नहीं हूं, वैसे तो मेरा जन्म हिन्दू धर्म में हुआ है और अब तक मैं अभिलेखों में हिन्दू ही हूं क्योंकि मैंने कहीं भी इससे इतर कोई सूचना नहीं दी है किन्तु तथ्य यही है कि मैं अपने आप को निरीश्वरवादी की तरह का मानता हूं, मंदिर मैं कभी नहीं जाता, पूजा-पाठ बिल्कुल नहीं करता, धर्म को लेकर रचने वाले आडंबरों को पूरी तरह गलत मानता हूं और धर्म के नाम पर बहुत अधिक संवेदनशील होने को भी बुरा समझता हूं, पर इसके बावजूद कभी-कभी ऐसी बात निगाहों के सामने आ जाती हैं कि लगता है कि क्या किसी धर्मविशेष की सहनशक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति उसकी कमजोरी और लाचारी समझ लेता है, यदि ऐसा नहीं होता तो फिर क्या यह संभव था कि अम्बेडकर टुडे नामक जौनपुर, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित एक मासिक पत्रिका के मई 2010 अंक में ऐसी बातें लिखी जातीं जो कोई भी धार्मिक व्यक्ति किन्हीं भी स्थितियों में सुनने को कदापि भी तैयार नहीं होगा।'
पत्र में अमिताभ ठाकुर ने आगे लिखा है कि डा राजीव रत्न, निवासी 4, गुलिस्तां कालोनी, लखनऊ इसके संपादक हैं और उत्तर प्रदेश सरकार के कई मन्त्रीगण के नाम इसके संरक्षक के तौर पर अंकित हैं। पत्रिका के मुखपृष्ठ पर लिखा है-मानववादी मीडिया। इसके पृष्ठ 31 पर एक आलेख में लेखक अश्विनी कुमार शाक्य पुत्र पीएल शाक्य जिनका पता पत्रिका के अनुसार पगारा रोड, जौरा, जिला मुरैना, मध्य प्रदेश अंकित है, ने जिस तरह की भाषा का प्रयोग किया है वह अकथनीय है। वैदिक ब्राह्मण और उसका धर्म शीर्षक से प्रस्तुत तालिका में वे कहते हैं कि हिन्दू धर्म ‘मानव मूल्यों पर कलंक’ है, यह ‘त्याज्य धर्म’ है, यह ‘भोन्दू और रोन्दू’ घर्म है और यह ‘पापगढ़’ है। वेद क्रूर, निर्दयी, जंगली, बेवकूफी का म्यूजियम, मूर्खताओं का इन्द्रजाल बताये गये हैं। हिन्दू धर्मशास्त्र निकृष्ट शास्त्र कहे गये हैं। तेतीस करोड़ देवता गैंगस्टर, कपटी, षड़यंत्री, क्रूर और हत्यारे कहे गये हैं। पर वे इतने पर ही नहीं रूकते हैं-वे लिखते हैं कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ‘बेटीचोद’ है। यह शब्द एक बहुत ही गंदी गाली है जो किसी भी व्यक्ति के लिये प्रयुक्त किये जाने पर ही आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आ जाता है। फिर यदि इस प्रकार की घोरतम निन्दनीय भाषा का प्रयोग किसी देवता के लिये किया जाता है तो इसकी गंभीरता तथा भयावहता का अनुमान स्वयं ही लगाया जा सकता है। अपनी वेदना अथवा अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार हरेक व्यक्ति को है किन्तु इस प्रकार दूसरे समाज, धर्म, संप्रदाय आदि के विषय में इस तरह की सीधी-सीधी गालीयुक्त भाषा का प्रयोग किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं हो सकता है। एक भारतीय के रूप में और एक जागरूक व्यक्ति के रूप में, जो जन्मना हिन्दू भी है, मैं इस आलेख से व्यक्तिगत स्तर पर आहत हूं और मुझे विश्वास है कि एक बड़े जन-समुदाय में इसी प्रकार की भावना होगी। इन स्थितियों में मैं आपसे निवेदन करता हूं कि कृपया इस प्रकरण में नियमानुसार समस्त दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध न्यायोचित आवश्यक कार्यवाही करने की कृपा करें।'
पारसनाथ मौर्य अपने पुत्र एवं अपनी पत्रिका के जरिए हिंदू धर्म और ब्राह्मणों के खिलाफ आपत्तिजनक विषय सामग्री छाप कर मायावती और बसपा के शीर्षस्थ नेताओं की वाहवाही लूटने की कोशिश में रहते हैं। पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष पद की गरिमा को ध्वस्त कर पारसनाथ मौर्य हर समय सत्ता से फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं। आयोग में उनके विवादास्पद एवं भ्रष्ट क्रिया कलाप अक्सर चर्चा में रहते हैं, उनका मकसद न तो अंबेडकर मिशन को आगे बढ़ाने वाला है और नाही बौद्ध धर्म के उपदेशों का पालन करना है। क्या बौद्ध धर्म से उन्हें यही शिक्षा मिली है कि वे जातीय नफरत पैदा करें, दूसरों के धर्मों, महापुरूषों, उनके पूज्य देवी-देवताओं वेदों शास्त्रों का अपमान करें? उन्हें ही क्या यह किसको अधिकार है कि वह ऐसा कृत्य करे कि दूसरों की भावनाएं आहत हों? इतनी हिम्मत तभी हो सकती है जब उसको किसी शक्तिशाली की शह प्राप्त हो। क्या मायावती या उनकी सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग को यह मालूम नहीं है कि एक जौनपुर से प्रकाशित अंबेडकर टुडे नाम की एक कथित पत्रिका हिंदू धर्म, ब्राह्मण, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देवी-देवताओं और वेद-शास्त्रों के खिलाफ बेतुका और जातीय रंजित विषवमन कर रही है? और क्यों न करें क्योंकि मायावती भी तो ऐसा करती रही हैं।

देवी-देवताओं केखिलाफ आपत्तिजनक लेख से समाज में मचे बवाल पर ही प्रदेश सरकार ने कड़ा कदम उठाया और मामले को ठंडा और रफा-दफा करने के लिए सीबीसीआईडी से जांच के आदेश के आदेश दिए हैं। सब जानते हैं कि किसी को बचाने के लिए सीबीसीआईडी जांच सबसे उपयुक्त तरीका है जो इस मामले में अख्तियार किया गया है। ऐसे भी उदाहरण मौजूद हैं कि मुरादाबाद की एक पत्रिका के कवर पेज पर मायावती का फोटो छापने भर से उसके संपादक मालिक के खिलाफ उस समय रासुका तक की कार्रवाई कर दी गई थी। यह मामला जन-भावनाओं से जुड़ा है और इसे अंजाम देने वाला मायावती की पार्टी का नेता है और एक न्याय के पद पर भी बैठा है इसलिए ये प्रकरण सामाजिक दृष्टिकोण और दूसरों का सम्मान करने की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण है। यदि मायावती इस मामले में कार्रवाई करने के प्रति ईमानदार होतीं तो इस प्रकरण की जांच सीबीसीआईडी से कराने की कोई भी आवश्यकता प्रतीत नही होती क्योंकि जो भी कुछ है वह उस पत्रिका में प्रकाशित है। अंबेडकर टुडे के लगभग प्रत्येक अंक में हिंदू धर्म, ब्राह्मण और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ आपत्तिजनक लेख प्रकाशित होते रहे हैं।
पारसनाथ मौर्य खुद बौद्ध धर्म का पालन भले ही न करते हों मगर दूसरों को वे उपदेश अवश्य देते हैं। आयोग में जाने वालों का कहना है कि अगर कोई अपने हाथ में प्रसिद्ध तीर्थ स्थान का कलावा पहने दिखाई देता है तो उसे वे फौरन काटने के लिए कहते हैं। आयोग में उनकी कार्यप्रणाली पर भी जरा गौर कीजिए! कहते हैं कि बेटे राजीव रत्न की शादी में मिली कार यूपी 32 सीडब्लू 9805 को उन्होंने राज्य सम्पत्ति विभाग से सम्बद्ध कराकर वह गाड़ी आयोग अध्यक्ष के नाम भी आवंटित करा ली। इस गाड़ी का अंबेडकर टुडे के संपादक और उनके पुत्र राजीव रत्न उपयोग करते हैं और आयोग की गाड़ी का इस्तेमाल पारसनाथ मौर्य स्वयं कर ही रहे हैं। पारसनाथ मौर्य कुछ संस्तुतियों के लिए भी काफी विवाद में हैं। कुछ जातियों को पिछड़े वर्ग में शामिल करने की वे कई बार सरकार को विवादास्पद संस्तुति भेज चुके हैं। उनकी 30 जून 2008 को केशरवानी वैश्य को पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए सरकार को भेजी गई संस्तुति पर उंगलियां उठ रही हैं कि उन्होंने इस जाति को पिछड़े वर्ग की अनुमन्य सूची में शामिल करने के लिए किस आधार पर संस्तुति की?
अखिल भारत हिन्दू महासभा ने हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति अशोभनीय टिप्पणी करने वाली अम्बेडकर टुडे पत्रिका के संरक्षक बने मंत्रियों की बर्खास्तगी की मांग की है। पत्रिका के खिलाफ कार्रवाई के लिये उठाए गए मायावती सरकार के कदमों पर सवालिया निशान खड़ा करते हुये महासभा ने कहा है कि इस प्रकरण की जांच की आड़ में पत्रिका से जुड़े लोगों को बचाने की कोशिश की जा रही है, जबकि वास्तव में हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ टिप्पणी करने वाली पत्रिका से जुड़े राज्य सरकार के मंत्रियों को एक पल भी मंत्रिमंडल में बने रहने का कोई औचित्य नहीं रह गया है क्योंकि मंत्रिपद ग्रहण करते हुए उन्होंने किसी जाति धर्म के खिलाफ रागद्वेष को प्रश्चय नहीं देने की शपथ ली है जिसका कि इन मंत्रियों ने ऐसे पत्रिका का संरक्षक बनकर शपथ और संविधान की अवमानना की है। महासभा के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कमलेश तिवारी ने कहा कि धार्मिक आस्थाओं के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई कर प्रदेश सरकार अपने मंत्रियों के इस कृत्य के लिये माफी भी मांगे।

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