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स्‍वामी चिदानंद महाराज का जन्मोत्सव!

दिव्‍य जीवन संघ ने मनाया भव्य शताब्दी समारोह

ऋषिकेश में 24 सितंबर को होगा भव्य समापन

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Friday 23 September 2016 03:18:59 AM

swami chidanand maharaj

लखनऊ। दिव्‍य जीवन संघ भारत के महान संतों में दैविक प्रतिभा के धनी, आध्‍यात्मिक पुर्नजागरण, योग, वेदांत और भारतीय संस्‍कृति के महान प्रचारक स्‍वामी चिदानंद महाराज का देश और विदेशों में जन्‍म शताब्‍दी समारोह मना रहा है। इस श्रंखला में आज दिव्‍य जीवन संघ लखनऊ ने लेखराज होम्‍स में उनका जन्‍म शताब्‍दी समारोह मनाया। इस अवसर पर लखनऊ के दिव्‍य जीवन संघ के भक्तों एवं गणमान्‍य नागरिकों ने भाग लिया और स्‍वामी चिदानंद महाराज के दिव्‍य जीवन को स्मरण करते हुए उनकी आध्यात्मिक चेतनाओं को आत्मसात किया।
स्‍वामी चिदानंद महाराज दिव्‍य जीवन संघ ऋषिकेश के वर्ष 1963 से 2008 तक परमाध्‍यक्ष रहे। उनका भारतीय दर्शन और संस्कृति के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार में अनुकरणीय योगदान माना जाता है, इस कारण उनके बड़ी संख्या में देश-विदेश में अनुयायी हैं। उनका जन्‍म शताब्‍दी समारोह पूरे विश्‍व में वर्ष 2015 एवं 2016 में मनाया जा रहा है। देशभर में अब तक उनकी जन्‍म शताब्‍दी के अनेक भव्य कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं। दिव्‍य जीवन संघ की लखनऊ शाखा ने भी 2 दिवसीय आध्‍यात्मिक सम्‍मेलनों का 26 से 28 फरवरी 2016 को बरसाना जनपद मथुरा में और 12 से 14 अप्रैल 2016 को नैमिषारण्‍य तीर्थ सीतापुर में आयोजन किया, जिनमें पूरे भारत वर्ष के 300-400 भक्‍तों ने भाग लिया।
दिव्‍य जीवन संघ के मुख्‍यालय ऋषिकेश में विगत 4-5 महीने से स्‍वामीजी के जन्‍म शताब्‍दी समारोह के कार्यक्रम लगातार आयोजित किए जा रहे हैं। इनके जन्‍म शताब्‍दी समारोह का समापन 24 सितम्‍बर 2016 को प्रभात फेरी, अंतर्राष्‍ट्रीय गोष्‍ठी, सत्‍संग तथा भक्‍तों के अनुभव सुनने आदि कार्यक्रमों से सम्‍पन्‍न होगा। उल्लेखनीय है कि दिव्‍य जीवन संघ की स्‍थापना भारत में आध्‍यात्मिक पुर्नजागरण के प्रणेता स्‍वामी शिवानंद महाराज ने 1936 में शिवानंदनगर ऋषिकेश में की थी, जो आज उत्तराखंड राज्य में है। मानव समाज की सेवा और उसका समन्वित उत्‍थान (शरीर-मन-ह्रदय-आत्‍मा) ही दिव्य जीवन संघ का लक्ष्‍य है-भले बनो भला करो। यही इसके कार्यकलापों का मूलमंत्र है। शिवानंद आश्रम आज दिव्‍य जीवन संघ के सदस्‍यों और जन साधारण के लिए एक अनूठा तीर्थ स्‍थल है, जहां भक्‍तजन अपने लघु आवास में ही आश्रम के दैनिक आध्‍यात्मिक कार्यक्रमों में भाग लेकर नई स्‍फूर्ति, प्रेरणा और आध्यात्मिक चेतना से भर जाते हैं।
स्‍वामी चिदानंद महाराज अपने गुरू स्‍वामी शिवानंद के परम प्रिय शिष्‍य थे, जिन्‍हें वह प्‍यार से संघ का कोहिनूर कहते थे। स्‍वामी चिदानंद महाराज दक्षिण भारत के एक समृद्ध जमींदार परिवार से थे, परंतु बचपन से ही उनमें सांसारिक सुखों से विरक्ति थी। गरीबों और रोगियों की सेवा में ही वह लीन रहते थे। अपने घर के बाड़े में कुष्‍ठ रोगियों के लिए झोपड़ी बनवाकर उनकी दया व करूणाभाव से सेवा की। वह एक मेधावी छात्र थे और उन्‍होंने प्रख्‍यात लोयोला कॉलेज चेन्‍नई से स्‍नातक परीक्षा पास की थी। वे 1943 में शिवानंद आश्रम में आए और अपने गुरू के हर आदेशों का पूरी निष्‍ठा एवं समर्पणभाव से पालन किया। वर्ष 1963 में स्‍वामी शिवानंद महाराज के महाप्रयाण के उपरांत वह दिव्‍य जीवन संघ के अध्‍यक्ष बने और अगस्‍त 2008 में अपनी महासमाधि तक अपने अध्‍यक्षकाल में संघ को देश-विदेशों में नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। दिव्‍य जीवन संघ की देश में आज 106 शाखाएं हैं, जो सामाजिक कार्यों एवं आध्‍यात्मिक पुर्नजागरण में लगी हैं और विदेशों के अधिकांश देशों में भी शाखाएं हैं।
स्‍वामी चिदानंद महाराज अपनी सादगी, सहजता, त्‍याग, भक्ति, ज्ञान आदि के कारण एक साधारण व्‍यक्ति से लेकर विशिष्‍ट व्‍यक्तियों तक सभी के प्रिय थे। अपने आश्रम प्रवास एवं देश-विदेश की यात्राओं पर महान विभूतियां उनके सत्संग में शामिल हुईं, जिनमें राष्‍ट्रपति डॉ राधाकृष्‍णन, राष्‍ट्रपति वीवी गिरी, पोप जॉनपाल, संत मदर टेरेसा, परमपावन धर्मगुरु दलाई लामा आदि प्रमुख हैं। महान वैज्ञानिक और देश के राष्ट्रपति रहे डॉ एपीजे अब्‍दुल कलाम ने अपनी पुस्‍तक ‘विंग्‍स ऑफ फायर’ में स्‍वामी शिवानंद महाराज से अपनी अविस्‍मरणीय प्रेरणात्‍मक भेंट का वर्णन किया है। उन्‍होंने स्‍वामीजी के परम शिष्‍य स्‍वामी चिदानंद महाराज की महानता का वर्णन करते हुए 25 जनवरी 2015 को ओडिशा से जन्‍म शताब्दि समारोह का शुभारंभ किया था, तब से देश की सभी 106 शाखाओं में प्रचार-यात्रा, आध्‍यात्मिक सम्‍मेलन आदि के कार्यक्रम चले आ रहे हैं। कार्यक्रमों का समापन 5 दिवसीय आध्‍यात्मिक सम्‍मलेन, भव्‍य शोभा यात्रा तथा पूर्णाहूति से 24 सितंबर 2016 को मुख्‍यालय ऋषिकेश में होगा, जिसमें देश-विदेश से हजारों अनुयायियों के भाग लेने का अनुमान है। भारत सरकार ने स्‍वामीजी के सम्‍मान में एक डाक टिकट भी जारी किया है, जिसको उत्‍तराखंड के राज्‍यपाल ने ऋषिकेश आश्रम में एक भव्‍य समारोह में 20 मई 2016 को जारी किया था।
स्‍वामी चिदानंद महाराज का लखनऊ के प्रति विशेष आकर्षण तथा स्‍नेह रहा है। उनके भक्‍तों में ख्‍याति प्राप्‍त स्‍त्री रोग विशेषज्ञ डॉ देविका कुट्टी पूर्व विभागाध्‍यक्ष केकेजीएमयू, लखनऊ के महापौर रहे पद्मश्री डॉ एससी राय, पद्मश्री डॉ मिनी गोयल आदि का भी नाम है। डॉ देविका कुट्टी तो अपने अवकाश के दौरान शिवानंद धर्मार्थ अस्‍पताल ऋषिकेश में 1953 से ही चिकित्सा सेवाएं दिया करती थीं तथा 1983 में सेवानिवृत्ति के बाद अगस्‍त 2008 तक आश्रम में ही रहकर उन्होंने अपने महाप्रयाण तक अस्‍पताल को पूर्णकालिक सेवाएं दीं। स्वामी चिदानंद महाराज ने अपने गुरु के आध्यात्मिक दूत के रूप में पहली बार नवंबर 1959 से दिसंबर 1961 तक उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका और यूरोप के बहुत से शहरों का भ्रमण किया। मई 1968 से दिसंबर 1970 तक एक बार पुन: उन्होंने विदेशों का दीर्घकालिक भ्रमण कर योग, वेदांत और भारत की महान आध्यात्मिक विरासत का प्रतिष्ठित संस्थानों, विश्वविद्यालयों आदि में अपने व्याख्यानों से प्रचार-प्रसार किया। उनसे प्रभावित होकर एक फ्रांसीसी महिला वोन लिबू ने उन पर एक किताब लिखी-दिस मॉन्क फ्रॉम इंडिया, एक जर्मन महिला पॉला कॉर्नेली ने भी जयंती जुबली सॉवेनियर प्रकाशित की। लंदन के मशहूर चित्रकार यावर अब्बास ने उन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म फेजेज ऑफ इंडिया स्वामी चिदानंद-ए योगी फ्रॉम ऋषिकेश का निर्माण किया, जिसका प्रसारण बीबीसी ने किया।
स्वामी चिदानंद महाराज सर्वधर्म समभाव में दृढ़ विश्वास रखते थे। उन्होंने 1975 में जैन मुनियों के साथ भगवान महावीर के शांति संदेश के प्रचार में भाग लिया। उन्होंने 1976 में सिंगापुर और 1991 में काठमांडू में एशियाई देशों के प्रतिनिधियों के धार्मिक सम्मेलनों में सशक्त एवं ओजपूर्ण संबोधन दिया। वर्ष 1991 में ऋषिकेश आश्रम में एक अंतर्राष्ट्रीय, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक सम्मेलन का सफल नेतृत्व और आयोजन किया। ऐतिहासिक विश्व धर्म संसद के सौ वर्ष पूर्ण होने पर पुन: 1993 में ही शिकागो में आयोजित हुई धर्म संसद में स्वामीजी को हिंदू प्रतिनिधिमंडल का अध्यक्ष चुना गया था। स्वामीजी अपने व्याख्यानों में सदा ही व्यावहारिक आध्यात्मवाद के बड़े पक्षकार रहे, वे अपने अंदर निहित ईश्वर को साक्षी मानकर कार्य करने पर जोर देते थे। समाज की कुरीतियों से वे भलीभांति परिचित थे और उन्हें दूर करने के लिए बुनियादी स्तर पर कार्यरत थे। नवंबर 1997 में उन्होंने ख्याति प्राप्त पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा के शराबबंदी आंदोलन में भाग लिया, जिससे सरकार को पहाड़ों में शराबबंदी लागू करनी पड़ी। पर्यावरण बचाने के आंदोलन में भाग लिया और 1977 में प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता रतन चंद रोझे के साथ हिमाचल प्रदेश में एक सप्ताह के छुआछूत के अभिशाप के विरुद्ध कार्यक्रमों में भाग लिया। स्वामीजी अपने कार्यक्रमों में युवाओं, महिलाओं व गरीबों के कल्याण पर जोर देते थे और सभी को आध्यात्मिक और धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करते थे।
स्वामी चिदानंद महाराज ने समाज के मार्गदर्शन के लिए व्यावहारिक आध्यात्मिकता के विभिन्न आयामों पर अंग्रेजी में बहुत सी बहुमूल्य पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं-लाइट फाउनटेन ए पॉन्डर दीज ट्रुथ्स, ए कॉल टू लिबरेशन ए सीक द बियॉन्ड ए गॉड एज मदर ए पाथ टू ब्‍लेसेडनेस, अवेक अराइज़ यॉर डिविनिटी, गाइडलाइन्स टू इल्यूमिनेशन और एन इंस्ट्रूमेंट ऑफ दाई पीस, जिनमें बहुतों का अन्‍य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। इस तरह संक्षेप में कहा जा सकता है कि स्वामीजी के चमत्कारी व्यक्तित्व में महान विभूतियों का संगम प्रतिबिंबित होता है। देश-विदेश में वैदिक ज्ञान एवं भारत के आध्यात्मिक गौरव के प्रचारक स्वामी विवेकानंद, आत्मीय करुणा, प्रेम व दया के भगवान बुद्ध तथा कुष्ठ रोगियों और सभी प्राणियों की निश्छल सेवा में लीन सेंट फ्रांसिस ऑफ इंडिया। नि:संदेह स्वामीजी का अलौकिक जीवन व उनका प्रेरणात्मक दिव्य संदेश संपूर्ण मानवता के लिए सदा ही शांति, आनंद और प्रेम का स्रोत है।

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