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निर्मला और मृणाल की पुस्तकों में घमासान

वक्ताओं के विचार आए और सवाल-जवाब भी हुए

हिंदू कॉलेज वीमेंस डेवलपमेंट सेल की संगोष्ठी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 24 February 2016 12:24:40 AM

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नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष रहीं प्रोफेसर निर्मला जैन ने हिंदू कालेज के वीमेंस डेवलपमेंट सेल की संगोष्ठी 'रचना और रचनाकार' में अपनी आत्मकथा 'ज़माने में हम' के संदर्भ में कहा है कि इस आत्मवृत्त की रचना किसी पूर्वयोजना या संकल्प के तहत नहीं हुई, स्थितियों और घटनाओं के पारावार का यह मेरा पाठ है। उन्होंने कहा‌ कि चालू अर्थों में निजी जीवन में ताक-झांक करना और किताब को सनसनी से भरना उनका उद्देश्य नहीं था, जीवन के होने में खोया-पाया जैसा कुछ दर्ज हो सका तो वही प्राप्य है। राजकमल प्रकाशन के सहयोग से वरिष्ठ कथाकार, लेखिका और पत्रकार मृणाल पांडे की पुस्तक 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री' तथा प्रोफेसर निर्मला जैन की आत्मकथा 'ज़माने में हम' पर आयोजित संगोष्ठी के पहले सत्र में समाज विज्ञानी और पत्रकार रामशरण जोशी तथा आलोचक डॉ रामेश्वर राय ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में कुल मिलाकर निर्मला जैन और मृणाल पांडे की पुस्तकों में घमासान पर वक्ताओं के विचार आए और सवाल-जवाब भी हुए।
प्रोफेसर रामशरण जोशी ने कहा कि प्रोफेसर निर्मला जैन की किताब 'दिल्ली शहर दर शहर' के साथ 'ज़माने में हम' को मिलाकर पढ़ने से न केवल उनका व्यक्तित्व, अपितु तीन महत्वपूर्ण कालखंडों आजादी से पहले का भारत, आजाद भारत और भूमंडलीकरण के दौर में भारत को देखा एवं जाना जा सकता है। डॉ रामेश्वर राय ने पुस्तक की भाषा की प्रशंसा करते हुए कहा कि सहज और सरल भाषा से प्रोफेसर निर्मला जैन के विचारों का वायुमंडल पाठक को प्रभावित करता है। संगोष्ठी के दूसरे भाग में वरिष्ठ कथाकार और पत्रकार मृणाल पांडे की पुस्तक 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री' पर चर्चा की गई। सत्र में कुछ प्रसिद्ध और भुला दी गई गावनहारियों के संबंध में मृणाल पांडे ने कहा कि असाधारण प्रतिभा, मेहनत, खुद्दारी और प्रशंसा के साथ राज-समाज के दो मुंहे बर्ताव से उपजी खिन्नता और कड़वाहट को मिलाकर ही हमारी दो सदियों की उत्तर भारतीय महिला गायिकाओं की जीवन गाथा और प्रतिभा की शक्ल बनी है। उन्होंने कहा कि हम लोग गुण का आदर भले करना जानते हों, लेकिन वजूद का निरादर भी हम खूब करते रहे हैं।
युवा आलोचक पल्लव ने पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मृणाल पांडे की पुस्तक भारतीय समाज में व्याप्त असमानता के अनेक तनावों से हमें परिचित कराती है, जो संगीत, शिक्षा के पवित्र और ऊंचे समझे जाने वाले इलाके में भी गहराई से मौजूद हैं। पल्लव ने पुस्तक के कुछ महत्वपूर्ण प्रसंगों को भी उद्धृत किया। मृणाल पांडे ने पुस्तक की रचना प्रक्रिया को बताते हुए स्लाइड शो के माध्यम से गावनहारियों के इतिहास और संस्कृति पर रोचक प्रस्तुति भी दी। दोनों सत्रों में बड़ी संख्या में मौजूद विद्यार्थियों ने लेखिकाओं से सवाल पूछे। संगोष्ठी का संयोजन करते हुए वीमेंस डेवलपमेंट सेल की परामर्शदात्री डॉ रचना सिंह ने अतिथियों का परिचय दिया। संगोष्ठी में हिंदू कालेज वीमेंस डेवलपमेंट सेल दिल्ली की अध्यक्ष अनुपमा रे और अन्य कॉलेजों से भी अध्यापक और विद्यार्थी उपस्थित हुए। हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ अभय रंजन ने अतिथियों का स्वागत किया। सभागार के समीप लगाई गई पुस्तक प्रदर्शनी का युवा पाठकों ने लाभ लिया। राजकमल प्रकाशन के मुख्य अधिकारी आमोद महेश्वरी ने आभार व्यक्त किया।

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