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'समाज में सभीको सम्मान से जीने का अधिकार'

राष्ट्रपति ने समझी वृंदावन में निराश्रित एवं उपेक्षित महिलाओं की पीड़ा

'बेसहारा एवं उपेक्षित महिलाओं के स्वाबलंबन व स्वाभिमान को बढ़ावा दें'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 27 June 2022 05:38:21 PM

president understands the suffering of destitute and neglected women in vrindavan

मथुरा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वृंदावन के ‘कृष्णा कुटीर’ में आज आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहाकि वृंदावन को मैं राधा और कृष्ण के अलौकिक प्रेम का एक जीवंत स्मारक मानता हूं, यहां मेरा अनेक बार आना हुआ है, परंतु पिछले कुछ समय से मेरे मन में श्रीबांके बिहारी के दर्शन करने और यहां सभी माताओं-बहनों से मिलने की इच्छा थी। राष्ट्रपति ने कहाकि वृंदावन का अर्थ है-तुलसी का वन, तुलसी स्वयं ही देवी का प्रतीक हैं, तुलसी का हर हिस्सा पवित्र और अर्पण करने योग्य है और वृंदावन के कण-कण में प्रेम एवं त्याग की कहानियां बसी हुई हैं, यहां राधा के दिव्य प्रेम को याद किया जाता है तो यशोदा के मातृ-प्रेम कोभी सम्मान दिया जाता है, यहां गोपियों की प्रीत का उत्सव मनाते हैं तो मीराबाई के समर्पणभाव का भी सम्मान करते हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि यहां उपस्थित सभी माताओं-बहनों में भी मुझे यशोदा मैया की ममता और मीराबाई के समर्पण के दर्शन हो रहे हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि परंतु, इन सबके बावजूद सैकड़ों वर्षों से प्रचलित एक सामाजिक विकृति कोभी अनदेखा नहीं किया जा सकता, वृंदावन और इसी जैसे अनेक स्थानों में कठोर जीवन जीने वाली बेसहारा और उपेक्षित माताओं-बहनों की पीड़ा भी हमारे समाज की एक सच्चाई है। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारी संस्कृति में तो नारी को देवी और लक्ष्मी कहा गया है, यहां तक कहा गया हैकि जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवताओं का वास होता है, यह भी कहा गया हैकि घर की स्वामिनी से ही घर बनता है। राष्ट्रपति ने कहाकि मुझे आश्चर्य होता हैकि वेद-मंत्रों की रचना करने वाली लोपामुद्रा, अपाला और घोषा जैसी महिला ऋषियों वाले समाज में महिलाओं के तिरस्कार की स्थितियां कैसे बनती गईं, लेकिन ऐसा हुआ है और यह एक कड़वा सच है, इसको हमें स्‍वीकार करना होगा। राष्ट्रपति ने कहाकि एक लंबे कालखंड में हमारे समाज में अनेक कुरीतियां पैदा हो गईं, बाल-विवाह, सती-प्रथा और दहेज-प्रथा की तरह ही विधवा जीवन भी समाज की एक कुरीति है, कभी जिन महिलाओं को घर की शोभा कहा जाता हो, उन्हीं को पति की मृत्यु के पश्चात बेसहारा छोड़ दिया जाता है।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि ऐसे अनेक उदाहरण देखने में आए हैं, जब महिलाओं के अपने बेटे या परिवार वाले ही उन्हें वृंदावन में बेसहारा छोड़ गए और फिर लौटकर कभी उनका हाल पूछने नहीं आए। राष्ट्रपति ने कहाकि यह सामाजिक बुराई देश की संस्कृति पर एक कलंक है, यह कलंक जितनी जल्दी मिट सके, उतना ही अच्छा होगा। उन्होंने कहाकि ऐसा देखा गया हैकि किसीभी कारण से पति की मृत्यु हो जाने पर महिला के प्रति न केवल उस परिवार का, बल्कि पूरे समाज का नज़रिया बदल जाता है, उसपर अनेक प्रकार के सामाजिक बंधन लगा दिए जाते हैं, उनके प्रति किए जानेवाले उपेक्षापूर्ण व्यवहार को हर हाल में रोकने केलिए हम सबको आगे आना होगा और समाज को जागृत करना होगा। उन्होंने कहाकि समय-समय पर अनेक संतों और समाज-सुधारकों ने ऐसी तिरस्कृत माताओं-बहनों के मुश्किल जीवन में सुधार लाने के प्रयास किए हैं, राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर और स्वामी दयानंद को कुछ हद तक सफलता भी मिली, परंतु अभीभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि यदि संयोग से इन माताओं-बहनों के जीवन में कोई दुर्घटना घट गई है तो इसमें इनका तो कोई दोष नहीं, इसलिए वे न तो स्वयं को दोषी समझें और न ही किसी को ऐसा समझने दें, आपमें कोई कमी नहीं है, सभी की तरह आपको भी समाज में पूरे सम्मान से जीने का अधिकार है। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारा संविधान, सुप्रीम कोर्ट, उत्तर प्रदेश सरकार और समाज के लाखों संवेदनशील लोग आपके साथ खड़े हैं, धीरे-धीरे हमारा समाज बदल रहा है, शिक्षा के प्रसार और जागरुकता के बढ़ने से लोगों का नज़रिया अब पहले जैसा नहीं रहा है, कानून और न्यायालय भी आपके साथ हैं। राष्ट्रपति ने माताओं-बहनों से कहाकि संयुक्तराष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2011 से आपके हक़ में आवाज़ बुलंद की है, सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्था आपके भरण-पोषण से लेकर उपचार की व्यवस्था में जुटी हुई है। राष्ट्रपति ने डॉ विंदेश्वर पाठक के प्रयासों की सराहना की और कहाकि अनेक व्यक्ति, सामाजिक संस्थाएं और संगठन भी सहायता केलिए आगे आए हैं और खुशी हैकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार की प्रतिबद्धता भी घोषित की है।
राष्ट्रपति ने कहाकि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वृंदावन में निराश्रित एवं बेसहारा माताओं केलिए ‘कृष्णा कुटीर’ का निर्माण किया है, अब कृष्णा कुटीर की व्यवस्था उत्तर प्रदेश सरकार के हाथों में है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भरपूर सहयोग इस कार्य में प्राप्त है, वृंदावन की निराश्रित माताओं-बहनों केलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने मासिक पेंशन की व्यवस्था की है, इनकी समुचित देखभाल केंद्र व राज्‍य सरकारें मिलकर कर रही हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि कृष्णा कुटीर जैसे आश्रय स्थल का निर्माण एक सराहनीय पहल है, परंतु मैं इससे भी आगे की बात कहना चाहता हूं, मेरा विचार हैकि समाज में इस प्रकार के आश्रय-गृहों के निर्माण की आवश्यकता ही नहीं पड़नी चाहिए, प्रयास तो यह होना चाहिएकि निराश्रित महिलाओं के पुनर्विवाह, आर्थिक स्वावलंबन, पारिवारिक सम्पत्ति में हिस्सेदारी, सामाजिक और नैतिक अधिकारों की रक्षा जैसे उपाय किए जाएं और इन उपायों के माध्यम से हमारी माताओं-बहनों में स्वाबलंबन तथा स्वाभिमान को बढ़ावा दिया जाए।
राष्ट्रपति ने कहाकि समाज के इतने बड़े और महत्वपूर्ण वर्ग को यूं ही उपेक्षित नहीं छोड़ा जा सकता है, हम सभी को मिलकर इन तिरस्कृत एवं उपेक्षित महिलाओं केप्रति सामाजिक जागरुकता बढ़ानी होगी, सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक मान्यताओं और विरासत से जुड़े अधिकारों में किए जा रहे भेदभाव को दूर करना होगा, संपत्ति के बंटवारे में भेदभाव और बच्चों पर अधिकार से महिलाओं को वंचित किए जाने की समस्याओं पर ध्यान देना होगा, तभी हमारी ये माताएं-बहनें जीवन की त्रासदी और विडम्बना से मुक्त होकर आत्म संतोष, आत्मसम्मान तथा आत्मविश्वास से परिपूर्ण जीवन जी सकेंगी। राष्ट्रपति ने समाज के सभी जिम्मेदार नागरिकों से अपील कीकि सामाजिक जीवन से दूर हो गई इन माताओं को समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जाए, समाज के साथ उनका संपर्क बढ़ाया जाना चाहिए, तीज-त्योहारों, मेलों-उत्सवों में उनकी अनुभवपूर्ण भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति ने सुझाव दियाकि उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य समाजसेवी संस्थाएं इन माताओं को देश-दर्शन एवं देश के पर्यटन स्थलों के भ्रमण पर लेजाने की व्यवस्था कर सकती हैं।

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