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विकासपुरुष नारायण दत्त तिवारी का देहावसान!

लंबी बीमारी के बाद दिल्ली के मैक्स अस्पताल में ली अंतिम सांस

उत्तर प्रदेश उत्तराखंड सहित देश में शोक और गहरी संवेदनाएं!

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 18 October 2018 06:20:12 PM

narayan dutt tiwari

नई दिल्ली/ लखनऊ। देश के शीर्ष कांग्रेस राजनेता और उत्तर प्रदेश के तीन बार एवं एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हुए, कई बार केंद्रीय मंत्री और आंध्रप्रदेश के राज्यपाल रहे विकास पुरुष नारायणदत्त तिवारी आज नहीं रहे। इसे संयोग कहेंगे कि आज उनका जन्मदिन भी है। उत्तराखंड के नैनीताल जिले के बलूती गांव में 18 अक्टूबर 1925 में जन्मे नारायणदत्त तिवारी लंबे समय से बीमार थे और दिल्ली के मैक्स अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। नारायणदत्त तिवारी के निधन से खासतौर से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में शोक व्याप्त है। वह देश के नेता थे और उनके जीवन में एक समय ऐसा आया था, जब लगने लगा था कि वे देश के प्रधानमंत्री भी होने जा रहे हैं, लेकिन होनी ‌को कोई नहीं टाल सकता, उनका नैनीताल लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हारना दुर्भाग्य सिद्ध हुआ और वे धीरे-धीरे देश के राजनीति क्षितिज से ओझल होते गए।
कांग्रेस शासनकाल में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके प्रचंड पुत्र संजय गांधी के वे सर्वाधिक प्रिय राजनेता थे। इं‌दिरा गांधी मंत्रिमंडल में और राजीव गांधी मंत्रिमंडल में वे कई बार केंद्रीय मंत्री बने। यही नहीं वे उद्योग, विदेश, वित्त एवं वाणिज्य जैसे अनेक महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। उद्योग उनका प्रिय विषय था। उनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश और पहाड़ों पर अनुकरणीय विकास हुआ। उनका राजनीतिक कौशल काफी विलक्षण था और वे विपक्ष के भी उतने ही प्रिय थे। मीडिया से उनके दोस्ताना संबंध थे। कहा जा सकता है कि उन्होंने अनेक लोगों को विभिन्न समाचार पत्रों में रोज़गार प्रदान कराया। उनकी कार्यशैली से देश और प्रदेश की नौकरशाही बहुत प्रभावित रहती थी, वे अत्यंत व्यवहार कुशल थे और अपनी मौजूदगी का हर जगह लोहा मनवाया। नारायण दत्त तिवारी के जीवन में एक षडयंत्र सफल हुआ, जब वे आंध्रप्रदेश के राज्यपाल थे और इनकी अचेता अवस्‍था में एक महिला के साथ आपत्तिजनक वीडियो सामने आई और परिणामस्वरूप उठे विवाद में उन्हें राज्यपाल पद से इस्तीफा देना पड़ा।
नारायण दत्त तिवारी के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, मुलायम सिंह यादव आदि ने शोक व्यक्त किया है। राज्यपाल राम नाईक ने शोक संदेश में कहा है कि नारायण दत्त तिवारी एक लोकप्रिय राजनेता रहे हैं, उनका व्यवहार सभी लोगों के साथ स्नहेपूर्ण था, आम आदमी के साथ उनका गहरा लगाव था, उनके पास जो भी व्यक्ति जाता था, उसकी वह अवश्य मदद करते थे। राम नाईक ने कहा कि नारायण दत्त तिवारी ने दीर्घकाल तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूपमें काम किया। राज्यपाल ने उनकी आत्मा की शांति की कामना करते हुए शोकाकुल परिजनों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की है। नारायण दत्त तिवारी के निधन पर अमित शाह ने दुख प्रकट करते हुए कहा है कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा संघर्ष किया।
नारायण दत्त तिवारी का राजनीतिक जीवन देश के लिए समर्पित रहा है। वे छात्र जीवन से ही राजनीति में थे, तब उत्तर प्रदेश का गठन भी नहीं हुआ था। नारायण दत्त तिवारी की शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई। वे 1942 में ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पहलीबार पकड़े गए और गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिए गए। उनके पिता पूर्णानंद तिवारी भी इसी जेल में बंद थे, जिन्होंने अंग्रेजी शासन के दमन के खिलाफ वन विभाग की नौकरी छोड़ दी थी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। नारायण दत्त तिवारी 1947 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके राजनीतिक जीवन की पहली पायदान थी। वे 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन के बाद नैनीताल से पहली बार विधानसभा के सदस्य के तौर पर विधानसभा में पहुंचे।
यह बेहद दिलचस्प है कि कांग्रेस की सियासत करने वाले नारायण दत्त तिवारी की राजनीतिक शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई। वे 1965 में कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। नारायण दत्त तिवारी का 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना में बड़ा योगदान रहा है। वे 1969 से 1971 तक युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वे उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे। वे जिस पद पर भी रहे उन्होंने उसपर अपनी योग्यता और प्रशासन की अमिट छाप छोड़ी। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे हैं। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तराखंड के भी मुख्यमंत्री बने। केंद्रीय मंत्री के रूपमें उनके सभी कार्यकाल बहुत विकासोन्मुख और यादगार माने जाते हैं।

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