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यूपी में चौथे स्तंभ का उत्पीड़न-लोक प्रहरी

सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट अवमानना कर रही यूपी सरकार

पत्रकारों को सरकारी आवासों से बेदखली का मामला

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 28 August 2016 06:59:14 PM

sn shukla

लखनऊ। लोकसेवकों एवं जनसेवकों की विवादास्पद और भ्रष्टाचारजनित कार्यप्रणाली और समय-समय पर सरकार के फैसलों को अदालत में चुनौती देने के लिए प्रसिद्ध एक गैर सरकारी संस्‍था लोक प्रहरी के महासचिव, याचिकाकर्ता और कभी उत्तर प्रदेश के प्रचंड नौकरशाह रहे एसएन शुक्ला ने मीडिया से कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों, गैर सरकारी ट्रस्टों और गैर सरकारी संस्‍थाओं को राजधानी लखनऊ में आवंटित सरकारी बंगलों को खाली करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में पत्रकारों के सरकारी आवासों का आवंटन निरस्त कर न केवल चौथे स्तंभ का उत्पीड़न कर रही है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की ग़लत व्याख्या करके उसकी स्पष्ट अवमानना भी कर रही है। याचिकाकर्ता के इस कथन के बाद उत्तर प्रदेश सरकार और मीडिया के बीच इस मामले को लेकर गंभीर टकराव की स्थिति पैदा हो गई है, क्योंकि पत्रकारों ने सरकार से अपना आदेश वापस लेने की मांग की है।
एसएन शुक्ला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल पूर्व मुख्यमंत्रियों, गैर सरकारी ट्रस्टों और अन्य गैर सरकारी संगठनों को राजधानी लखनऊ में आवंटित सरकारी आवासों के आवंटन के खिलाफ ही फैसला दिया है, उसमें पत्रकारों के सरकारी आवासों के विषय में किसी भी प्रकार का कोई भी प्रतिकूल उल्लेख नहीं है और उन्होंने भी अपनी रिट याचिका में पत्रकारों या सरकारी कर्मचारियों को आवंटित सरकारी आवासों के मामले में पार्टी नहीं बनाया था, मगर बड़ी विचित्र बात है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी याचिका पर हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करके पत्रकारों को उनके सरकारी आवास से बेदखली के नोटिस भेजे हैं। राज्य सरकार का कहना है कि उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ही लखनऊ में सभी पत्रकारों के सरकारी आवासों का आवंटन निरस्त करने की कार्रवाई की है।
एसएन शुक्ला ने लखनऊ में निराला नगर में अपने आवास पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से स्पष्टतौर पर कहा है कि लोक प्रहरी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार की सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका और उसपर आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश में पत्रकारों को आवंटित सरकारी आवासों का कोई भी किसी भी प्रकार का उल्लेख और संकेत भी नहीं है, यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में राज्य सरकार की चौथे स्तंभ को दबाव में लेने की कोशिश है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की भी सीधे-सीधे अवमानना है। ज्ञातव्य है कि इसी आदेश का जिक्र करते हुए राज्य सरकार के राज्य संपत्ति विभाग ने राज्य मुख्यालय पर पत्रकारों के सरकारी आवासों का आवंटन निरस्त कर उन्हें पंद्रह दिन में खाली करदेने के आदेश दिए हैं। पत्रकार राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ आंदोलित हो गए हैं, जबकि सरकार कह रही है कि वह पत्रकारों को भी सरकारी आवासों के आवंटन के विषय में विधानसभा में बिल ला रही है।
एसएन शुक्ला ने कहा कि उनकी याचिका केवल उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों, गैर सरकारी ट्रस्टों और गैर सरकारी संस्‍थाओं को राजधानी लखनऊ में आवंटित सरकारी बंगलों तक सीमित है और उस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश में प्रस्तर तैंतालीस की ग़लत व्याख्या करके राज्य सरकार ने खुद ही पत्रकारों को भी शामिल कर लिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि में पत्रकार प्राइवेट पर्सन नहीं है, पत्रकारों को सरकारी आवास का निःशुल्क आवंटन नहीं होता है, उनसे किराया लिया जाता है। उन्होंने कहा कि मुझे बहुत हैरत है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या की गई है, जिससे समय आने पर वह सुप्रीम कोर्ट को भी अवगत कराएंगे। एसएन शुक्ला ने कहाकि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या का एक गंभीर मामला है, जो चौथे स्तंभ को कुचलने का कदम साबित होता है।

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