स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Wednesday 30 July 2025 04:59:52 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज तथागत भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा निशानियों की 127 वर्ष के लंबे अंतराल केबाद देश में वापसी की सराहना करते हुए इसे देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत केलिए एक गौरवपूर्ण और खुशी का क्षण बताया है। प्रधानमंत्री ने ‘विकास भी, विरासत भी’ की भावना को प्रतिबिंबित करते हुए एक वक्तव्य में भगवान बुद्ध के उपदेशों केप्रति भारत की अपार श्रद्धा और अपनी आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने केप्रति राष्ट्र की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखाकि हमारी सांस्कृतिक विरासत केलिए एक खुशी का दिन! भगवान बुद्ध की पवित्र पिपरहवा निशानियां 127 वर्ष के लंबे अंतराल केबाद स्वदेश वापस आ गई हैं, यह जानकर हर भारतीय गौरवांवित है। उन्होंने कहाकि ये पवित्र निशानियां भगवान बुद्ध और उनकी महान शिक्षाओं केसाथ भारत के घनिष्ठ संबंध को दर्शाती हैं, यह हमारी गौरवशाली संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के संरक्षण और सुरक्षा केप्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी यह जानकारी साझा करते हुए कहा हैकि यह स्मरणीय हैकि भगवान बुद्ध की पिपरहवा निशानियां 1898 में खोजी गई थीं, किंतु औपनिवेशिक काल के दौरान इन्हें भारत से बाहर ले जाया गया था और जब इसवर्ष की शुरुआत में ये एक अंतर्राष्ट्रीय नीलामी में दिखाई दीं तो भारत सरकार ने यह सुनिश्चित करने केलिए अनुकरणीय प्रयास किएकि ये स्वदेश वापस आ जाएं।
केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस प्रयास में शामिल सभी लोगों की सराहना की और कहाकि यह भारत केलिए एक ऐतिहासिक और अत्यंत भावनात्मक क्षण है, 127 वर्ष केबाद भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष स्वदेश लौट आए हैं। संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहाकि 1898 में खोजे गए और औपनिवेशिक काल के दौरान विदेश ले जाए गए इन अवशेषों में धर्म की सुगंध है, जिसने पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया है। उन्होंने कहाकि भगवान बुद्ध के ये पवित्र अवशेष प्रकाश स्तंभ हैं, जो सत्य, अहिंसा, प्रेम और शांति जैसे आदर्शों से देश-विदेश तक जन-जन को मार्गदर्शित करते हैं। संस्कृति मंत्री ने कहाकि भगवान बुद्ध की पवित्र पिपरहवा निशानियों के प्रत्यावर्तन के माध्यम से हमने एक सभ्यतागत वचन का सम्मान किया है।