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'वीरगति' को प्राप्त हुए आलोक तोमर!

दिनेश शर्मा

मां और आलोक तोमर-mother and alok tomar

नई दिल्ली। आखिर आलोक तोमर होली के दिन वीरगति को प्राप्त हुए। इस पत्रकार सैनिक ने अपने जीवन में आम आदमी के लिए बड़ी घनघोर लड़ाईयां लड़ीं। सामाजिक और सरकारी अत्याचार, भ्रष्टाचार, विषमताओं और गरीबी के शिकार दरिद्र नारायण के लिए बड़े-बड़े हमले सहे और उन पर विजय हासिल की। पत्रकारिता के सुपर स्टार प्रभाष जोशी के साए में सफलता के झंडे गाड़े और चुंबकीय लेखन शैली से बड़े-बड़े दिग्गजों को अपना कायल बनाया। आलोक तोमर में किसी भी विषय पर लिखने की महारत और हिम्मत प्रभाष जोशी ने ही पैदा की थी। एक समय ऐसा भी आया कि इसने अकेले ही रणक्षेत्र में सरकारी ताकत से समृद्ध शक्तिशालियों के खतरनाक गिरोहों से डटकर मोर्चा लिया और उनके छक्के छुड़ाए। इस लड़ाई में संकट भी आए तो उस समय इसके साथ इसका धैर्य, इसका पत्रकारिता धर्म और पत्नी सुप्रिया थी या केवल कुछ ही हिम्मतवाले पत्रकार सैनिक।

आलोक तोमर ने नियती से भी जबरदस्त पंगा लिया और जब कैंसर ने उन पर हमला किया तो पूरे आत्मशक्ति से उसे भी पराजित करते दिखाई दिए। अचानक इस विजयीवीर पर हृदयघातनी शक्ति का भारी प्रहार हुआ और होली के दिन 'वीरगति' को प्राप्त हुए। ऐसे संघर्षशील जीवन और संकटों का सामना किसी विरले को ही प्राप्त होता है उसने देह को छोड़ दिया तो क्या, यह इबारत भी लिख दी है कि जिन्हें कर्मयोग से अपना लोहा मनवाना है उन्हें आलोक तोमर की तरह आग पर चलना होगा और यह साबित करना होगा कि हिम्मत बड़ी होती है, कर्तव्य बड़ा होता है और जियो तो उनके लिए जो आपमें अपने को देखते हैं।

सत्ताईस दिसंबर 1960 को मध्यप्रदेश के भिंड में जन्मे आलोक तोमर पत्रकारिता के सुपर स्टार प्रभाष जोशी की खोज थे। मैं उन्हें करीब तीस साल से जानता था जब दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र समूह ने प्रभाष जोशी के संपादकत्व में जनसत्ता निकाला। उस समय वे जनसत्ता के नगर संवाददाता हुआ करते थे। आलोक तोमर के रूप में तब हिंदी पत्रकारिता को यह नाम मिला। आलोक तोमर, प्रभाष जोशी के अनन्य भक्त थे और कहा जा सकता है कि यदि प्रभाष जोशी न होते तो आलोक तोमर भी न होते। प्रभाष जोशी के साथ उनका जीवनपर्यंत और उसके बाद भी उनके परिवार से अटूट नाता बना रहा। आलोक तोमर ने अपनी लेखन शैली से उन विषयों को जीवंत किया जिनमें हर ख़ास और आम की दिलचस्पी होती है। उन्हें अनेक लोकापवादों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन आलोक तोमर ने अपना पत्रकारिता धर्म नहीं छोड़ा और दुर्लभ रास्ता बनाया जिसे बनाना हर किसी के वश की बात नहीं है। यह बात ऐसे ही वीर सैनिकों के बारे में लिखी जा सकती है और आज हर कोई लिख रहा है। सरकारी पद्मविभूषणों के मिलने से पत्रकारिता नहीं सजती। पद्मविभूषण लेकर आज बहुत से पत्रकार अपने मिया मिट्ठू बने घूम रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि पत्रकारिता उन्हें अपना नहीं मानती। पत्रकारिता सजती है आलोक तोमरों से, प्रभाष जोशियों से, राजेंद्र माथुरों से। ये ही पत्रकारिता के असली मुकुट हैं। पत्रकारिता सच्चे कलमधारियों आलोक तोमर जैसों से ही सुशोभित होती है।

यहां जो आया है उसे जाना ही है यह हर एक जीवन का सच है। समाजवादी नायक डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल का इंतजार नहीं करती हैं, इसलिए एक मुकाम तक पहुंचने के लिए सौ साल नहीं बल्कि पचास साल की उम्र ही काफी है। अपने इस अल्प जीवन में आलोक तोमर ने पत्रकारिता की जो ऊंचाईयां छुईं, उनसे उन्होंने अपने में एक आत्मविश्वास और आत्मशक्ति पैदा की और ऐसी आत्मशक्ति कि वे कैंसर से भी विचलित नहीं हुए। दिल्ली के बत्रा अस्पताल में बाथरूम जाने के लिए उनके मित्र उन्हें सहारा देने उठे तो उन्होंने कहा कि 'नहीं मुझे कैंसर इतना कमज़ोर नहीं कर सकता कि मैं बाथरूम भी सहारे से जाऊं' लेकिन यह जीवन और मौत के बीच एक निर्णायक जंग थी जो आलोक तोमर लड़ रहे थे। शायद उनसे कोई चूक हुई और महाशक्तियों से लड़ने का हौसला रखने वाले आलोक तोमर नहीं समझ पाए कि कुछ ही पल बाद बाथरूम में ही उन पर एक बड़ा हृदयघात होने वाला है जिसके बाद उन्हें अचेतावस्था में चले जाना होगा और फिर कभी चेतना नहीं लौट पाएगी। शायद नियती को यह डर था कि यदि चेतना लौट आई तो आलोक तोमर फिर दहाड़ लगाएंगे। लेकिन सैनिक कभी हार नहीं मानता है, वह हारता नहीं है, हां, वीरगति को जरूर प्राप्त हो जाता है।

आलोक तोमर! आप हारे नहीं हैं, आप वीरगति को प्राप्त हुए हैं। पत्रकारिता तुम पर गर्व करती है। सुप्रिया! तुम भाग्यशाली हो जो तुम्हें आलोक तोमर जैसा महान पति मिला। तुम्हें आलोक तोमर की लड़ाई को एक और हौसला देना होगा जो तुम्हें आत्मशक्ति प्रदान करेगा और पत्रकारिता में अपना भविष्य खोजने वालों की सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगा। स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम इस वीर को भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ सैल्यूट करता है और उनके माता-पिता को धन्यवाद देता है जिन्होंने पत्रकारिता को आलोक तोमर दिया। हमने यहां आलोक तोमर की मां के साथ उनके दुलार के दो भावपूर्ण चित्र भड़ास4मीडिया से साभार लिए हैं।

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