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'प्रकृति संरक्षण को सामाजिक मूल्यों में शामिल करें'

रुद्रपुर में प्लास्टिक के उपयोग में कटौती विषय पर एक दिवसीय सेमिनार

प्रकृति संरक्षण की हो रही उपेक्षा पर विशेषज्ञ वक्ताओं ने चिंता जताई

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Friday 29 July 2022 01:55:28 PM

one day seminar on 'cutting plastic use'

रुद्रपुर (उत्तराखंड)। स्वच्छ पर्यावरण और स्वस्थ समाज केलिए प्लास्टिक मुक्त जीवनचर्या केलिए संकल्पित हों, प्रकृति बची रहेगी, तभी जीवन बचेगा, विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रकृति और पर्यावरण को संरक्षित करने का संकल्प दिवस है। ये बातें सरदार भगतसिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रुद्रपुर के समाज शास्त्र एवं जंतु विज्ञान विभाग में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार में जीवनदीप हॉस्पिटल के संचालक डॉ दीपक रस्तोगी ने कहीं। उन्होंने कहाकि हमें ध्यान देना होगा कि यदि हम प्रकृति के अनुकूल नहीं रहे तो प्रकृति भी हमारे अनुकूल नहीं रहेगी, प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण केप्रति जागरुकता पैदा करने केलिए ही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। डॉ दीपक रस्तोगी ने कहाकि हम कोई भी गतिविधि करने से पहले सोचें कि उससे प्रकृति को तो नुकसान नहीं होगा।
डॉ दीपक रस्तोगी ने कहाकि विकास की दौड़ अंधी है, जिसने हमें प्रकृति से दूर कर दिया है और प्रकृति में असंतुलन से पक्षी मनुष्य जीवन से दूर हो गए हैं, जबकि प्राकृतिक संतुलन से ही पशु-पक्षियों को मानवीय जीवन केलिए उपयोगी बनाया जा सकता है। सेमिनार में महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य प्रोफेसर एके पालीवाल ने कहाकि स्वस्थ माहौल ही स्थिर और उत्पादक समाज की बुनियाद होती है, प्रकृति संरक्षण के जरिए ही मौजूदा और आनेवाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित और सुनिश्चित किया जा सकता है। सेमिनार की संयोजक डॉ हेमलता सैनी ने अपील के जरिए कहाकि प्रकृति संरक्षण केलिए प्लास्टिक, पॉलीथिन इस्तेमाल करना बंद करें और कागज, जूट या कपड़े की थैली इस्तेमाल करें, प्रकृति से धनात्मक संबंध रखने वाली तकनीक, सामान का उपयोग करें। उन्होंने कहाकि हम अपनी आदत प्रकृति के अनुकूल बनाएं, तभी प्रकृति संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ेंगे। उन्होंने आगाह कियाकि प्रकृति के संरक्षण के बिना पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन का अस्तित्व संभव नहीं होगा, प्रकृति संरक्षण को सामाजिक मूल्यों में शामिल करना होगा।
सेमिनार की आयोजक सचिव डॉ दीपमाला ने कहाकि प्रकृति का संरक्षण मूल रूपसे उन सभी संसाधनों का संरक्षण है, जो प्रकृति ने मानव जाति को भेंट किए हैं, इनमें खनिज, जल निकाय, भूमि, धूप, वन्यजीवन और हरे-भरे जंगल आदि शामिल हैं। उन्होंने कहाकि वनस्पतियों और जीवों का संरक्षण पर्यावरण संतुलन केलिए सर्वाधिक जरूरी है, यह सुनिश्चित करने केलिए प्रकृति का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। समाजशास्त्र के सहआचार्य डॉ रविंद्र कुमार सैनी ने कहाकि मानव और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं, मानव प्रकृति केसाथ जैसा व्यवहार करता है, प्रकृति भी मानव केसाथ वैसा ही व्यवहार करती है। उन्होंने कहाकि हर नागरिक को प्रकृति के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए और संकल्प लेना चाहिए कि मानव कभीभी प्रकृति का ह्रास नहीं करेगा, सामाजिक चेतना के आधार पर ही हम प्रकृति का संरक्षण कर सकतें है, प्रकृति संरक्षण पर ही हमारा अस्तित्व निर्भर है। दीनदयाल उपाध्याय कौशल केंद्र के विभागाध्यक्ष डॉ विनोद कुमार ने कहाकि संसार में प्रकृति के बिना कोई भी जीव, जीवन का सपना नहीं देख सकता।
डॉ विनोद कुमार ने कहाकि मानव और प्रकृति केबीच एक अटूट संबंध है, मनुष्य की तकनीकी प्रगति ने प्रकृति को भी बुरी तरह प्रभावित किया है, मनुष्य अपने विकास की दौड़ में प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है, बिना यह सोचेकि इसके परिणाम कितने भयानक हो सकते हैं। सेमिनार का संचालन समाजशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ अंचलेश कुमार ने किया। सेमिनार में विद्यार्थियों ने प्रकृति संरक्षण पर पोस्टर बनाए, जिनकी सराहना हुई। सेमिनार में डॉ हरीश चंद्र, राजेश कुमार, डॉ शम्भू दत्त पांडेय, डॉ कमला भारद्वाज, डॉ मनीषा तिवारी, डॉ शलभ गुप्ता, डॉ कमला बोरा, डॉ पीपी त्रिपाठी, डॉ मनोज पांडेय, डॉ सुनील कुमार मौर्य, डॉ रंजीता जौहरी, डॉ हरनाम सिंह, महाविद्यालय के प्राध्यापक एवं छात्र-छात्राओं ने प्रकृति संरक्षण पर विचार प्रस्तुत किए। सेमिनार महाविद्यालय के फेसबुक पेज पर लाइव था, जिसका प्रसारण शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रभारी राजेश कुमार ने किया।

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