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छद्म किसानों का दिल्ली में देश के खिलाफ युद्ध!

गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर रैली दिल्ली पर हमले में बदल गई

असहाय पुलिस पर तलवारों से हमला, क्या हमलावर किसान हैं?

Tuesday 26 January 2021 05:00:44 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

kisan tractor rally turned into an attack on delhi and red fort

नई दिल्ली। भारत की आज़ादी के इतिहास में और वह भी राष्ट्रभक्त नरेंद्र मोदी सरकार में आज सवेरे देश की राजधानी दिल्ली पर वह सुनियोजित हमला हुआ जो न कभी हुआ था और न सोचा गया था। दिल्ली में छद्म किसानों की ख़तरनाक साजिशों ‌को समझने में विफल मोदी सरकार के शीर्ष रणनीतिकारों ने तथाकथित किसान नेताओं की गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसान ट्रैक्टर रैली की ज़िद मानकर और सुरक्षा के नाकाफी प्रबंध के कारण आज एक बड़ा धोखा खाया। इन तथाकथित किसानों ने दिल्ली में घुसकर देश के खिलाफ युद्ध सा छेड़ दिया, जिसे देखकर एकबार तो देश सन्न रह गया। मंज़र यह है कि ऐसे में कोई भी शत्रु देश इस मौके का फायदा उठाकर देशपर भी हमला कर सकता है, संसद भवन और प्रधानमंत्री आवास या राष्ट्रपति भवन पर कब्जे की योजना भी सफल हो सकती है। गणतंत्र दिवस परेड के साथ ही किसान ट्रैक्टर रैली जिस प्रकार दिल्ली और लाल‌ किले पर हमले में बदल गई, उससे अब देश में कभी भी किसी भी बड़ी अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता।
तथाकथित किसान नेताओं ने दिल्ली पुलिस को लिखकर भरोसा दिया था कि दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर रैली निकालने में किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी नहीं होगी, रैली शांतिपूर्ण होगी, रैली के रूट भी निर्धारित थे, लेकिन दिल्ली पुलिस को इन नेताओं से बड़ा धोखा मिला या दिल्ली पुलिस लापरवाह रही, जिसने इन नेताओं की योजनाओं को हल्के में लिया। दिल्ली पुलिस को यह उम्मीद भी नहीं थी कि तथाकथित किसान नेता दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर रैली की षडयंत्रपूर्वक अनुमति लेकर अराजक होकर दिल्ली पर तलवारों, कृपाणों, अवैध असलहों, पत्‍थरों लाठी-डंडों जैसे घातक हथियारों से पुलिस पर ही हिंसक हमला बोलेंगे, ‌हिंदुस्तान के लोकतंत्र के प्रतीक लालकिले में घुसकर उसके फ्लैग पोल पर खालसा और खालिस्तान के झंडे फहराएंगे एवं लहराएंगे। दिल्ली पुलिस ने इस अराजक संघर्ष में बहुत संयम दिखाया और लाठीचार्ज आंसूगैस को छोड़कर कोई गोली नहीं चलाई, जिसकी नौबत कई बार आई, नहीं तो न जानें कितनी मौतें होतीं जो विश्व समुदाय के लिए भारत के खिलाफ बहुत बड़ा मुद्दा बन जातीं।
बहरहाल अराजकता देखकर कहने वाले कह रहे हैं कि इसके बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार ने जो सात साल में कमाया है, वह अपनी कुछ विफल रणनीतियों के कारण दिल्ली में गंवा दिया है। नरेंद्र मोदी सरकार और उनके नवरत्न इस अराजकता और तथाकथित किसान संगठनों ‌की धमकियों को बहुत हल्के में ले रहे थे। भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने पंजाब के अकाली दल के साथ खड़े होकर जो गलबहियां कीं, वे भाजपा नेतृत्व को भारी पड़नी ही थीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत उत्साह में प्रकाश सिंह बादल को अपना समझ रहे थे। सच तो यह है कि भाजपा ने पंजाब में अकाली दल का साथ लेकर उनसे भी ज्यादा लोगों को नाराज़ किया है। पंजाब में ज्यादातर कांग्रेस और अकाली नेता ड्रग्स की तस्करी और किसान मंडियों में दलाली के कारोबार में लिप्त हैं, जिनपर तीन किसान कानूनों से बड़ी मार पड़ी है, यही लोग दिल्ली में कृषि कानूनों के खिलाफ अराजकता फैला रहे थे। क्या मोदी सरकार को इनके काले कारनामें मालूम नहीं थे?
नरेंद्र मोदी सरकार को इनका सबकुछ पता था, लेकिन वोट की राजनीति और भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत से नरेंद्र मोदी और उनके नवरत्न मानों अंधे हो गए थे और उन्हें यह भी गुमान हो गया था कि वे जो फैसले लेंगे, देश मान लेगा या उनके फैसलों के विरुद्ध कोई बोलने की हिम्मत नहीं करेगा। उन्होंने इस बात की अनदेखी की हैकि अडानी और अंबानी ही को संपूर्ण देश का कारोबारी पालनहार मान लेने से देश में नाराज़गी भी हो सकती है, मगर इन्हें हर क्षेत्र में अवसर दे दिए और यह अवसर आग बन गए, जिसमें आज मोदी सरकार झुलसने लगी है। भाजपा विरोधी राजनीतिक दल और नेता और अब तो आमजन भी खूब इनके विरोध में बोलने लगे हैं, जिनके बुरे परिणामों को मोदी सरकार ने नज़रअंदाज किया है, जिसका अंजाम आज देखने को मिला और यह आग यहीं ठंडी नहीं हो जाएगी, इसका असर मोदी सरकार के भविष्य के और भी बड़े फैसलों पर जरूर पड़ेगा। पहलीबार देशभर में जनसामान्य में इस तथाकथित किसान आंदोलन और उसके किसान नेताओं की घोर निंदा हो रही है तो नरेंद्र मोदी सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। विघटनकारी तत्व दिल्ली में जब उच्च सुरक्षा जोन में मौजूद लालकिले पर जा चढ़े और सुरक्षा के सारे प्रबंध बोदे साबित हो गए तो संसद भवन, प्रधानमंत्री निवास, सुप्रीम कोर्ट और विशिष्ट नेताओं की सुरक्षा की क्या गारंटी रह गई है?
दिल्ली में लालकिले पर यह कोई मामूली हमला नहीं है, खालिस्तानी आतंकवादियों ने मोदी सरकार को पहले से ही लालकिले पर अपना झंडा फहराने की चुनौती दी हुई थी। ऐसा नहीं होता अगर दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय जरूरत से ज्यादा ग़लतफहमी में नहीं रहता। अमृतसर स्वर्ण मंदिर में ब्लू स्टार आप्रेशन का सदैव कड़ा विरोध करती आ रही भाजपा और मोदी सरकार आज अच्छी तरह जान गई होगी कि इंदिरा गांधी ने जटिल मजबूरी में ही ब्लू स्टार आप्रेशन किया होगा और यह हो सकता है कि पंजाब और अमृतसर का पवित्र स्वर्ण मंदिर फिर से खालिस्तानी आतंकवादियों का अड्डा बन गया हो एवं फिर उसी तरह के हालात बन गए हों। आज तो यह हर किसी को पता है कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, पंजाब के अकाली दल और उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी, पाकिस्तान और भारत विरोधी ताकतों सहित अन्य विरोधी घटक हरतरह से खुलकर इस कथित किसान आंदोलन के साथ हैं और एकजुट होकर भाजपा और मोदी सरकार के विरुद्ध हो गए हैं एवं नरेंद्र मोदी सरकार को इससे निपटने के लिए खास रणनीति की जरूरत थी, जिसमें कृषि कानूनों के बारे में घर-घर जाकर जानकारी देनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भाजपा के मुख्यमं‌त्री अधिकांश मंत्री और नेताओं ने इसके प्रचार पर गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया।
यह सही है कि मोदी सरकार के लिए कुछ सुधारों को छोड़कर कृषि कानूनों को वापस लेना और भी घातक हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो फिर इससे पहले और जो कड़े निर्णय लिए जा चुके हैं और आगे भी लिए जाने हैं, तो उनको लागू करना असंभव हो जाएगा। विपक्ष की रणनीति यही है कि मोदी सरकार के तीनों कृषि कानून वापस होते ही बाकी कानूनों की वापसी के लिए मोदी सरकार पर इससे भी तेज़ धावा बोल दिया जाएगा, जिसके बाद मोदी सरकार और भाजपा का सारा खेल ही खत्म। मोदी सरकार को बंगाल के चुनाव में जाना है, लेकिन इस घटनाक्रम से नकारात्मक संदेश गया है। यद्यपि दिल्ली पुलिस ने इस हिंसक उपद्रव पर गोली नहीं चलाकर किसी को भी राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका नहीं दिया, तथापि दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत थी, जो नहीं बरती गई, इसका कारण जो भी रहा हो। यह तो पूरा देश समझ गया था कि यह देशभर के किसानों का आंदोलन नहीं है, सामान्य किसान तो कृषि कानूनों से खुश है, इसमें पंजाब के कांग्रेसी और भाजपा के नए विरोधी अकाली, किसानों के रूपमें पंजाब की मंडियों के आढ़ती और कमीशन एजेंट एवं उत्तर प्रदेश में ब्लैक मेलिंग राजनीति के पर्याय राकेश टिकैत के उकसाए हुए लोग शामिल हैं।
गणतंत्र दिवस पर इन्होंने जिस प्रकार दिल्ली में शांतिपूर्ण ट्रैक्टर रैली के बहाने हिंसक अराजकता फैलाकर देश के किसानों के नाम पर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की है, उसमें इनके देश के खिलाफ युद्ध की भांति ऐसे-ऐसे खौफनाक मंजर सामने आए हैं, जिन्हें देखकर नहीं कहा जा सकता कि यह कोई किसान आंदोलन है। कुछ नामधारी टीवी चैनल्स और उनके पत्रकार एवं मीडिया पर्सन इसे देश का किसान आंदोलन बताते आ रहे हैं और इन उपद्रवियों को अभी भी किसान कहकर संबोधित कर रहे हैं। यह भी सुनने को मिला है कि बड़े टीवी चैनलों के कुछ रिपोर्टर दिल्ली के होटलों में जाकर किसान आंदोलन में शामिल कुछ दलों संगठनों के नेताओं से पैसा प्राप्त कर रहे हैं और अपने चैनलों पर इस तांडव को सफल किसान आंदोलन बताते आ रहे हैं। इसमें एक और बात प्रमुख रूपसे सामने आई है कि यह किसानों का नहीं, बल्कि उन लोगों का आंदोलन है, जो विघटन और देश के बाहरी तत्वों से मिलकर मोदी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। इस आंदोलन में पाकिस्तान और कनाडा की गहरी दिलचस्पी बता रही है कि इसके तार कहां तक जुड़े हैं। केंद्र सरकार ने किसानों की हर दौर की बात सुनी है और कृषि कानूनों पर गलतफहमी दूर करने की बारंबार कोशिश की है, लेकिन इनके इरादे किसानों की हमदर्दी से जुड़े नहीं पाए गए हैं, बल्कि यह कहीं और से प्रायोजित पाए गए हैं।
किसान आंदोलन का उदाहरण बड़ा उल्लेखनीय है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आंदोलन में मरे कुछ लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। इनमें एक बात और पता चली है कि पंजाब की मंडियों के आढ़ती और कमीशन एजेंट किसान नेता के रूपमें सरकार से वार्ता में जा रहे हैं, जबकि इनसे सामान्य किसान का कोई भी लेना-देना नहीं है। उसको तो यह लोग लूटते हैं, मंडियों पर उपज खरीदते समय उनके साथ गुंडे जैसा व्यवहार करते हैं। उत्तर प्रदेश के तथाकथित किसान नेताओं की भी ऐसी ही पहचान और स्थिति है। राकेश टिकैत को किसान अब किसान नेता नहीं, बल्कि किसानों के नाम पर ब्लैकमेलिंग और दलाली करने वाला साजिशकर्ता कहा जाता है और माना जाता है। राकेश टिकैत के ही क्षेत्र में उसके घर के आसपास के लोगों की उसके बारे में कोई अच्छी राय नहीं है। राकेश टिकैत का कहना कि 2024 तक किसान कानूनों को टाल दिया जाए, इस बात को सिद्ध करता है कि वह यह बताना चाहते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार किसानों के विरोध के कारण चली जाएगी, ऐसा ही पंजाब के कुछ आढ़ती और कमीशन एजेंट बोलते हैं, लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं है कि देश की जनता का जो मूड है, वह पूरी तरह से इन तथाकथित नेताओं के खिलाफ जा चुका है। देश की जनता बिल्कुल भी इस आंदोलन को किसान आंदोलन नहीं मान रही है, यह तथाकथित किसान नेता दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर रैली निकालने की ज़िद पर क्यों अड़े थे, अब देश की समझ में आ गया है। 

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