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देश में हींग और केसर की पैदावार को बढ़ावा

सीएसआईआर-आईएचबीटी का हिमाचल सरकार से समझौता

अत्याधुनिक टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना भी की जाएगी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 9 June 2020 02:35:37 PM

csir-ihbt agreement with himachal government

नई दिल्ली। भारत में केसर और हींग का उत्पादन बढ़ाने के लिए हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (सीएसआईआर-आईएचबीटी) ने परस्पर रूपसे रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने के लिए हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग के साथ हाथ मिलाया है। सीएसआईआर-आईएचबीटी ने केसर उत्पादन की तकनीक विकसित की है, जिसका उपयोग उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के गैर परंपरागत केसर उत्पादक क्षेत्रों में किया जा रहा है। संस्थान में रोगमुक्त घनकंद के उत्पादन के लिए टिश्यू कल्चर प्रोटोकॉल भी विकसित किए गए हैं। सीएसआईआर-आईएचबीटी ने नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज नई दिल्ली की मदद से हींग से संबंधित छह पादप सामग्री पेश की हैं और उसके उत्पादन की पद्धति को भारतीय दशाओं के अनुसार मानक रूप प्रदान करने का प्रयास किया है।
केसर और हींग दुनिया के सबसे मूल्यवान मसालों में गिने जाते हैं। भारतीय व्यंजनों में सदियों से ही हींग और केसर का व्यापक रूपसे उपयोग होता आया है, इसके बावजूद देश में इन दोनों कीमती मसालों का उत्पादन सीमित है। भारत में केसर की वार्षिक मांग करीब 100 टन है, लेकिन देश में इसका औसत उत्पादन लगभग 6-7 टन ही होता है। इस कारण हर साल बड़ी मात्रा में केसर का आयात करना पड़ता है। इसी तरह भारत में हींग का उत्पादन भी नहीं है और हर साल 600 करोड़ रुपये मूल्य की लगभग 1200 मीट्रिक टन कच्ची हींग अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों से आयात करनी पड़ती है। जम्मू-कश्मीर में वर्तमान में करीब 2,825 हेक्टरेयर क्षेत्र में केसर की खेती होती है। केसर और हींग की फसल की पैदावार बढ़ती है तो इनके आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी।
हींग बारहमासी पौधा है और यह रोपण के पांच साल बाद जड़ों से ओलियो-गम राल का उत्पादन करता है, इसे ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र की अनुपयोगी ढलान वाली भूमि में उगाया जाता है। इस पहल के शुरू होने बाद इन दोनों फसलों की गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए अत्याधुनिक टिश्यू कल्चर लैब की स्थापना की जाएगी। समझौते के दौरान सीएसआईआर-आईएचबीटी के निदेशक डॉ संजय कुमार भी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि यह साझेदारी हिमाचल प्रदेश में कृषि आय बढ़ाने, आजीविका में वृद्धि और ग्रामीण विकास के उद्देश्य को पूरा करने में मददगार साबित होगी, इस पहल के तहत किसानों और कृषि विभाग के अधिकारियों को क्षमता निर्माण, नवाचारों के हस्तांतरण, कौशल विकास और अन्य विस्तार गतिविधियों का भी लाभ मिलेगा।
सीएसआईआर-आईएचबीटी के निदेशक डॉ संजय कुमार ने बताया कि सीएसआईआर-आईएचबीटी किसानों को इसके बारे में तकनीकी जानकारी मुहैया कराने के साथ-साथ राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों एवं किसानों को प्रशिक्षित करेगा और राज्य में केसर एवं हींग के क्रमशः घनकंद और बीज उत्पादन केंद्र भी खोले जाएंगे। डॉ संजय कुमार ने बताया कि परियोजना के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तकनीकी सहायता के अलावा केसर उत्पादन क्षेत्रों की निगरानी और किसानों के लिए अन्य क्षेत्रों के दौरे भी आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने अगले पांच वर्ष में राज्य में कुल 750 एकड़ भूमि इन फसलों के अंतर्गत आने की उम्मीद व्यक्त की है। हिमाचल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के निदेशक डॉ आरके कौंडल ने भी कहा कि इससे किसानों की आजीविका में वृद्धि के साथ-साथ राज्य और देश भी लाभांवित होगा।

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