स्वतंत्र आवाज़
word map

परजीवी के सामने हुए 'परमाणु बम' निस्तेज

आखिर भारत के नालंदा तक्षशिला शारदा ही संकटमोचक

अहंकारी हेकड़ी से अब यूरोप का सूरज डूबने जा रहा है

Thursday 4 June 2020 06:21:39 PM

गौरव यादव

गौरव यादव

nalanda taxila sharada of india

मध्ययुग में पूरे यूरोप पर राज करने वाला रोम यानी इटली नष्ट होने के कगार पर आ गया है। मध्यपूर्व को अपने कदमों से रौंदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ईरान, सऊदी, टर्की भी अब घुटनों पर हैं। जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था, उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिस बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं। जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे, उस रूस के बॉर्डर सील हैं, जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं, जो पूरी दुनिया का अघोषित चौधरी है उस अमेरिका में लॉकडाउन है और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहता है वो चीन आज मुंह छिपाता फिर रहा है और सब देशों की गालियां खा रहा है। एक सूक्ष्म परजीवी के सामने ये सभी 'परमाणु बम' निस्तेज हो चुके हैं।
आधुनिक स्वास्‍थ्य सुरक्षा के सामने एक जरासे परजीवी ने विश्व को घुटनों पर ला दिया है। न एटम बम काम आ रहे हैं, न पेट्रो रिफाइनारी। मानव एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा है। क्या हुआ? निकल गई हेकड़ी? बस इतना ही कमाया था आपने इतने वर्ष में कि एक छोटे से जीव ने सबको घरों में कैद कर दिया। कोरोना वायरस से ग्रस्त ये सब देश भारत की तरफ आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं। उस भारत की ओर जिसका ये सदियों से अपमान करते रहे, रोंदते रहे, लूटते रहे। एक मामूली से जीव ने इन सबको औकात बता दी। भारत जानता है कि युद्ध अभी शुरू हुआ है। जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, ग्लेशियरों की बर्फ पिंघलेगी और लाखों वर्ष से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु आज़ाद होंगे, जिनका न आपको परिचय है और न ही आपकी इनसे लड़ने की कोई तैयारी। कोरोना वायरस तो एक झांकी है, चेतावनी है, उस आने वाली विपदा की, जिसे आपने-हमने ही जन्म दिया है।
मेनचेस्टर की औद्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स संसार को अंत के मुहाने पर ले आई है। क्या आप जानते हैं कि इस आपदा से लड़ने का तरीका कहां छुपा है? तक्षशिला के खंडहरों में, नालंदा की राख में, शारदा पीठ के अवशेषों में, मार्तण्डेय के पत्थरों में। सूक्ष्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध कोई नया नहीं है, ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है और सदैव चलता रहेगा। इससे लड़ने के लिए हमने हथियार खोज भी लिया था, मगर यूरोप के अहंकार, लालच, स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठधर्मिता ने सब नष्ट कर दिया है। क्या चाहिए था आपको? स्वर्ण एवं रत्नों के भंडार? यूं ही मांग लेते! भारत के राजा बलि के वंशज और कर्ण के अनुयाई आपको यूं ही दान में दे देते और आप यहां से यह सब लूटकर छीनकर ले भी गए हैं! सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले भगवान महावीर और भगवान बुद्ध, गुरुनानक देवजी के समाज के लिए ये सब यूं भी मूल्यहीन ही थे, मगर आपने क्या किया?
विश्वबंधुत्व की बात करने वाले समाज को नष्ट कर दिया? जिस बर्बर, मक्कार और धूर्त का मन आया वही भारत चला आया, भारत को रौंदने, लूटने, मारने, जीव में भगवान शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने। कोई विश्वविजेता बनने केलिए तक्षशिला को तोड़कर चला गया, कोई सोने की चमक में अंधा होकर सोमनाथ लूटकर ले गया तो कोई किसी को खुद को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा की किताबों को जला गया, किसी ने बर्बरता को जिताने के लिए शारदा पीठ को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। भारतीय ऐतिहासिक पुरातात्‍विक स्‍थलों और धर्मस्‍थानों को ध्वस्त कर दिया गया तो किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बनी भारत की गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया और आज करुणाभरी निगाहों से भारत की ओर ही देख रहे हैं। उसी पराजित, अपमानित, पद दलित, भारत भूमि की ओर जिसने अभी-अभी अपने घावों को भरकर अंगड़ाई लेना आरम्भ की है।
हम फिर भी निराश नहीं करेंगे, फिर से माँ भारती का आंचल आपको इस संकट की घड़ी में छांव देगा, श्रीराम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे। मार्ग तो उन्हीं नष्ट किए गए हवन कुंडों से ही निकलेगा, जिन्हें कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोड़ा था। आपको उसी नीम और पीपल की छांव में आना होगा, जिसके लिए आपने हमारा उपहास किया था। आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा, जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया। उन्हीं मंदिरों में जाकर घंटा नाद करना होगा, जिनको कभी आपने तोड़ा था। उन्हीं वेदों को पढ़ना होगा, जिन्हें आपने कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था। उसी चंदन तुलसी को मस्तक पर धारण करना होगा, जिसके लिए कभी हमारे मस्तक धड़ से अलग किए गए थे। आज यह प्रकृति का न्याय है और आपको स्वीकार करना ही होगा। फिर कहता हूं कि आपको इस दुनिया को अगर जीना है तो सोमनाथ मंदिर में सर झुकाने को जाना ही होगा, तक्षशिला के खंडहरों से क्षमा मांगनी ही होगी, नालंदा की ख़ाक छाननी ही होगी। मंदिरों के घंटानाद की तीव्र ध्वनि तरंगों से कई वायरस मर जाते हैं, यह आपने स्वीकार करना अब प्रारंभ किया है। हाथ जोड़कर अभिवादन करना आपने शुरू कर ही दिया है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग् भवेत् !!

(यह कमेंट फेसबुक पर गौरव यादव की पोस्ट से साभार लिया गया है)।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]