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भारत विभाजन की भूल मोदी सरकार ने सुधारी!

अल्पसंख्यकों की नागरिकता हेतु भारत के द्वार खुले-गृहमंत्री

कांग्रेस चीन पाकिस्तान बांग्लादेश ने पूर्वोत्तर को भड़काया?

Thursday 12 December 2019 04:03:49 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

home minister amit shah

नई दिल्ली। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए अल्पसंख्यक हिंदू सिख बौद्ध जैन पारसी और ईसाई अब भारत के नागरिक हो गए हैं, इसी प्रकार इन देशों से भविष्य में भारत आने वाले ये समुदाय भारत में आने के छह साल होने पर भारत के नागरिक हो जाएंगे। चीन पाकिस्तान और बांग्लादेश एवं भारत के कांग्रेस टीएमसी समेत विपक्षी दलों के उकसाए हुए भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ जिलों के लोगों के हिंसक विरोध और संसद में कांग्रेस बसपा सपा आरजेडी टीएमसी एनसीपी शिवसेना के भारी हंगामें एवं विरोध-अवरोध के बावजूद नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को संसद ने पारित कर दिया। लोकसभा में भाजपा गठबंधन सरकार का बहुमत है, इसलिए यह विधेयक वहां पारित होने के बाद जब राज्यसभा पहुंचा तो वहां एनडीए का पर्याप्त संख्याबल नहीं होने के बावजूद भाजपा के शानदार फ्लोर प्रबंधन से नागरिकता संशोधन कानून को राज्यसभा में भी आशा से अधिक सफलता प्राप्त हुई।
नागरिकता कानून में इस संशोधन को सत्तर साल पहले भारत विभाजन की एक बड़ी भूल में सुधार माना जा रहा है। नागरिकता कानून में संशोधन से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों पर वहां के बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा यातनाओं अत्याचारों धर्मपरिवर्तन नारकीय जीवन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत के इस कदम से पाकिस्तान में कट्टरपंथियों में कोहराम मचा है। पाकिस्तान की सरकार बौखला गई है और उसने भारत पर विभाजन के समय के समझौते तोड़ने का आरोप लगाया है। भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों का पाकिस्तान से भी बुरा हाल है। संसद में जिस तरह इन राजनीतिक दलों ने नागरिकता कानून का विरोध ‌किया है और जिस प्रकार कांग्रेस और टीएमसी आदि विपक्षी दलों ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा की आग फैलाने में घी का काम किया है, वह पूरा देश देख रहा है, लेकिन बाकी देश में खुशी का माहौल है और जब पूर्वोत्तर राज्यों की गलतफहमी दूर हो जाएगी तब वहां भी खुशियां ही खुशियां दिखाई देंगी। बहरहाल देशवासी इस ऐतिहासिक फैसले का सारा श्रेय भाजपा गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को दे रहे हैं, जिन्होंने अपने दुर्लभ और कड़े फैसलों से भारत को विश्व समुदाय में प्रतिष्ठापित किया है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा और राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पर जिस प्रकार विपक्ष को निरुत्तर किया और देश को बताया कि कैसे कांग्रेस और विपक्ष में पाकिस्तान की भाषा बोली जा रही है, उससे कांग्रेस शिवसेना टीएमसी एनसीपी सपा-बसपा जैसे दल देश में आने वाले समय में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से तौबा करते नज़र आएंगे। अमित शाह ने यह भी सिद्ध किया कि किस प्रकार राज्यसभा में बहुमत न होते हुए भी राजनीतिक कौशल से यह कानून भी उम्मीद से ज्यादा सदस्यों का समर्थन हासिल करने में सफल रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री ने राज्यसभा में आपत्तियों और संशोधनों पर बोलते हुए कहा कि यह बिल करोड़ों लोगों को सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करेगा। उन्होंने विपक्ष पर सवाल दागते हुए कहा कि क्या पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को जीने का अधिकार नहीं है? केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों की आबादी में काफी कमी हुई है, वहां ये लोग या तो मार दिए गए हैं या उनका जबरन धर्मांतरण कराया गया जो शरणार्थी बनकर भारत में आए।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि तीनों मुस्लिम देशों में धर्म के आधार पर प्रताड़ित ऐसे लोगों को संरक्षित करना इस नागरिकता संशोधन का उद्देश्य है। उन्होंने अनेक बार दृढ़ता से कहा कि भारत में रह रहे अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों का इस बिल से कोई भी लेना-देना नहीं है, यह बिल नागरिकता देने के लिए है नागरिकता छीनने के लिए नहीं है, इसलिए भारत के मुसलमानों को इस बिल की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अमित शाह ने कहा कि इस बिल का उद्देश्य उन लोगों को सम्मानजनक जीवन देना है जो दशकों से पीड़ित थे। अमित शाह ने कहा कि देश का बंटवारा और बंटवारे के बाद की स्थितियों के कारण यह बिल लाना पड़ा है। उनका कहना था कि 70 साल तक देश को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया, नरेंद्र मोदी सरकार सिर्फ सरकार चलाने के लिए नहीं आई है देश को सुधारने के लिए और देश की समस्याओं का समाधान करने के लिए आई है। अमित शाह ने कहा कि हमारे पास पांच साल से बहुमत है, हम भी सत्ता का केवल भोग कर सकते थे, किंतु देश की इन समस्याओं को कितने साल तक लटका कर रखा जाए? उन्होंने विपक्षी सांसदों से कहा कि वे अपनी आत्मा के साथ संवाद करें और सोचें कि यदि यह बिल 50 साल पहले आ गया होता तो समस्या इतनी बड़ी नहीं होती।
अमित शाह ने कहा कि भाजपा के 2019 के घोषणा पत्र में असंदिग्ध रूपसे कहा गया था और यह इरादा जनता के समक्ष रखा गया था कि भाजपा सरकार पड़ोसी देशों के प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए सीएबी लागू करेगी, जिसका जनता ने जनादेश दिया है। अमित शाह का कहना था कि देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ यह सबसे बड़ी भूल थी। उन्होंने कहा कि 8 अप्रैल 1950 को नेहरू-लियाकत समझौता, जो दिल्ली समझौते के नाम से भी जाना जाता है में यह वादा किया गया था कि दोनों देश अपने-अपने अल्पसंख्यकों के हितों का ध्यान रखेंगे, किंतु पाकिस्तान में इसे कभी भी अमल में नहीं लाया गया, जबकि भारत ने यह वादा निभाया और यहां के अल्पसंख्यक सम्मान के साथ देश के सर्वोच्च पदों पर काम करने में सफल हुए हैं, तीनों पड़ोसी देशों ने इस वादे को कभी नहीं निभाया बल्कि अपने यहां अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित ही किया है। एक प्रश्न के जवाब में अमित शाह ने कहा कि नागरिकता बिल में पहले भी संशोधन हुए और विभिन्न देशों को उस समय की समस्या के आधार पर प्राथमिकता दी गई और वहां के लोगों को नागरिकता प्रदान की गई। उन्होंने कहा कि आज भारत की सीमा से जुड़े हुए इन तीन देशों के अल्पसंख्यक शरण लेने आए हैं, इसलिए इन तीन देशों की समस्या का जिक्र किया जा रहा है।
अमित शाह ने कहा कि पासपोर्ट, वीजा के बगैर जो प्रवासी भारत में आए हैं, उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है, किंतु इस बिल के पास होने के बाद तीनों देशों के अल्पसंख्यकों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा। अमित शाह ने कहा कि यह बिल भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को लक्षित नहीं करता है, धार्मिक उत्पीड़न के शिकार इन तीनों देशों के लोग रजिस्ट्रेशन कराकर भारत की नागरिकता ले पाएंगे। अमित शाह ने कहा कि 1955 की धारा 5 या तीसरे शेडयूल की शर्तें पूरी करने के बाद जो शरणार्थी आए हैं उन्हें उसी तिथि से नागरिकता दी जाएगी जब से वह यहां आए, इस बिल के पास होने के बाद उनके ऊपर से घुसपैठ या अवैध नागरिकता के केस स्वतः ही समाप्त हो जाएंगे। अमित शाह ने कहा कि अगर इन अल्पसंख्यकों के पासपोर्ट और वीजा समाप्त हो गए हैं तो भी उन्हें अवैध नहीं माना जाएगा। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार पूर्वोत्तर राज्यों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अधिनियम के संशोधनों के प्रावधान असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्र पर लागू नहीं होंगे, क्योंकि ये संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं और पूर्वी बंगाल के तहत अधिसूचित 'इनर लाइन' के तहत आने वाले क्षेत्र को कवर किया गया है। एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए अमित शाह ने कहा कि मणिपुर को इनर लाइन परमिट शासन के तहत लाया जाएगा और इसके साथ ही सिक्किम सहित सभी उत्तर पूर्वी राज्यों की समस्याओं का ध्यान रखा जाएगा।
गृहमंत्री अमित शाह ने असम का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि असम आंदोलन के शहीदों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। उन्होंने उल्लेख किया कि 1985 में राजीव गांधी के द्वारा क्लॉज़ सिक्स के तहत एक कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया था जो वहां के लोगों की भाषा, संस्कृति और सामाजिक पहचान की रक्षा करती, किंतु आश्चर्यजनक बात यह है कि 1985 से लेकर 2014 तक तीन दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वह कमेटी नहीं बन सकी। उन्होंने कहा कि 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद उस कमेटी का गठन किया गया। उन्होंने असम सरकार से आग्रह किया कि वह समझौते के प्रावधानों को पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपे। उन्होंने राज्यसभा में उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के लोगों की सभी आशंकाओं को दूर किया। गृहमंत्री ने दोहराया कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को संरक्षित रखा जाएगा और इस संशोधन विधेयक में इन राज्यों के लोगों की समस्याओं का समाधान है, ‌जिन्हें पिछले एक महीने से नॉर्थ ईस्ट के विभिन्न हितधारकों के साथ मैराथन विचार-विमर्श के बाद शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक विचारधाराओं से परे एक मानवतावादी के रूपमें देखा जाना चाहिए।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि नागरिकता संशोधन में ऐसे शरणार्थियों को उचित आधार पर नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान हैं, जो किसी भी तरह से भारत के संविधान के तहत किसी भी प्रावधान के खिलाफ नहीं जाते हैं और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करते हैं। अमित शाह ने कहा कि देश के अल्पसंख्यकों को नरेंद्र मोदी सरकार के होते हुए डरने की जरूरत नहीं है, यह सरकार सभी को सुरक्षा और समान अधिकार देने के लिए प्रतिबद्ध है। अमित शाह ने एक सदस्य के आरोप के जवाब में कहा कि हम चुनावी राजनीति अपने देश के नेता के दम पर करते हैं और उसमें सफल होते हैं किंतु देश की समस्या का समाधान करते समय पूरा ध्यान समस्या पर केंद्रित होता है। अमित शाह ने बताया कि नरेंद्र मोदी के शासनकाल में पिछले 5 वर्ष में 566 से ज्यादा मुसलमानों को भारत की नागरिकता दी गई है और यह बिल सिर्फ नागरिकता देने के लिए है, किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार मानती है कि जिनकी प्रताड़ना हुई है, उन सबकी मदद सरकार को करनी चाहिए।

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