स्वतंत्र आवाज़
word map

'पढ़ो तो पूरा पढ़ो, तल तक जाओ...!'

चौपाल का मोहनकृष्ण बोहरा पर केंद्रित विशेषांक

चौपाल में जीवन यात्रा का तटस्थ वर्णन व चित्रण

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 14 August 2019 12:27:08 PM

chaupal's special focus on mohankrishna bohra

जोधपुर। हिंदी के वयोवृद्ध आलोचक प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा ने अपने अस्सीवें जन्मदिन पर जोधपुर के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स सभागार में चौपाल पत्रिका के विशेषांक का विमोचन कार्यक्रम में बड़े ही प्रेरणादायी और दार्शनिक विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि 'पढ़ो तो पूरा पढ़ो, तल तक जाओ, आगे बढ़ो तो उत्स तक जाओ।' उन्होंने अपनी जीवन यात्रा और लेखन यात्रा का बहुत निर्मम और तटस्थ वर्णन और चित्रण किया। अपने साहित्यिक जीवन में नेमिचंद्र जैन भावुक के अवदान को उन्होंने कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार किया।
विमोचन कार्यक्रम के अध्यक्ष कवि और चिंतक डॉ नंदकिशोर आचार्य ने प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा के साथ अपने सुदीर्घ और सघन रिश्तों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि उनकी मूल्य दृष्टि सहानुभूतिशील और निष्पक्ष है। इस अवसर पर प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा की कौटिल्य प्रकाशन से प्रकाशित दो पुस्तक 'रचनाकार का संकट' और 'समकालीन कहानीकार: नया वितान' का लोकार्पण किया गया। एटा से प्रकाशित पत्रिका चौपाल में प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा पर केंद्रित विशेषांक 'साहित्य साधना के अस्सी वर्ष: मोहनकृष्ण बोहरा' का भी लोकार्पण हुआ। इस विशेषांक का सम्पादन जानेमाने आलोचक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने किया है।
विमोचन समारोह में बनास जन के सम्पादक और युवा आलोचक डॉ पल्लव ने कहा कि हिंदी आलोचना अभी तक मुख्यत: कविता केंद्रित रही है और उसमें कहानी पर कम ध्यान दिया गया है, ऐसे में प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा की इस लोकार्पित पुस्तक समकालीन कहानीकार एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है। पल्लव ने प्रसन्नता व्यक्त की कि आज उत्तर प्रदेश की एक पत्रिका ने राजस्थान के एक बड़े आलोचक पर अपना विशेषांक केंद्रित किया है। चौपाल के सम्पादक डॉ कामेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि लघु पत्रिका आंदोलन की सार्थकता चकाचौंध से दूर निष्ठा से साहित्यसेवा में लगे साहित्यकारों और विचारों का जनजन तक प्रसार करे।
डॉ माधव हाड़ा ने प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा के साथ बिताए समय की कुछ मार्मिक स्मृतियों को साझा किया। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा ने कभी कहीं भी शॉर्टकट नहीं अपनाया और यही वजह है कि वे हिंदी में प्राय: हाशिये पर मानी जानेवाली पुस्तक समीक्षा को भी प्रतिष्ठा प्रदान कर सके। डॉ हरिदास व्यास ने कहा कि एक आलोचक के रूपमें प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा रूढ़ और जड़ होने से बचते हैं। इस मौके पर प्रोफेसर मोहनकृष्ण बोहरा की पौत्री झिलमिल की वीडियो फिल्म भी प्रदर्शित की गई। फिल्म का शीर्षक था-'जीवन के मधुर क्षण।' कार्यक्रम में प्रोफेसर मीनू रॉय, आशा बोथरा, भावेंद्र शरद जैन, डॉ पुष्पा गुप्ता, भागचंद सोलंकी, मुकेश भार्गव, प्रोफेसर कैलाश कौशल और अदिति ने भी विचार व्यक्त किए। प्रोफेसर बोहरा के सुपुत्र मधुसूदन बोहरा ने कृतज्ञता प्रकट की।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]