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बीमारी के उपचार बाद भी सर्तकता जरूरी!

दवाईयों के सेवन में भी सर्तकता बरतें-डॉ एसके मुंद्रा

दवाई लेने के सुझाव और बड़ी उपयोगी जानकारियां

Saturday 25 May 2019 04:15:57 PM

उमेश कुमार सिंह

उमेश कुमार सिंह

dr. s.k. mundra

शरीर में किसी भी रोग के उपचार के बाद भी उसके प्रति सतर्क रहना बहुत जरूरी है। जब हम बीमार होते हैं और डॉक्टर के पास जाते हैं तो डॉक्टर रोगानुसार हमारा उपचार करता है, वह हमें दवाईयां देता है और अगर दवाईयों से रोगी ठीक नहीं हो तो सर्जरी का सुझाव देता है, लेकिन ये सब इतना आसान भी नहीं है। डायग्नोसिस दवाईयां लेने और सर्जरी के दौरान या बाद में हुई गड़बडियां न केवल बीमारी को बढ़ा देती हैं, बल्कि कई बार जानलेवा भी हो सकती हैं। दवाईयों के सेवन से जुड़ी सावधानियों के बारे में नई दिल्ली में सरोज सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के एचओडी एवं सीनियर कंसल्टेंट इंटरनल मेडिसिन डॉ एसके मुंद्रा के इस विषय पर सुझाव और जानकारियां बड़ी उपयोगी हैं।
डॉ एसके मुंद्रा का कहना है कि दवाईयों का शरीर पर या तो इफेक्ट होता है या साइडइफेक्ट और अगर दवाई सही मात्रा में ली जाए तो उसका शरीर पर उपचारात्मक प्रभाव होता है, दूसरी तरफ दवाईयों का जरूरी मात्रा से अधिक सेवन किया जाए तो इसका शरीर पर विषैला प्रभाव होता है। डॉ एसके मुंद्रा ने बताया कि अलग-अलग दवाईयों के ओवरडोज के अलग-अलग प्रभाव होते हैं, जैसे एंटी बॉयोटिक का अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो डायरिया हो जाता है, पेन कीलर्स का लंबे समय तक सेवन करने से एसिडिटी, गैस, उल्टियां और बदहजमी की समस्या हो जाती है, कई बार इनके लगातार सेवन से अल्सर बन जाता है, जिससे खून की उल्टियां होती हैं।
डॉ एसके मुंद्रा का कहना है कि शुगर की दवाई का कम डोज लेने या न लेने से शुगर बढ़ सकती है, जो खतरनाक हो सकती है। उनका कहना है कि अगर अधिक डोज ले लिया जाए तो शरीर में शुगर का स्तर अत्यधिक कम हो जाता है, जिससे अत्यधिक पसीना आना, कमजोरी महसूस होना, बहुत भूखप्यास लगना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं, ऐसे में मरीज को ऐसा लगता है, जैसे उसके शरीर में जान ही नहीं रह गई है। कई बार ऐसा होता है कि डायबिटीज के रोगी दवाई ले लेते हैं और भोजन खाना भूल जाते हैं या बहुत देर बाद खाना खाते हैं, उससे भी इसी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। ब्लड प्रेशर की दवाई नियमित समय और उचित मात्रा में न ली जाए तो सिरदर्द, चक्कर आना, ब्रेन स्ट्रोक और नाक से खून आने की समस्या हो सकती है।
डॉ एसके मुंद्रा का कहना है कि कई लोगों को सही मात्रा में दवाईयों का सेवन करने पर भी कुछ साइड इफेक्ट्स हो जाते हैं। डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन के साथ लिखकर देते हैं या मरीज को समझाते हैं कि अगर फलां दवाई के सेवन से फलां साइड इफेक्ट्स दिखाई दे तो डॉक्टर से संपर्क करें। जैसे पेन कीलर के सही मात्रा में सेवन से भी कईं लोगों को एसिडिटी और गैस की समस्या हो जाती है। डॉ एसके मुंद्रा का कहना है कि कुछ दवाईयां एक जैसे नाम की होती हैं तो कुछ दवाईयों का उच्चारण एक जैसा होता है, यह गड़बड़ी अक्सर टेलिफोनिक कंसल्टेशन के कारण होती है, कई बार नौसीखिए मेडिकल स्टोर वाले भी दवाई के नाम को ठीक प्रकार से नहीं पढ़ पाते हैं और गलत दवाई दे देते हैं, कई बार लोग डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन नहीं लेकर जाते और वैसे ही बोलकर दवाई ले लेते हैं, इससे भी गड़बड़ हो जाती है। ऐसे किसी और बीमारी के लिए कोई और दवाई खाने में आ जाती है और यह बहुत खतरनाक और घातक हो सकता है।
डॉ एसके मुंद्रा का कहना है कि अगर किसी ने गलत दवाई खा ली है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, इसी प्रकार सर्जरी से जुड़ी सावधानियां हैं, यदि सर्जरी सफल हो गई है तो भी पूरी सावधानी की जरूरत है, ताकि मरीज जल्दी रिकवर होकर सामान्य जीवन व्यतीत कर सके। उनका सुझाव है कि सर्जरी के बाद हल्का खाना खाएं, क्योंकि उल्टी का जोर होने पर टांके टूट सकते हैं, विशेषकर जब पेट की सर्जरी हुई हो। एंटीबॉयोटिक का सेवन भी डॉक्टर के सुझाव के अनुसार नियमित समय पर खाएं, ताकि संक्रमण से बचा जा सके, लेकिन अधिक मात्रा में न खाएं, क्योंकि इससे डायरिया की समस्या हो सकती है। शुगर पेशेंट्स अपनी शुगर नियंत्रण में रखें अगर शुगर अनियंत्रित हो जाए तो टांके नहीं भरेंगे और रिकवरी होने में सामान्य से अधिक समय लग जाएगा।
डॉ एसके मुंद्रा का कहना है कि ऑपरेशन के बाद भारी वजन उठाने से भी बचना चाहिए, अगर ऑपरेशन वाले स्थान पर कुछ असहजता महसूस हो रही हो तो अपने डॉक्टर से इस बारे में खुलकर चर्चा करें। उन्होंने डायग्नोसिस से जुड़ी जरूरी बाते भी साझा की हैं। उनका कहना है कि अगर डायग्नोसिस और टेस्ट सही नहीं है तो गड़बड़ी हो सकती है, कई बार छोटी लैब में जांच करवाने से रिपोर्ट सही नहीं आती, जिससे उपचार भी गलत दिशा में चलता है, जो मरीज के लिए काफी परेशानी और घातक हो सकता है, गलत डायग्नोसिस के कारण जो बीमारी है, उसका इलाज ही नहीं हो पाता है और मरीज उन दवाईयों का सेवन करता है, जिसकी उसे जरुरत ही नहीं है, जो अंतत: उसके लिए टॉक्सिन का कार्य करती हैं। कई बार यह भी होता है कि एक ही डायग्नोसिस के बाद उपचार प्रारंभ कर दिया जाता है, जिसके कारण भी पूरी बीमारी का पता नहीं चल पाता और सही इलाज नहीं हो पाता है।
डॉ एसके मुंद्रा के अनुसार कई बार ऐसा होता है कि जांचे वगैरह सब ठीक है, उपचार भी शुरू हो गया है, लेकिन मरीज ठीक नहीं हो रहा है, ऐसी स्थिति में दूसरे डॉक्टर से करने परामर्श करने में देर न लगाएं, ताकि पता चल सके कि उपचार सही दिशा में चल रहा है या नहीं। मरीज का उपचार सही तरीके से हो, इसलिए पूरी तरह सतर्क रहने की जरूरत है। उनका कहना है कि अगर पहले डॉक्टर और दूसरे डॉक्टर की ओपिनियन लगभग 80 प्रतिशत समान हैं तो 20 प्रतिशत का अंतर चलेगा, लेकिन अगर दोनों के ओपिनियन में अधिक अंतर है तो थर्ड ओपिनियन की आवश्यकता भी पड़ सकती है।

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