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दिल्ली विधानसभा में अखिल भारतीय सम्मेलन

सभापतियों ने हमेशा सदन की गरिमा बढ़ाने का कार्य किया-गृहमंत्री

दिल्ली विधानसभा के पहले स्पीकर विट्ठलभाई पटेल की शताब्दी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Sunday 24 August 2025 07:06:44 PM

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नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज दिल्ली विधानसभा में आयोजित भारतीय विधायी कार्यप्रणाली के भीष्म पितामह कहे जानेवाले स्वतंत्रता सेनानी विट्ठलभाई पटेल के केंद्रीय विधानसभा के पहले निर्वाचित भारतीय स्पीकर बनने के 100 वर्ष होनेपर दो दिवसीय अखिल भारतीय विधानसभा अध्यक्ष सम्मेलन का शुभारंभ किया। गृहमंत्री ने दिल्ली विधानसभा परिसर में विट्ठलभाई पटेल के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी का अवलोकन करके सम्मेलन को संबोधन में कहाकि आजही के दिन देश के विधायी इतिहास की शुरुआत हुई थी, आजही के दिन महान स्वतंत्रता सेनानी विट्ठलभाई पटेल को दिल्ली विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया था, जिससे भारतीयों द्वारा देश के विधायी इतिहास की शुरुआत हुई। सम्मेलन में राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विधान परिषदों के सभापति उपसभापति भी हिस्सा ले रहे हैं। इस अवसर पर दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता, केंद्रीय संसदीयकार्य मंत्री किरेन रिजिजू, दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता एवं विधायक उपस्थित थे।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहाकि दिल्ली विधानसभा में देशके स्वतंत्रता आंदोलन के कई गणमान्य और वरिष्ठ नेताओं ने विधायक के रूपमें अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जैसे-महामना पंडित मदनमोहन मालवीय करीब 20 वर्ष इस सदन के सदस्य रहे, महात्मा गांधी के गुरू गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय और देशबंधु चितरंजन दास जैसी अनेक महान विभूतियों ने अपने प्रभावशाली वक्तव्यों से इस सदन में देश की जनता की स्वतंत्रता की उत्कंठा और आजादी केप्रति उनकी आकांक्षाओं को शब्दों में व्यक्त किया। अमित शाह ने दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता से आग्रह कियाकि वे यहां मौजूद सभी महानुभावों के भाषणों का संकलन देशभर की विधानसभाओं के पुस्तकालयों में उपलब्ध कराएं, ताकि युवा और विधायक जान सकेंकि दिल्ली विधानसभा में स्वतंत्रता की भावना जगाने का कार्य किस प्रकार हुआ था। अमित शाह ने कहाकि दिल्ली विधानसभा ने विट्ठलभाई पटेल के जीवन पर आधारित एक सुंदर प्रदर्शनी लगाई है, इसी प्रकार की प्रदर्शनी सभी विधानसभाओं में लगाई जाए, ताकि न केवल विट्ठलभाई के जीवन और उनके कार्यों, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास के बारेमें भी विधायकों, विधानपरिषद के सदस्यों और युवाओं को जानकारी हो। उन्होंने सदनों की लाइब्रेरी को समृद्ध करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
गृहमंत्री ने कहाकि विट्ठलभाई पटेल ने भारत की विधायी परंपराओं की नींव रखकर आजके लोकतंत्र को मजबूत करने का कार्य किया। उन्होंने कहाकि भारतीय विचारों और लोकतांत्रिक ढंग से देश को चलाने की नींव डालने का कार्य यदि किसी ने किया तो वह निस्संदेह वीर विट्ठलभाई पटेल थे, विट्ठलभाई पटेल ने कई परंपराओं को स्थापित करने का कार्य किया, जो आज हम सभी विशेषकर विधायी कार्यों और सभापति के दायित्वों केलिए ज्योतिर्मय दीपक की तरह मार्गदर्शन कर रही हैं। अमित शाह ने कहाकि विट्ठलभाई पटेल के सामने कईबार परीक्षा की घड़ी आई, परंतु प्रत्येक परीक्षा में वे शतप्रतिशत उत्तीर्ण हुए, उन्होंने न तो विधानसभा अध्यक्ष की गरिमा को कम होने दिया, ना ही सदन को देश की आवाज़ दबाने से रोका और ना ही अंग्रेजों की तत्कालीन मानसिकता को विधानसभा के कार्यों पर हावी होने दिया। अमित शाह ने कहाकि विट्ठलभाई पटेल के कार्यकाल में ही केंद्र सरकार और राज्यों में विधायी विभाग तथा विधानसभा सचिवालय की स्थापना हुई थी। उन्होंने कहाकि उस समय विट्ठलभाई की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण थीकि कोईभी विधानसभा चुनी हुई सरकारों के अधीन काम नहीं कर सकती, विधानसभा को स्वतंत्र होना चाहिए, तभी विधानसभाओं में होने वाली बहस की सार्थकता बनी रहेगी।
अमित शाह ने कहाकि विट्ठलभाई पटेल ने स्वतंत्र विधानसभा विभाग की स्थापना का जो निर्णय लिया था, उसे हमारी संविधान सभा ने भी स्वीकार किया। गृहमंत्री ने कहाकि यह एक महत्वपूर्ण अवसर हैकि हम अपनी-अपनी विधानसभाओं में सभापति पद की गरिमा बढ़ाने का कार्य करें। उन्होंने कहाकि हम अपने-अपने राज्यों की जनता की आवाज़ केलिए एक निष्पक्ष मंच स्थापित करें, पक्ष और विपक्ष निष्पक्ष बहस सुनिश्चित करें और यह सुनिश्चित करेंकि सदन की कार्यवाही विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के नियमों के अनुसार संचालित हो। अमित शाह ने कहाकि विचार मंथन ही लोकतंत्र में जनता की समस्याओं के समाधान का सर्वोत्तम माध्यम है, जब-जब विधानसभाओं ने अपनी गरिमा खोई है, तब-तब लोकतंत्र को बहुत बुरे परिणाम भुगतने पड़े हैं। उन्होंने कहाकि विधानसभाओं की गरिमा यह होनी चाहिएकि वे देशहित में जनता की आवाज़ को अभिव्यक्ति देने का माध्यम बनें। गृहमंत्री ने कहाकि भारत में सभापति को एक संस्था का दर्जा दिया गया है, सदन में सबसे कठिन भूमिका यदि किसी की होती है तो वह सभापति की होती है, क्योंकि वे किसी न किसी दल से चुनकर आते हैं, लेकिन सभापति की शपथ लेतेही एक निष्पक्ष अंपायर की भूमिका में आ जाते हैं।
अमित शाह ने कहाकि हमारे संविधान के 75 वर्ष में देशभर की विधानसभाओं और लोकसभा में सभापतियों ने हमेशा सदन की गरिमा को बढ़ाने का कार्य किया है। उन्होंने कहाकि निष्पक्षता और न्याय ही दो ऐसे स्तंभ हैं, जिनपर अध्यक्ष की गरिमा टिकी हुई है, एक प्रकार से अध्यक्ष को सदन का अभिभावक और सेवक दोनों माना जाता है। उन्होंने कहाकि हमने लगभग 80 वर्ष में लोकतंत्र की नींव को पाताल तक गहरा करने का कार्य किया है, हमने यह सिद्ध किया हैकि भारतीय जनता की रग-रग और स्वभाव में लोकतंत्र बसा हुआ है। उन्होंने कहाकि कई देशों की शुरुआत लोकतांत्रिक रूपमें हुई, लेकिन कुछही दशक में वहां लोकतंत्र की जगह विभिन्न प्रकार के शासन प्रणालियों ने ले ली। गृहमंत्री ने कहाकि आजादी केबाद भारत की सत्ता में कई परिवर्तन हुए और बिना खून की एक बूंद बहे शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण हुए, इसका मूल कारण यह हैकि हमने अपनी विधायी प्रक्रिया को बहुत अच्छे तरीके से संजोकर रखा है। उन्होंने कहाकि हमने अपनी व्यवस्था में समय के अनुकूल परिवर्तन भी किए हैं।
अमित शाह ने कहाकि विधानसभाओं में किसान की हरी-भरी फसल से लेकर युवाओं के स्वप्नों तक, महिला सशक्तिकरण से लेकर समाज के प्रत्येक पिछड़े वर्ग के कल्याण तक, देश की एकता और अखंडता से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा तकके हर विषय पर व्यापक चर्चाएं होती हैं। उन्होंने कहाकि विधानसभा की कार्यवाही विवेक, विचार और विधान पर विशेष बल देना पड़ता है, विवेक से विचार बनता है और विचारों से विधान बनता है, जो विधानसभा का मुख्य कार्य है। उन्होंने कहाकि किसीभी कानून का अंतिम उद्देश्य जनकल्याण होना चाहिए, इसका लक्ष्य अपने प्रदेश और देश को सुचारु रूपसे चलाना है, और इसका अंतिम ध्येय सर्वस्पर्शी व सर्वसमावेशी विकास का मॉडल होना चाहिए। अमित शाह ने कहाकि जब विवेक, विचार और विधान का सभापति द्वारा पूर्ण सम्मान किया जाता है तो विधानसभाएं दलगत हितों से ऊपर उठकर प्रदेश और देश के हितों पर विचार करती हैं और लोकसभा देश के हितों पर विचार करती है। उन्होंने कहाकि दलगत हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित का विचार ही हमें लोकतंत्र की सर्वोच्च गरिमामयी ऊंचाई तक पहुंचाने का एकमात्र मार्ग है।
गृहमंत्री ने कहाकि यदि संसद और विधानसभाओं के गलियारों में सार्थक वाद-विवाद नहीं होगा तो वे केवल निर्जीव भवन बनकर रह जाएंगे। उन्होंने कहाकि इन भवनों में भावनाओं और विचारों का निरूपण करने का कार्य सभापति के नेतृत्व में सभी सदन के सदस्यों का है, तभी यह एक जीवंत इकाई बनती है, जो देशहित और प्रदेशहित में कार्य करती है। अमित शाह ने कहाकि अपने राजनीतिक हितों केलिए संसद और विधानसभाओं को चलने न देना, यह वाद-विवाद नहीं है। उन्होंने कहाकि विरोध संयमित होना चाहिए, प्रतीकात्मक विरोध का अपना स्थान है, लेकिन विरोध के बहाने दिन-प्रतिदिन और पूरे सत्र तक सदन को चलने न देने की जो परंपराएं बन रही हैं, उनपर देश की जनता और चुने हुए प्रतिनिधियों को विचार करना होगा। उन्होंने कहाकि जब सदन से चर्चा समाप्त हो जाती है तो सदन का देश के विकास में योगदान बहुत कम रह जाता है। गृहमंत्री ने कहाकि हमें इसबात का ख्याल रखना चाहिएकि प्रत्येक विधान यानी कानून जनमानस के विश्वास से ही उत्पन्न हो और उसी दिशा में आगे बढ़े। उन्होंने कहाकि सदन लोकतंत्र का इंजन होता है और जब यहां स्वस्थ परंपराएं बनती हैं, देश की नीतियां निर्मित होती हैं, और देशहित में कानून गढ़े जाते हैं तो राष्ट्र की दिशा स्वतः स्पष्ट हो जाती है।

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