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घर आंगन की चहचहाहट गौरैया को बचाएं!

हमारी आधुनिक जीवनशैली के कारण लुप्त हो रही गौरैया

भारत में अनदेखी से गौरैया की कई प्रजातियां लुप्त हुईं

श्याम नारायण रंगा अभिमन्यु

Tuesday 23 April 2019 05:35:24 PM

sparrow

बीकानेर। मानव की अनगिनत गलतियों और दूसरों के साथ उसके स्वार्थपूर्ण बर्ताव के कारण धरती पर वन्यजीवन की हजारों प्रजातियां या तो लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। हमारे देश में उनको बचाने के लिए कानून तो बनाए गए हैं, मगर देखने में आया है कि कहीं कानून के रक्षक तो कहीं हम इनकी उपेक्षाओं एवं निर्मम हत्याओं से बाज नहीं आ रहे हैं और वन्य प्रजातियों के संरक्षण और उनको बचाने के प्रयास कागजों भाषणों, उपदेशों और गोष्ठियों एवं दिवस मनाने तक सिमटकर रह गए हैं। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि हम उनका भी संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं, जो हमारे घरेलू जीवन में साए की तरह साथ-साथ दिखाई देते हैं और जो हमारे लिए साक्षात रूपसे सौभाग्य के भी प्रतीक कहे जाते हैं।
धरती पर ऐसे कई जानवरों और पक्षियों की श्रृंखलाएं हैं, जिनका जीवन या तो हमारे बीच पलता है या कहीं हमारे आश्रित होता है। अफसोस है कि आज हम अपना कर्तव्य भूलते जा रहे हैं, यही कारण है कि वो भी हमसे दूर होते जा रहे हैं, यही हालत रही तो एक दिन हमारे परिवार भी इसी अवस्‍था में चले जाएंगे। गौरैया को कौन नहीं जानता? हमारे घर आंगन की सुबह से शाम की कर्णप्रिय चहचहाहट। हमारे बच्चों की सखी और हमसे लेकर दूसरों का ध्यान खींचने वाली गौरैया को मैं बचपन से देखता आ रहा हूं। मेरी मां गौरेया के लिए आटे की नन्हीं-नन्हीं गोलियां बनाकर रख देती थी और एक-एक कर गौरैया का झुंड मेरे घर-आंगन में इकट्ठा हो जाता था, मगर आज ऐसा नहीं होता है, क्योंकि गौरैया का अस्तित्व संकट में है और इसे बचाने में हम विफल होते जा रहे हैं। इसका कारण हम स्वयं हैं, क्योंकि इसे बचाने के किसी एक के प्रयास की नहीं, बल्कि सभी के प्रयासों की आवश्यकता है। हर पड़ोसी का यह कर्तव्य है।
मनुष्य के सबसे करीब और ममतामयी गौरैया अगर आज अपनी प्रजाति के अस्तित्व के लिए जूझ रही है तो उसके कारण हम ही हैं। मुझे याद है कि मेरी बुआ ने हम भाई-बहनों को कई बार गौरैया का झूंठा पानी यह सोचकर पिलाया है कि हम भी इनकी भांति चहचहाते रहें और आबाद रहें। हम भाई बहनों ने बरसों इनके लिए घौंसले बनाए हैं और जमीन पर गिरे इनके अंडों को बिना हाथ लगाए वापस घौसलों में रखा है। घर आंगन में लगे कांच के आइने पर आकर जब गौरैया अपनी चोंच मारती है, तो ऐसा लगता जैसे दो पक्षी आपस में लड़ रहे हों और मां आकर उस आइने पर कोई पर्दा डाल देती है, ताकि उसकी चोंच को कोई नुकसान न हो। बचपन की हम सबकी मित्र और प्रकृति की सहचरी गौरैया को आज संकट में देखकर बहुत दुख होता है। ध्यान अतीत में चला जाता है कि कभी हमारे घरों में और आसपास बिना डर के फुदकती हुई ये गौरैया पुकारने पर हाथ पर भी आकर बैठ जाया करती थी। कभी घर की अटारी पर और छत की मुंडेर पर या घर आंगन में इसका बेरोक टोक आना जाना होता था। गौरैया की चहचहाना सभी को भाती है, अगर यह सुनाई न दे तो मानों भोर नहीं हुई।
ऐसा माना जाता है कि जिन घरों में गौरैया का आना जाना रहता है, वहां रौनक और बरकत हमेशा रहती है। आज भी गौरैया मेरे घर आती है पर पिछले कई वर्ष से मैने गौर किया है कि इनकी संख्या कम होती जा रही है। जहां कभी मौहल्ला और पूरा घर आंगन इनसे भरा रहता था, वहीं अब कम होती संख्या ने सबका ध्यान खींचा है। ऐसा लग रहा है कि सीमेंट और कंक्रीट के घरों को इन्होंने पसंद नहीं किया। नई जीवनशैली में पक्के घरों की आवश्यकता की अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन कच्चे घरों का महत्व भी कम नहीं है, ये प्राकृतिक वातावरण को अनुकूल बनाए रखते हैं। गौरैया ऐसे घरों के ज्यादा करीब दिखाई देती है। गौरैया आज विलुप्त प्रजाति की सूची में आ गई है और अगर हमने समय रहते इस पर गौर नहीं किया तो परिवार का ये सदस्य हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। तथ्यात्मक आंकड़े बता रहे हैं कि 20 से 80 प्रतिशत तक की संख्या में प्रांतानुसार गौरैया की संख्या में कमी आती जा रही है। प्रकृति से दूरी और आधुनिक घरों की निर्माण शैली के साथ-साथ असुरक्षित जीवन ने गौरैया का संकट बढ़ाया है। मोबाइल टावरों के रेडिएशन ने भी इस प्रजाति पर बुरा असर डाला है, इनके अलावा टावरों के रेडिएशन से और भी पक्षी प्रजातियां संकट में चली गई हैं।
गौरैया के लुप्त हो जाने से हम पर क्या फर्क पड़ेगा इस सवाल का जबाब यह है कि प्रकृति में कोई भी जीव अनावश्यक नहीं है, वह किसी न किसी तरह पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा है। गौरैया पर संकट से तो यह बात माननी ही पड़ेगी कि हमारे आस-पास का पारिस्थितिकी तंत्र ठीक नहीं है। गौरैया खेतों के लिए हानिकारक अल्फा और कटवर्म कीटों को अपने बच्चों का भोजन बनाती है और पारिस्थितिकी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। दुनियाभर में गौरैया की 26 प्रजातियों में से भारत में 5 ही पाई जाती हैं। वर्ष 2010 से पूरे विश्व में 20 मार्च को विश्व गौरैया संरक्षण दिवस भी मनाया जाता है। दिल्ली सरकार ने इसे राज्य पक्षी का दर्जा भी दिया हुआ है, यही प्रयास काफी नहीं है, हमें इसे अपने दिलों और घरों में स्‍थान देना है, प्यार देना है। अपने घरों में इनके लिए घोसलें बनाएं और उनके लिए दाना पानी रखें। प्रजनन के समय इनके अंडों की रखवाली करें। आपका प्रयास इस प्रजाति को संरक्षित करने में मील का पत्थर साबित होगा।

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