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भगवद्गीता और भरतमुनि यूनेस्को की स्मृति

केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री ने ऐतिहासिक उपलब्धि बताया

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

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Thursday 31 July 2025 05:21:53 PM

bhagavad gita and bharat muni inscribed in unesco memory

नई दिल्ली। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने भगवद्गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल किए जाने पर अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र नई दिल्ली में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की। संगोष्ठी का विषय: ‘शाश्वत ग्रंथ एवं सार्वभौमिक शिक्षाएं: यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में भगवद्गीता एवं नाट्यशास्त्र का अंकन’ है। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस अवसर पर कहा हैकि निःसंदेह गीता का ज्ञान 5000 वर्ष से भी अधिक पुराना है और भरतमुनि का नाट्यशास्त्र भी 2500 वर्ष से अधिक पुराना है। उन्होंने कहाकि आज अनेक राष्ट्र जो वैश्विक प्रभाव का दावा करते हैं और सभ्यता के पथप्रदर्शक के रूपमें सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं, शायद उस समय अस्तित्व मेंभी नहीं थे, फिरभी उस प्राचीन युगमें भारत ने प्रदर्शन कलाओं पर सूक्ष्म और विस्तृत ग्रंथ की रचना पहले ही करदी थी। उन्होंने कहाकि उस समय हमने जो सांस्कृतिक शिखर प्राप्त किया, उसकी हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। उन्होंने कहाकि गीता का ज्ञान ‘सर्वभूत’ अर्थात सभी जीवों केलिए है, इसलिए यूनेस्को की मान्यता न केवल उपयुक्त, बल्कि आवश्यक भी है।
संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहाकि औपनिवेशिक मानसिकता के कारण हम लंबे समय से यह मान चुके हैंकि पश्चिम से जो आता है, वह स्वाभाविक रूपसे श्रेष्ठ है, लेकिन अब जब पश्चिम ने इसे स्वीकार कर लिया है तो आशा हैकि औपनिवेशिक विरासत के कारण अपनी जड़ों से कटी हुई युवा पीढ़ी देश की समृद्ध विरासत को पहचानना और उसपर गर्व करेगी। उन्होंने कहाकि गीता 5000 वर्ष से प्रासंगिक है और आनेवाली सहस्राब्दियों तक प्रतिध्‍वनित होती रहेगी। उन्होंने इस ऐतिहासिक उपलब्धि केलिए आईजीएनसीए और भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (बीओआरआई) को बधाई दी। इस मौके पर आईजीएनसीए ट्रस्ट के अध्यक्ष पद्मभूषण रामबहादुर राय, जीआईईओ गीता और गीता ज्ञान संस्थानम कुरुक्षेत्र के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद महाराज त‍था पूर्व संसद सदस्य (राज्यसभा) पद्मविभूषण डॉ सोनल मानसिंह, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी, प्रोफेसर रमेशचंद्र गौड़ प्रभारी यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड नोडल सेंटर और डीन (प्रशासन) आईजीएनसीए उपस्थित थे। उल्लेखनीय हैकि आईजीएनसीए ने इन दो महत्‍वपूर्ण भारतीय ग्रंथ-भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहाकि हम डिजिटल युग में हैं और जब गीता हृदय में निवास करती है तो तकनीक भी सही दिशा तलाश लेती है, गीता हमें पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों की सीख देती है, आजके तेज़ रफ्तार तकनीकी युगमें गीता का संदेश हमें संतुलित निर्णय लेने और सद्भाव के मार्ग पर चलने का ज्ञान प्रदान करता है। डॉ सोनल मानसिंह ने कहाकि भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल होना स्‍वयं यूनेस्को केलिए सम्मान की बात है। दोनों ग्रंथों केबीच समानताएं दर्शाते हुए उन्होंने कहाकि दोनों ही ग्रंथों में कर्म योग पर ज़ोर दिया गया है, जहां एक ओर गीता ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ के माध्यम से 'निष्काम कर्म' की शिक्षा को प्रतिष्‍ठापित करती है, वहीं नाट्यशास्त्र कलाकार को अपनी सर्वोत्तम अभिव्यक्ति की दिशा में प्रयास करने केलिए प्रोत्साहित करता है, जिसका परिणाम दर्शकों के अनुभव में निहित होता है। उन्होंने कहाकि दोनों ग्रंथ कर्म को आध्यात्मिक अनुशासन के रूपमें देखते हैं, जहां कृष्ण का उपदेश और नाट्यशास्त्र की आत्मा योग और समर्पण में एकाकार हो जाती है। रामबहादुर राय ने कहाकि भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल करना केवल रस्‍मी सम्मान मात्र नहीं है, बल्कि दूरगामी सांस्कृतिक यात्रा का आरंभ है, जिसमें विश्व समुदाय को धर्म, लोकतंत्र और आत्मचेतना की ओर ले जानेकी क्षमता है।
डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहाकि यद्यपि गीता को किसी विधिमान्‍यकरण की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यूनेस्को इंटरनेशनल रजिस्टर में इसका समावेश इसके सार्वभौमिक महत्व का प्रतीक है, इसी तरह इस मान्यता से नाट्यशास्त्र की वैश्विक प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है। उन्होंने बतायाकि इन दोनों ग्रंथों केलिए नामांकनपत्र आईजीएनसीए के विद्वानों ने तैयार किए थे। उन्होंने कहाकि यदि आज हम किसी पांडुलिपि को पढ़ पाते हैं तो इसका कारण यह हैकि सदियों पहले किसी समर्पित विद्वान ने उसे अत्यंत सावधानी से संरक्षित किया था, उसी तरह जो कार्य आज किया जा रहा है, उसे दो या तीन सौ साल बाद पढ़ा जाएगा। उन्होंने भारत सरकार के नए मिशन ‘ज्ञान भारतम्’ का भी उल्लेख किया। प्रोफेसर रमेशचंद्र गौड़ ने कहाकि यह भारत की सभ्यतागत ज्ञान प्रणालियों की वैश्विक मंच पर ऐतिहासिक पुष्टि है। गौरतलब हैकि रामबहादुर राय और डॉ सच्चिदानंद जोशी के नेतृत्व में आईजीएनसीए ने भारत की दस्तावेजी विरासत की सुरक्षा केलिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए इन नामांकनों को तैयार और प्रस्तुत करने में एक नोडल एजेंसी के रूपमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संगोष्ठी में ‘फ्रॉम मैन्‍युस्क्रिप्‍ट् टू मेमोरी’ पुस्तक का विमोचन किया गया, जो इन अभिलेखों के अभिलेखीय और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। इसी विषय पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें आगंतुकों को प्राचीन ज्ञान से वैश्विक मान्यता तकका इन ग्रंथों का सफ़र दर्शाती दुर्लभ पांडुलिपियों, ऐतिहासिक अभिलेखों और क्यूरेटोरियल व्याख्याओं की झलक देखने को मिली। यूनेस्को पेरिस में भारत के राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी शर्मा ने एक विशेष वीडियो संदेश साझा किया, जिसमें आईजीएनसीए के योगदान की सराहना की गई और वैश्विक बौद्धिक विरासत के हिस्से के रूपमें इन ग्रंथों के महत्व को दोहराया गया। संगोष्ठी के माध्यम से आईजीएनसीए ने विद्वानों, सांस्कृतिक विचारकों और विरासत विशेषज्ञों को भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र में निहित शाश्वत ज्ञान से जुड़ने और समकालीन वैश्विक विमर्श में जीवंत ग्रंथों के रूपमें उनकी प्रासंगिकता की पुष्टि करने का मंच प्रदान किया। संगोष्ठी के समापन सत्र में समवेत सभागार आईजीएनसीए जनपथ में संस्कृति मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रोफेसर श्रीनिवास वाराखेड़ी विशिष्ट अतिथि थे।

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