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विश्‍वविद्यालय मानवता मूल्‍य भी पढ़ाएं-राष्‍ट्रपति

अनुसंधान पदों के लिए प्रतिभा की कमी एक बड़ी चुनौती

केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मेलन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 05 February 2013 09:10:27 AM

the president, pranab mukherjee and the prime minister, manmohan singh at the conference of vice chancellors

नई दिल्ली। राष्‍ट्रपति भवन में करीब 10 साल के अंतराल के बाद आयोजित केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के सम्मेलन में बोलते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि एक विश्वविद्यालय विद्या का केंद्र है, जिसमें मनुष्‍य के विचारों के अलावा किसी और चीज को स्‍वीकार नहीं किया जाता है। यह संस्‍कृति की संरक्षक और बाहरी दुनिया के साथ संचार का एक माध्‍यम है। उन्‍होंने यह भी कहा कि विश्‍वविद्यालयों को न केवल ज्ञान और कौशल उपलब्‍ध कराना चाहिए बल्कि मानवता और मूल्‍यों का भी समावेश करना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि देश को तकनीकी और आर्थिक दृष्टि से आगे बढ़ाने की ताकत बनने के अलावा, उच्च शिक्षा को युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करना होता है, जो बेचैनी से विभिन्‍न दिशाओं की ओर देख रहे हैं। उच्च शिक्षा के प्रमुख संस्थानों में मुख्‍य शैक्षणिक और अनुसंधान पदों के लिए प्रतिभा की कमी एक बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है। उन्होंने इस बात पर जोर भी दिया कि नियामक वास्तुकला और शासन की गुणवत्ता अन्‍य बड़ी चुनौती है, इसलिए अब नीति निर्धारण पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए, जो स्वायत्तता और अच्छे शासन को प्रोत्‍साहन प्रदान करे। राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि बौद्धिक पूंजी के पलायन को संकाय की सेवा शर्तों के समाधान द्वारा और उन्हें देश में संस्थानों की लंबी अवधि तक सेवा करने के लिए विभिन्‍न प्रोत्‍साहन देकर हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
राष्‍ट्रपति ने कहा कि सामाजिक उद्देश्‍यों से समझौता किए बिना उचित नीति निर्धारित कर निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाई जानी चाहिए। केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों को इस नीति को आगे बढ़ाने और भारत को ज्ञान की अर्थव्‍यवस्‍था बनाने में प्रेरक का काम करना चाहिए। उन्‍होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों को फैकल्‍टी का स्‍तर सुधारने के लिए सक्रिय होना चाहिए और जमीनी स्तर के नवोन्‍मेष की निर्देशिका बनानी चाहिए। राष्‍ट्रपति ने कहा कि देश में उच्‍च शिक्षा के स्‍तर में गिरावट आ रही है। राष्‍ट्रीय ज्ञान आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट में ‘गहरी जड़ पकड़ चुके संकट’ के रूप में इसका उल्‍लेख किया है। हमें इसे पलटना है और इसके लिए सामूहिक सूझबूझ की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने कहा कि लोगों के सशक्तिकरण के ज्ञान तक पहुंच बहुत आवश्‍यक है, हालांकि भारत में उच्‍च शिक्षा प्रणाली दूसरे नम्‍बर पर है लेकिन 2010 में उसमें प्रवेश लेने वालों की संख्‍या 19 प्रतिशत थी, जो विश्‍व के 26 प्रतिशत के औसत से बहुत नीचे है। सुविधाविहीन वर्गों के लोगों को इसमें शामिल करना गंभीर चिंता का विषय है। उदाहरणार्थ अनुसूचित जनजाति जनसंख्‍या में उच्‍च शिक्षा में प्रवेश का औसत राष्‍ट्रीय औसत का आधा है।
राष्‍ट्रपति ने इस बात पर बल दिया कि अभी बहुत कुछ किया जाना है। हमें लोगों को घर के निकट उच्‍च शिक्षा उपलब्‍ध कराने के लिए शिक्षा की गुणवत्‍ता और लोगों को मिलने वाले अवसर पर ध्‍यान देना होगा। सम्‍मेलन को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी संबोधित करते हुए कहा कि 2003 में हुए पिछले सममेलन की तुलना में शिक्षा का परिदृश्‍य बहुत बदला गया है। उन्‍होंने कहा कि उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों में उत्‍कृष्‍टता बढ़ाना एक गंभीर चुनौती है जिस पर सबको मिलकर ध्‍यान देना होगा। उन्‍होंने कहा कि केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों से रोल माडल बनने की उम्‍मीद है और उनके लिए य‍ह एक महत्‍वपूर्ण भूमिका होगा। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ एम एम पल्‍लम राजू ने विश्‍वविद्यालयों को मान्‍यता प्रदान करने को अनिवार्य बनाने पर बल दिया, उन्‍होंने कहा कि शिक्षकों को बढ़ावा देना और फैकल्‍टी की क्षमता में वृद्धि का लक्ष्‍य निर्धारित करके आगे बढ़ाना होगा।सम्‍मेलन में राष्‍ट्रीय नवोन्‍मेष परिषद् के अध्‍यक्ष डॉ सैम पित्रोदा, मानव संसाधन विकास राज्‍य मंत्री डॉ शशि थरूर और जितिन प्रसाद, यूजीसी के अध्‍यक्ष प्रोफेसर वेद प्रकाश और 40 केंद्रीय विश्‍वविद्यालयों के कुलपति मौजूद थे।

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