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ग़रीबी में गिरावट, मगर आर्थिक स्थिति कठिन

राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में मनमोहन सिंह ने मांगा सहयोग

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 27 December 2012 04:16:43 AM

57th National Development Council meeting, in New Delhi

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज नई दिल्ली में 12वीं पंचवर्षीय योजना के मसौदे पर विचार के लिए बुलाई गई राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) की 57वीं बैठक को संबोधित किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि तीव्र, अधिक समावेशी और सतत् वृद्धि संबंधी योजना के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बैठक में जो मसौदा रखा गया है, वह देश के सामने मौजूद कई चुनौतियों का विस्तृत आंकलन प्रस्तुत करता है। गौर करने वाली बात है कि हम उस अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा कर रहे हैं, जहां कई क्षेत्रों में मजबूती परिलक्षित हुई है। उन्होंने 11वीं पंचवर्षीय योजना में औसतन 7.9 प्रतिशत की वृद्धि दर प्राप्त करने की बात कही है, इस सत्य के बावजूद कि इस दौरान दो वैश्विक संकट आए। यह वृद्धि पिछली किसी भी अवधि के दौरान काफी समावेशी रही है।
प्रधानमंत्री ने दावा किया कि वर्ष 2004-05 के बाद आधिकारिक ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले जनसंख्या के प्रतिशत में प्रतिवर्ष दो प्रतिशत की गिरावट आई है, जो कि 1993-94 और 2004-05 के बीच आई गिरावट दर से ढाई गुना तेज है। यदि ग़रीबी रेखा संशोधित होती है तब भी उसमें गिरावट दर अधिक रहेगी। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास दर दसवीं पंचवर्षीय योजना के 2.4 प्रतिशत से बढ़कर 3.3 प्रतिशत हो गई। कृषि में वास्तविक मजदूरी हाल के वर्षों में प्रतिवर्ष बढ़कर 6.8 प्रतिशत हो गई है, जो कि 2004-05 के पहले की अवधि के दौरान प्रति वर्ष केवल 1.1 प्रतिशत थी। कृषि का बेहतर प्रदर्शन महत्वपूर्ण कारण रहा जिससे ग़रीबी में तेजी से गिरावट आई। वे राज्य जिनकी पिछली अवधि के दौरान वृद्धि दर धीमी रहा करती थी, उन्होंने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।
उन्होंने कहा कि पांच सबसे ग़रीब राज्यों की औसत विकास दर पहली बार किसी भी पंचवर्षीय योजना के राष्ट्रीय औसत से अधिक रही। हम उस अवस्था की ओर बढ़ रहे हैं जब ‘बीआईएमएआरयू राज्य’ जैसे शब्द इतिहास बन जाएंगे, जबकि ऐसे विकास हमारी आर्थिक क्षमता के संकेत हैं, यह भी सत्य है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति कठिन है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में चल रहे संकट के कारण हर जगह विकास में कमी आई है। यूरोजोन और जापान में इसके शून्य तक होने संभावना समझी जाती है और उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्था में भी गिरावट आई है। वैश्विक आर्थिक मंदी जिसमें कुछ घरेलू बाधाएं भी जुड़ी हैं, उससे पता चलता है कि विकास में भी गिरावट आई है। हमारी पहली प्राथमिकता इस मंदी से उबरना होनी चाहिए। हम वैश्विक अर्थव्यवस्था को बदल नहीं सकते हैं, लेकिन हम घरेलू बाधाओं के लिए कुछ कर सकते हैं, जिसका मंदी में योगदान रहा है।
मनमोहन ‌सिंह
ने कहा कि क्रियान्‍वयन में समस्‍याएं ऐसी समस्‍याएं हैं, जिन्‍हें जल्‍द हल करने की जरूरत है और उनके कारण बड़ी परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं। इनमें विशेषकर बिजली परियोजनाएं शामिल हैं, जो स्‍वीकृति न मिल पाने और ईंधन आपूर्ति समझौता में विलंब के कारण लम्बित हैं। हमने इस समस्‍या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें मेरी अध्‍यक्षता में निवेश पर नई मंत्रिमंडलीय समिति की स्‍थापना शामिल है। उनका विश्‍वास है कि इन कदमों का सराकात्‍मक प्रभाव पड़ेगा, लेकिन उनका पूरा प्रभाव पड़ने में वक्‍त लगेगा। वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में राज्‍यों के ताजा आंकलन को ध्‍यान में रखते हुए उन्होंने यह संकेत दिया है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए समग्र वृद्धि दर आठ प्रतिशत रखी जा रही है। यह उचित बदलाव है, लेकिन मैं इस पर बल दे रहा हूं कि प्रथम वर्ष के दौरान छह प्रतिशत से कम विकास दर के बाद औसतन आठ प्रतिशत की दर प्राप्‍त करना अभी भी महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य है।
उन्होंने कहा कि जैसा कि योजना दस्‍तावेज में स्‍पष्‍ट है कि उच्‍च विकास दर का परिदृश्‍य निश्चित रूप से तब लागू नहीं होगा, जब हम ‘पहले की तरह व्यापार’ नीति को अपनाते हैं। योजना में कई ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है, जहां नई पहल और नीतियों में नवीनता लाने की आवश्यकता है। इनमें कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां प्रमुख जिम्मेदारी राज्यों की है। इन सुझावों पर मैं मुख्यमंत्रियों के विचारों को जानना चाहूंगा। उन्होंने कहा कि विकास दर को बढ़ाने की आवश्यकता है और इसमें हमें विकास तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। हमारा वास्तविक उद्देश्य आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार लाना होना चाहिए और इसलिए यही कारण है कि हमारा इस बात पर जोर है कि विकास समावेशी होना चाहिए। अधिक समावेशी विकास को प्राप्त करने के लिए तीव्र वृद्धि की आवश्यकता क्यों है, इसके दो कारण हैं। पहला, हमारे कई समावेशी कार्यक्रमों को वित्त उपलब्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि राजस्व बढ़ाया जाए। यदि विकास दर में कमी आती है तो समावेशी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए न तो राज्यों और न ही केंद्र के पास पर्याप्त संसाधन होंगे या तो हमें इन कार्यक्रमों को कम करने के लिए बाध्य होना होगा और या तो हमें उच्च वित्तीय घाटे को सहन करना होगा जिसका कोई अन्य नकारात्मक प्रभाव होगा।
उन्होंने कहा कि तीव्र विकास सीधा समावेशिता में भी योगदान करता है, क्योंकि इससे आय और रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। वैसी नीतियां जिनका उद्देश्य कृषि और मध्यम एवं लघु उद्योगों के विकास को बढ़ावा देना है और जो शिक्षा और कौशल विकास के उपायों से भी जुड़े हैं उनके कारण विकास प्रक्रिया मजबूत होगी और वह अधिक समावेशी होगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना की रणनीति में वैसे तत्व शामिल किए गए हैं जो यह सुनिश्चित करेंगे कि विकास संभवतः समावेशी हो। इस रणनीति पर मैं आपके टिप्पणियों का स्वागत करता हूं। हमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों जैसे सामाजिक आर्थिक समूह के बीच के अंतर की ओर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। यह समूह प्रमुख सामाजिक, आर्थिक सूचकांक में बाकी जनसंख्या से पीछे है। भाग्यवश, यह अंतर घट रहा है लेकिन जिस गति से यह हो रहा है वह संतोषजनक नहीं है और निश्चित रूप से हमारी आशाओं पर नहीं बैठता है। हमें इस बात पर विचार करना होगा कि इसे कैसे बेहतर किया जाए।
उन्होंने कहा कि लैंगिक असमानता एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है, जहां विशेष ध्यान देने की जरूरत है। महिलाएं और लड़कियां देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं और हमारा समाज इस आधी जनसंख्या के लिए अभी ईमानदार नहीं है। उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति सुधर रही है, लेकिन असमानता बरकरार है। सार्वजनिक स्थलों में महिलाओं निकलना सामाजिक आजादी का एक आवश्यक हिस्सा है लेकिन उनकी सलामती और सुरक्षा पर भी खतरे बढ़ रहे हैं। दिल्ली में कुछ दिन पहले एक युवती पर हुआ क्रूर हमला और अन्य जगहों पर हुई ऐसी निंदनीय घटनाओं पर गौर करना चाहिए, जो हमारे देश के सभी राज्यों और अन्य क्षेत्रों में घटती हैं, जहां केंद्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। विशेषकर, इस मामले में आरोपियों को पकड़ा जा चुका है और कानून उनसे तेजी से निपटेगा। सरकार ने मौजूदा कानून की समीक्षा और बर्बर यौन अत्याचार के मामले में सजा के स्तर की जांच करने का निर्णय लिया है। इस उद्देश्य के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस वर्मा की अध्यक्षता में प्रख्यात न्यायविदों की समिति का गठन किया गया है। महिलाओं की सलामती और सुरक्षा सरकार के लिए सबसे अधिक चिंता का विषय है। आधी आबादी की सक्रिय भागीदारी के बिना विकास का कोई मतलब नहीं है और यह भागीदारी सरलता से तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि उनकी सलामती और सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती।
उन्होंने कहा कि कृषि एक गंभीर चिंता का क्षेत्र है। हालांकि जीडीपी में कृषि का योगदान घट कर 15 प्रतिशत तक आ गया है और कृषि लगभग आधी जनसंख्या का प्रमुख आय स्रोत है, गैर कृषिगत क्षेत्रों में लाभकारी रोजगार के अवसर प्रदान कर लोगों को कृषि से बाहर ले जाने की आवश्यकता है। यह तभी होगा जब कुछ लोग कृषि पर निर्भर होंगे जिससे कृषि में प्रतिव्यक्ति आय में जिससे कृषि में भी अच्छी वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप कृषि आकर्षक लाभ का पेशा बन सकेगी। विनिर्माण में भी वृद्धि दहाई के आंकड़ों के स्तर में होनी चाहिए पर इसमें अभी समय है। छोटे और मझौले उद्योग खासतौर पर महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे अधिक रोजगार का सृजन करते हैं। केंद्र और राज्यों को एक ऐसी प्रणाली तैयार करने को वरीयता देनी चाहिए जिसमें उद्योग वृद्धि कर सके और पनप सके। अर्थव्यवस्था की तीव्र वृद्धि के लिए बेहतर अवसंरचना सर्वोतम गारंटी है। बुनियादी ढांचे का विकास काफी हद तक पूंजी पर निर्भर है और केन्द्र तथा राज्य दोनों के पास संसाधनों की उपलब्धता का अभाव है। सड़कों, रेल, हवाई अड्डों, जलमार्गों और बिजली ट्रांसमिशन प्रणाली को समर्थन देने और हमारे देश के पूर्वोत्तर भाग में आर्थिक गतिविधि में तेजी के लिए हमारी योजना निवेश की गति बढ़ाने की है। केंद्र और राज्य दोनों संसाधनों की कमी का सामना कर रहे हैं। आशा है कि वस्तु और सेवा कर को जल्द से जल्द लागू करने में हमें राज्यों का सहयोग मिलेगा।
उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यक्रमों के प्रति सामान्य शिकायत यह रहती हैं कि यह भ्रष्टाचार, देरी और कमजोर लक्ष्यों से जूझते हैं। केन्द्र सरकार इससे निपटने के लिए बड़ा कदम उठा रही है। इसके तहत लाभार्थी उन्मुख योजनाओं को आधार के इस्तेमाल से प्रत्यक्ष अंतरण प्रणाली के ज़रिए प्रयोग किया जाएगा। जनवरी 2013 के दौरान यह चुनिंदा जिलों में चयनित योजनाओं के साथ शुरु हो जाएगी। कुछ समय के भीतर विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति, बुजुर्गों के लिए पेंशन, स्वास्थ्य लाभ, मनरेगा पारिश्रमिक और साथ ही अन्य प्रकार के लाभ आधार के ज़रिए बैंक खाते में प्रत्यक्ष अंतरण के द्वारा पहुंचाए जाएंगे। यह एक अभिनव पहल है जिसे समूचे वैश्विक विकसित समुदाय में महसूस किया जाएगा। इसे सफल बनाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को मिलकर काम करना होगा। बहुत सी राज्य सरकारों ने कहा है कि केंद्र से प्रायोजित योजनाएं अपने कड़े दिशानिर्देशों के कारण कई बार प्रभावी नहीं होतीं। इस पर योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने पहले ही कहा है कि योजनाओं में अधिक लचीलेपन के प्रस्तावों के साथ ही बीके चतुर्वेदी समिति के सिफारिशों के अनुरुप केंद्र से प्रायोजित योजनाओं को ढालने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
उन्होंने अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बन सकने वाले दो क्षेत्रों ऊर्जा और जल का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे घरेलू ऊर्जा संसाधन हमारे देश की बढ़ती ज़रुरतों को पूरा कर पाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। हम तेल, प्राकृतिक गैस और हाल के वर्षों में कोयले का भी आयात करते हैं, अगर हम अपनी ऊर्जा आयात ज़रुरतों को उपयुक्त सीमाओं में रखना चाहते हैं तो हमें ऊर्जा दक्षता पर बल देना होगा और हमें ऊर्जा के घरेलू उत्पादन में वृद्धि करनी होगी। दोनों ही लक्ष्यों के लिए उर्जा की कीमत का निर्धारण करना आवश्यक है, अगर घरेलू उर्जा की कीमतें बहुत कम हैं तो उर्जा दक्षता को बढ़ावा देने का कोई लाभ नहीं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे देश में ऊर्जा की कीमतें काफी कम हैं। हमारा कोयला, पेट्रोलियम उत्पाद और प्राकृतिक गैस सभी कुछ अंतरराष्ट्रीय कीमतों से काफी कम है। इसका यह भी तात्पर्य है कि खास तौर पर कुछ उपभोक्ताओं के लिए बिजली की कीमत प्रभावी रुप से काफी कम है। चरणबद्ध तरीके से इसमें सुधार किया जाना आवश्यक है। इस बात पर उर्जा विशेषज्ञों की राय है कि यदि हम ऊर्जा कीमतों को वैश्विक कीमतों के अनुरूप लाने के लिए तैयार नहीं हैं तो हम तीव्र, समावेशी और सतत विकास की आशा नहीं कर सकते। केंद्र सरकार और राज्यों को एक साथ मिलकर ऊर्जा सब्सिडी की सीमा में कमी करनी चाहिए। इसी प्रकार हमारे जल संसाधनों का प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है। हम तेजी से उस स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं, जहां देश में पानी की कुल मांग को उपलब्ध आपूर्ति से पूरा नहीं किया जा सकता। उर्जा की तरह ही हमें पानी का इस्तेमाल सूझ-बूझ के साथ करना होगा और सतत तरीके से इसकी आपूर्ति का दायरा भी बढ़ाना होगा। योजना दस्तावेज में इस समस्या से निपटने के लिए व्यापक नीति बनाई गई है।

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