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उदार वीजा समझौता कितना व्यवहारिक, कितना सच!

अवधेश कुमार

अवधेश कुमार

अवधेश कुमारकृष्णा और हिना-krishna and hina

नई दिल्‍ली। पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा का स्वागत करते हुए जब यह कहा कि हमें इतिहास का बंधक नहीं बनना चाहिए तो इसका अर्थ पाकिस्तान के लिए कहीं ज्यादा था। पाकिस्तान भारत के लिए ऐसा घाव है जो न भरता है, न सूखता है, बल्कि जब भी उसके भरने और सूखने की थोड़ी उम्मीद जगती है, वह कोई ऐसा घातक प्रहार कर जाता है कि वह पुनः रिसने लगता है। इतिहास को हम न पलट सकते हैं, न इसे झुंठला सकते हैं। हां, अगर दूरदर्शिता हो तो इतिहास की गलतियों से सबक लेकर ऐसे कदम जरुर उठाए जा सकते हैं, जिनसे उसकी टीसें धीरे-धीरे खत्म हों और घाव ऐसा सूखे कि संबंधों की सड़क पर हम आसानी से दौड़ लगा सकें। एसएम कृष्णा के पाकिस्तान प्रवास के दौरान वीजा सहित सामाजिक-सांस्कृतिक आदान-प्रदान संबंधी जो समझौते हुए उनसे क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है? इसका जवाब भी हिना खार के वक्तव्य से ही मिल जाता है। उन्होंने कहा कि वीजा नियमों में ढील देना बेहतर रिश्तों की तरफ पहला कदम है। रिश्ते बेहतर करने के लिए मानसिकता बदलने की जरुरत है।
वास्तव में यह तो माना जा सकता है कि 38 साल बाद बदले वीजा नियम से आम लोगों के बीच ही नहीं, व्यापारिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक आदान-प्रदान और कार्य-व्यवहार के साथ सामान्य सरकारी तथा कूटनीतिक अंतःक्रिया के सतत विस्तार की चाहत साकार होने की संभावना बनी है। कृष्णा एवं पाकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय के प्रभारी रहमान मलिक हस्ताक्षरित वीजा समझौते, हालांकि अभी भी अनेक शर्तों और बंधनों में बंधे हैं, फिर भी यह कहना होगा कि सीमा पार यात्रा करने वालों को इससे काफी राहत मिली है। पहले की तरह मुश्किलों से उन्हें कुछ हद तक मुक्ति मिल गई है। मसलन, सिंगल एंट्री वीजा की समय सीमा तीन महीने से बढ़कार छः महीने तथा तीन शहरों की सीमा को 5 शहरों तक विस्तारित करने, इसकी दूसरी श्रेणी में समय और स्थान दोनों की बढ़ोत्तरी, वरिष्ठ नागरिकों को अटारी-बाघा सीमा पर वीजा ऑन अराइवल की सुविधा, धार्मिक यात्रा, समूह पर्यटन यात्रा के लिए वीजा की आसान श्रेणी तथा 15 दिन तक ठहरने की इजाजत आदि का प्रभाव समझना मुश्किल नहीं है।
शादी-विवाह से लेकर विशेष धार्मिक उत्सवों आदि में जाना पहले से ज्यादा आसान हो गया है। इसी तरह व्यापार के लिए वीजा की अलग श्रेणी बनाकर पांच लाख तक की न्यूनतम आय सीमा वालों के लिए एक साल तक भारत के पांच शहरों में चार बार तथा पचास लाख से ज्यादा आय वालों के लिए दस शहरों में जाने की इजाजत तथा पुलिस को रिपोर्ट करने से छूट का व्यापारी वर्ग यकीनन स्वागत करेगा। बड़ी बात है कि अब वीजा मिलने की समय सीमा अधिकतम 30 से 45 दिनों की निर्धारित कर दी गई है। पारगमन वीजा अब 72 घंटे की जगह 36 घंटे में ही मिल जाएगा। किंतु भारत पाक रिश्तों पर गहरी, संतुलित और व्यवहारिक नजर रखने वाले 1974 की तुलना में काफी उदार और विस्तृत वीजा समझौते के बावजूद बहुत उत्साहित नहीं हो सकते। सच कहें तो यह राजग सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी की आरंभ की गई नीतियों का विस्तार है। जिस तरह वाजपेयी ने लाहौर बस यात्रा करके दोनों ओर की जनता के संपर्क-संबंधों पर जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश की थी, यदि वे उसी सोच के अनुरुप आगे बढ़ते तो हो सकता था, यह समझौता काफी पूर्व हो जाता और आज व्यापारिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक आदान-प्रदान का चेहरा कुछ और होता। ऐसा नहीं हुआ तो इसमें भारत का दोष है तो सिर्फ इतना कि इसकी भावनाएं हमेश सीमा पार की साजिशों से लगातार आहत होतीं रही हैं।
विभाजन के साथ भारत को दुश्मन मानकर इसे लगातार लहूलुहान कर विघटित करने की घृणित मानसिकता ने पाकिस्तान को एक स्वस्थ राष्ट्र-राज्य में रुपांतरित ही नहीं होने दिया। यह कह सकते हैं कि वर्तमान सरकार की सोच से भारत में हिंसक साजिशें रचने की झलक नहीं है, पर गैर सरकारी स्तर पर उसका इतना बड़ा ढांचा विकसित हो चुका है, जिसे नेस्तनाबूद करना वहां की सरकार के लिए कठिन है। और सेना तथा नागरिक सरकार में ऐसे लोग आज भी मौजूद हैं जो भारत को अभी भी दुश्मन की निगाह से देखते हुए इसका नामोनिशान मिटाने की मानसिकता से ग्रस्त हैं। ऐसे तत्वों के अंत या इन पर आम स्वस्थ नागरिक समाज के वर्चस्व होने तक वैसे भी भारत पाक रिश्तों में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद बेमानी होगी।
भारत इतिहास का बंधक नहीं है और न उसकी मानसिकता अनावश्यक रुप से पाकिस्तान को दुश्मन मानकर उसे नष्ट करने की है, इसलिए मानसिकता बदलने की बहुत ज्यादा आवश्यकता भारत को नहीं है। हाफिज सईद जैसे तत्वों की पाकिस्तान में लोकप्रियता तथा कृष्णा के दौरे के दौरान रैली में उसका यह बयान कि भारत पहले हमसे बात करे, पाकिस्तान से बाद में, सामान्य स्थिति का परिचायक नहीं है। कृष्णा ने कहा कि पाक ने मुंबई हमले के दोषियों को सजा देने का विश्वास दिलाया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तेहरान में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से बातचीत में अपने न्यायिक आयोग को फिर भारत भेजने का आग्रह इस वचन के साथ किया कि उसे मुंबई हमलों के गवाहों से जिरह करने की अनुमति दी जाएगी।
दरअसल, पाकिस्तान अदालतों का हवाला देकर यह बताता है कि उसमें उसका कोई दखल नहीं है। उसका आरोप रहा है कि न्यायिक आयोग को जिरह करने की छूट न देने से अदालत में साबित करने योग्य साक्ष्य उसे नहीं मिल सका। देखना होगा न्यायिक आयोग की आगामी यात्रा जो अब निश्चित लग रही है, कि पाकिस्तान वापसी के बाद मुंबई हमले संबंधी कानूनी कार्रवाई वहां क्या मोड़ लेती है। भारत के लोगों के अंदर पाकिस्तान के इरादों के प्रति तब तक विश्वास कायम होने की शुरुआत नहीं हो सकती, जब तक उसे यह भान न हो जाए कि आतंकवादी हमलों के दोषियों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई हुई।
अगर आम विश्वास की ही शुरुआत नहीं होगी तो फिर वीजा नियमों में ढील का परिणाम कतई अपेक्षानुरुप नहीं हो सकता। हालांकि हम यहां न भूलें कि भारत पाक रिश्तों में वहां के आतंकवादी संगठनों के साथ अमेरिका, अफगानिस्तान तथा स्वयं दोनों देशों की राजनीतिक परिस्थितियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आतंकवादी संगठनों पर नकेल कसना पाकिस्तान के लिए टेढ़ी खीर बना हुआ है। अफगानिस्तान में नाटो सैनिकों पर बढ़ते हमले इस बात के संकेत हैं कि अमेरिकी नेतृत्व वाली सैनिकों की प्रत्यक्ष युद्ध से हटने के बाद वहां स्थिति भयावह हो सकती है, जिसका असर पाकिस्तान और फिर हमारे संबंधों पर पड़ेगा। ध्यान रखिए कि कृष्णा, रहमान के वीजा समझौते पर हस्ताक्षर के दिन ही अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने हक्कानी समूह को आतंकवादी मानने के प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर दिए।
यह उम्मीद की एक किरण बनी है। अमेरिकी कांग्रेस ने 10 अगस्त को ही विधेयक पारित कर दिया था। इसी समूह ने जुलाई 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमला किया था। अमेरिकी खुफिया विभाग ने भी कहा था कि इसमें आईएसआई का हाथ है। हक्कानी समूह एवं आईएसआई के बीच सांठगांठ के संकेत समय-समय पर मिलते रहे हैं। उसके खिलाफ कार्रवाई में पाकिस्तान की हिचक साफ दिखती रही है। अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठन घोषित किए जाने के बाद वजीरिस्तान में उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होती है और उसकी कमर टूटती है तो यह भारत के भी हित में होगा। किंतु यह न भूलें कि भारत एवं पाकिस्तान दोनों की सरकारें इस समय वैसी स्थिति में नहीं हैं कि अन्य विवादित मुद्दों पर भेदनकारी कदम उठा सकें। पाकिस्तान की सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से डांवाडोल हो रही हैं तो भारत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण ऐसी स्थिति में नहीं है कि वह विवादास्पद मामले में जोखिम उठा सके।
हिना खार ने कहा है कि हमें सभी विवादित मुद्दों पर बातचीत करनी होगी तथा कश्मीर एवं सियाचिन का मामला भी सुलझाना आवश्यक है। पाकिस्तान की नीति के अनुरुप ये बातें ठीक है और अगर आतंकवादी हमले जैसी वारदात नहीं हुई तो बातचीत होगी। किंतु क्या इन दो प्रमुख मामले का सुलझना इस समय संभव लगता है? अगर रिश्ते बेहतर होने की शर्त यह है, इतिहास के बंधक न होने का अर्थ कश्मीर और सियाचित का पाकिस्तानी सोच के अनुसार सुलझाया जाना है तो फिर यह संभव नहीं। वीजा उदारीकरण इसमें भूमिका निभा सकता है तो इतना कि हर क्षेत्र के नागरिकों के बीच संपर्क, संवाद, कार्य व्यवहार आदि से गलतफहमियां कुछ दूर होंगी, जिनका भविष्य में विवादित मुद्दों पर भी शायद असर हो।

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