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नरेंद्र मोदी 'धर्म चक्रवर्ती' उपाधि से नवाजे गए

आचार्य विद्यानंद मुनिराज के शताब्दी समारोह का भव्य उद्घाटन

प्रधानमंत्री ने विशेष स्मारक सिक्के और डाक टिकट जारी किए

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Saturday 28 June 2025 05:21:04 PM

narendra modi was awarded the title of 'dharma chakravarti'

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विज्ञान भवन दिल्ली में आचार्य श्रीश्री 108 विद्यानंद मुनिराज के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए कहाकि भारत आध्यात्मिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण अवसर देख रहा है, पूज्य आचार्य की अमर प्रेरणा से ओतप्रोत यह आयोजन एक असाधारण और उत्साहवर्धक वातावरण का निर्माण कर रहा है। प्रधानमंत्री ने उल्लेख कियाकि आज 28 जून 1987 को आचार्य श्रीश्री 108 विद्यानंद मुनिराज को औपचारिक रूपसे ‘आचार्य’ की उपाधि प्रदान की गई थी, यह केवल एक उपाधि नहीं है, बल्कि एक पवित्र धारा की शुरुआत है, जिसने जैन परंपरा को विचार, अनुशासन और करुणा की भावना से जोड़ा है। प्रधानमंत्री ने कहाकि जब देश आचार्य विद्यानंद मुनिराज की शताब्दी मना रहा है तो यह तिथि उस ऐतिहासिक क्षण की याद दिलाती है। उन्होंने आचार्य विद्यानंद मुनिराज को श्रद्धासुमन अर्पित किए। प्रधानमंत्री ने कहाकि आचार्य विद्यानंद मुनिराज का शताब्दी समारोह कोई साधारण आयोजन नहीं है, यह एक युग की याद दिलाता है और एक महान तपस्वी के जीवन का स्मरण कराता है। उन्होंने इस ऐतिहासिक अवसर को मनाने केलिए विशेष स्मारक सिक्के और डाक टिकट जारी किए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आचार्य प्रज्ञा सागर का विशेष रूपसे आभार व्यक्त किया और कहाकि उनके मार्गदर्शन में लाखों अनुयायी पूज्य गुरु आचार्य विद्यानंद मुनिराज के बताए मार्ग पर चल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि इस अवसर पर उन्हें 'धर्म चक्रवर्ती' की उपाधि प्रदान की गई है और उन्होंने विनम्रतापूर्वक व्यक्त कियाकि भारतीय परंपरा संतों से जो कुछ भी प्राप्त होता है, उसे आशीर्वाद के रूपमें स्वीकार करना सिखाती है, इसलिए उन्होंने इस उपाधि को स्वीकार किया और इसे भारत माता के चरणों में समर्पित किया। प्रधानमंत्री ने उस दिव्य आत्मा जिनके शब्द जीवनभर मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूपमें काम करते रहे हैं केसाथ अपने गहन भावनात्मक जुड़ाव पर विचार करते हुए कहाकि ऐसे पूजनीय व्यक्तित्व के बारेमें बात करना स्वाभाविक रूपसे गहरी भावनाओं को उद्वेलित करता है। उन्होंने कहाकि आचार्य विद्यानंद मुनिराज के व्यक्तित्व को शब्दों में व्यक्त करना कोई आसान काम नहीं है। उन्होंने कहाकि आचार्य विद्यानंद मुनिराज का जन्म 22 अप्रैल 1925 को कर्नाटक में हुआ था और उन्हें आध्यात्मिक नाम 'विद्यानंद' दिया गया था, उनका जीवन ज्ञान और आनंद का अनूठा संगम था, उनकी वाणी में गहन ज्ञान था, फिरभी उनके शब्द इतने सरल होते थेकि कोईभी उन्हें समझ सकता था। प्रधानमंत्री ने आचार्य विद्यानंद मुनिराज को ‘युग दृष्टा’ के रूपमें व्यक्त किया और कहाकि उन्होंने 150 से अधिक ग्रंथों की रचना की, नंगे पांव चलकर हजारों किलोमीटर की यात्राएं कीं और अपने अथक प्रयासों से लाखों युवाओं को शास्त्र और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ा। उन्होंने कहाकि यह उनका सौभाग्य हैकि उन्हें आचार्य विद्यानंद मुनिराज की आध्यात्मिक आभा को व्यक्तिगत रूपसे अनुभव करने तथा समय-समय पर उनका मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिला।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारत दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यता है, हजारों वर्ष से इसके विचार, दर्शन और विश्वदृष्टि अमर हैं। उन्होंने कहाकि यह अमर दृष्टि ऋषियों, मुनियों, संतों और आचार्यों के ज्ञान में निहित है और आचार्य विद्यानंद मुनिराज इस कालातीत परंपरा के आधुनिक प्रकाश स्तंभ के रूपमें मौजूद थे। प्रधानमंत्री ने कहाकि आचार्य विद्यानंद मुनिराज कई विषयों के गहन विशेषज्ञ थे, उनकी आध्यात्मिक गहनता, व्यापक ज्ञान तथा कन्नड़, मराठी, संस्कृत और प्राकृत जैसी भाषाओं पर अधिकार की प्रशंसा की। साहित्य और धर्म में उनके योगदान, शास्त्रीय संगीत के प्रति उनका समर्पण और राष्ट्रीय सेवा केप्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि जीवन का कोई ऐसा आयाम नहीं था, जिसमें आचार्य विद्यानंद मुनिराज ने अनुकरणीय मानक स्थापित न किए हों। उन्होंने कहाकि आचार्य विद्यानंद, न केवल एक महान संगीतकार थे, बल्कि एक प्रखर देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी और पूर्ण वैराग्य के प्रतीक के रूपमें एक दृढ दिगंबर मुनि थे। उन्होंने उन्हें ज्ञान का भंडार और आध्यात्मिक आनंद का स्रोत बताया। उन्होंने कहाकि सुरेंद्र उपाध्याय से आचार्य विद्यानंद मुनिराज तककी यात्रा एक साधारण व्यक्ति से एक पारलौकिक आत्मा के परिवर्तन को प्रतिबिंबित करती है। उन्होंने इसे एक प्रेरणा बतायाकि भविष्य वर्तमान जीवन की सीमाओं से बंधा नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की दिशा, उद्देश्य और संकल्प से आकार लेता है।
आचार्य विद्यानंद मुनिराज ने अपने जीवन को केवल आध्यात्मिक साधना तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने अपने जीवन को सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण के माध्यम में बदल दिया, प्रधानमंत्री ने रेखांकित कियाकि प्राकृत भवन और कई शोध संस्थानों की स्थापना के माध्यम से उन्होंने ज्ञान को नई पीढ़ियों तक पहुंचाया। प्रधानमंत्री ने कहाकि आचार्य ने जैन इतिहास को भी सही पहचान दी, 'जैन दर्शन' और 'अनेकांतवाद' जैसे मौलिक ग्रंथों की रचना करके उन्होंने दार्शनिक विचारों को गहरायी दी तथा समावेश और समझ की व्यापकता को बढ़ावा दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि मंदिर जीर्णोद्धार से लेकर वंचित बच्चों की शिक्षा और व्यापक सामाजिक कल्याण तक आचार्य विद्यानंद मुनिराज के हर प्रयास में आत्म साक्षात्कार और सार्वजनिक कल्याण का समन्वय परिलक्षित होता है। नरेंद्र मोदी ने याद कियाकि आचार्य विद्यानंद महाराज ने एकबार कहा थाकि जीवन तभी सच्चा आध्यात्मिक बनता है, जब यह नि:स्वार्थ सेवा का माध्यम बन जाता है। उन्होंने कहाकि यह विचार जैन दर्शन के सार में गहराई से निहित है और आंतरिक रूपसे भारत की भावना से जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहाकि भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जो सेवा से परिभाषित है और मानवता से निर्देशित है, जब दुनिया ने सदियों से हिंसा को हिंसा से खत्म करने की कोशिश की तो भारत ने दुनिया को अहिंसा की शक्ति से परिचित कराया। उन्होंने कहाकि भारतीय लोकाचार ने हमेशा मानवसेवा की भावना को सबसे ऊपर रखा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारत की सेवा भावना किसी शर्त के अधीन नहीं है, स्वार्थ से परे है और नि:स्वार्थ भावना से प्रेरित है, यह सिद्धांत देश के शासन का मार्गदर्शन करता है। उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन, आयुष्मान भारत योजना और वंचितों केलिए मुफ्त खाद्यान्न वितरण जैसी पहलों का हवाला देते हुए कहाकि इनका उद्देश्य समाज के अंतिम पायदान पर रहने वाले लोगों का उत्थान करना है। उन्होंने कहाकि सरकार प्रतिबद्ध हैकि कोईभी पीछे न छूट जाए और प्रगति वास्तव में समावेशी हो। प्रधानमंत्री ने पुष्टि कीकि यह संकल्प आचार्य विद्यानंद मुनिराज के आदर्शों से प्रेरित है। उन्होंने कहाकि तीर्थंकरों, साधुओं और आचार्यों की शिक्षाएं और वचन कालातीत और हर युग केलिए प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहाकि जैन धर्म के सिद्धांत जैसे-पांच महाव्रत, अणुव्रत, त्रिरत्न और छह अनिवार्य पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहाकि शाश्वत शिक्षाओं को भी समय की जरूरतों के अनुसार आम लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए, आचार्य विद्यानंद मुनिराज ने अपना जीवन और कार्य इसी उद्देश्य केलिए समर्पित कर दिया। नरेंद्र मोदी ने कहाकि आचार्य विद्यानंद मुनिराज ने जैन धर्मग्रंथों को बोलचाल की भाषा में प्रस्तुत करने केलिए 'वचनमृत' अभियान शुरू किया, उन्होंने आध्यात्मिक अवधारणाओं को सरल और सुलभ तरीके से आम लोगों तक पहुंचाने केलिए भक्ति संगीत का भी उपयोग किया। आचार्य के एक भजन का उद्धरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि ऐसी रचनाएं ज्ञान के मोतियों से बनी आध्यात्मिक मालाएं हैं। उन्होंने कहाकि अमरता में यह सहज विश्वास और अनंत की ओर देखने का साहस ही भारतीय आध्यात्मिकता और संस्कृति को वास्तव में असाधारण बनाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि आचार्य विद्यानंद मुनिराज का शताब्दी वर्ष निरंतर प्रेरणा का वर्ष है। उन्होंने अपने साहित्यिक कार्यों और भक्ति रचनाओं के माध्यम से प्राचीन प्राकृत भाषा को पुनर्जीवित करने में आचार्य विद्यानंद की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने कहाकि प्राकृत भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है और भगवान महावीर की शिक्षाओं का मूल माध्यम है, जिसमें जैन आगमों की रचना की गई थी। उन्होंने कहाकि सांस्कृतिक उपेक्षा के कारण भाषा आम उपयोग से लुप्त होने लगी थी। उन्होंने याद दिलायाकि अक्टूबर 2024 में सरकार ने प्राकृत को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया, प्राचीन पांडुलिपियों को संरक्षित करने केलिए शुरू किए गए डिजिटलीकरण अभियान का उल्लेख किया, जिसमें बड़ी संख्या में जैन धर्मग्रंथ और आचार्यों से संबंधित ग्रंथ शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि सरकार उच्चशिक्षा में मातृभाषाओं के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। लाल किले से अपने संबोधन की पुष्टि करते हुए उन्होंने राष्ट्र को उपनिवेशवाद की मानसिकता से मुक्त करने तथा विकास और विरासत दोनों को एकसाथ आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया। उन्होंने याद दिलायाकि 2024 में सरकार ने भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण महोत्सव को रेखांकित करने केलिए बड़े पैमाने पर समारोह आयोजित किए, जो आचार्य विद्यानंद मुनिराज से प्रेरित थे और जिन्हें आचार्य प्रज्ञा सागर जैसे संतों का आशीर्वाद प्राप्त था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुष्टि कीकि वर्तमान कार्यक्रम की तरह ऐसी सभी पहलें सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास के मंत्र केसाथ जनभागीदारी की भावना से निर्देशित होंगी। प्रधानमंत्री ने कहाकि अमृतकाल केलिए भारत का दृष्टिकोण राष्ट्र की चेतना में गहराई से निहित है और इसके संतों के ज्ञान से समृद्ध है। गौरतलब हैकि आचार्य विद्यानंद महाराज का शताब्दी समारोह एक साल तक चलने वाले राष्ट्रीय श्रद्धांजलि समारोह की औपचारिक शुरुआत है, जिसका आयोजन भारत सरकार भगवान महावीर अहिंसा भारती ट्रस्ट के सहयोग से कर रही है। इसका उद्देश्य जैन धर्म के महान आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक आचार्य विद्यानंद महाराज की 100वीं जयंती मनाना है। समारोह में देशभर में सांस्कृतिक, साहित्यिक, शैक्षिक और आध्यात्मिक आयोजन होंगे, जिसका उद्देश्य उनके जीवन और विरासत का उत्सव मनाना और उनके संदेश को लोगों तक पहुंचाना है। इस अवसर पर आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज, श्रावन बेलागोला के मठाधीश स्वामी चारूकीर्ति, केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, सांसद नवीन जैन, भगवान महावीर अहिंसा भारती ट्रस्ट के प्रेसिडेंट प्रियंक जैन, सेक्रेटरी ममता जैन, ट्रस्टी पीयूष जैन, संत और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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