राजस्थान में 'सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान' अनूठी परियोजना
बांस के पौधे लगाने का केवीआईसी ने बनाया है विश्व रिकॉर्डस्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Monday 5 July 2021 01:08:59 PM
उदयपुर। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मरुस्थलीकरण को कम करने और आजीविका प्रदान करने केलिए राजस्थान के उदयपुर जिले के निकलमांडावा के आदिवासी गांव में बहुउद्देश्यीय ग्रामीण उद्योग सहायता के तहत 'सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान' (बोल्ड) नाम की एक अनूठी परियोजना शुरु की है, जो देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है। इसके लिए विशेष रूपसे असम से लाए गए बांस की विशेष प्रजातियों-बंबुसा टुल्डा और बंबुसा पॉलीमोर्फा के 5,000 पौधों को ग्राम पंचायत की 25 बीघा (लगभग 16 एकड़) खाली शुष्क भूमि पर लगाया गया है। केवीआईसी ने इस तरह एक स्थान पर एक ही दिन में सर्वाधिक संख्या में बांस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया है।
परियोजना बोल्ड, जो शुष्क व अर्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में बांस आधारित हरित पट्टी बनाने का प्रयास करती है, देश में भूमि अपरदन को कम करने व मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के अनुरूप है। यह आयोजन खादी ग्रामोद्योग आयोग के 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में खादी बांस महोत्सव का हिस्सा है। खादी ग्रामोद्योग प्राधिकरण इस साल अगस्त तक अहमदाबाद के धोलेरा गांव और लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरु करने वाला है। देशभर में 21 अगस्त से पहले कुल 15,000 बांस के पौधे लगाए जाएंगे। खादी ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने इस अवसर पर कहा है कि इन तीन स्थान पर बांस उगाने से भूमि क्षरण दर को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही सतत विकास और खाद्य सुरक्षा में भी सहायता मिलेगी।
सांसद अर्जुनलाल मीणा ने कहा कि उदयपुर में बांस पौधारोपण कार्यक्रम से इस क्षेत्र में स्वरोज़गार बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि इस तरह की परियोजनाओं से क्षेत्र में बड़ी संख्या में महिलाओं और बेरोज़गार युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़कर लाभ होगा। अर्जुनलाल मीणा ने कहा कि केवीआईसी ने हरित पट्टियां विकसित करने केलिए विवेकपूर्ण तरीके से बांस को चुना है, क्योंकि बांस बहुत तेजी से बढ़ते हैं और लगभग तीन साल की अवधि में उन्हें काटा जा सकता है। उन्होंने कहा कि बांस को पानी के संरक्षण और भूमि की सतह से पानी के वाष्पीकरण को कम करने केलिए भी जाना जाता है, जो शुष्क और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण विशेषता है।