स्वतंत्र आवाज़
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'भारतीय स्वाधीनता का उल्लेखनीय अध्याय'

स्वतंत्रता आंदोलन पर पर्यटन मंत्रालय की वेबिनार श्रृंखलाएं

वेबिनार में 1857 से आजादी का क्रमानुसार वृतांत प्रस्तुत

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 11 August 2020 03:42:46 PM

ministry of tourism on webinar series of  india freedom movement

नई दिल्ली। भारत के इतिहास में स्वाधीनता संग्राम एक उल्लेखनीय अध्याय है और अतीत की किसी भी उल्लेखनीय घटना से अधिक महत्वपूर्ण है। पर्यटन मंत्रालय ने देश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिवस को मनाने एवं सम्मानित करने के लिए देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला के एक हिस्से के रूपमें पांच वेबिनारों की एक श्रृंखला तैयार की है, जो सामूहिक रूपसे स्वतंत्रता आंदोलन को सन्निहित करने वाली विषयवस्तु का उल्लेख करती है और इसे तथा इसके प्रवर्तकों को महत्व देती है, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में उल्लेखनीय भागीदारी निभाई थी। पर्यटन मंत्रालय ने '1857 की यादें-स्वतंत्रता के लिए एक प्रस्तावना' शीर्षक से वेबिनार आयोजित किया। स्वतंत्रता दिवस विषयवस्तु वाली वेबिनारों की श्रृंखला में पहला यह तथा देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला का 45वां वेबिनार है। वेबिनार के माध्यम से भारतीय सेना के बहादुर जवानों को सैल्यूट करना और भारत को एक सुरक्षित रखने में उनकी अदम्य भावना, वीरता तथा बलिदान का गर्व के साथ स्मरण करना है।
देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत भारत की समृद्ध विविधता प्रदर्शित करने का प्रयास है और यह निरंतर वर्चुअल प्लेटफार्म के जरिए एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को विस्तारित कर रहा है। इंडिया सिटी वाक्स एंड इंडिया विद लोकल्स के सीईओ निधि बंसल एवं रिसर्चर तथा स्टोरी टेलर डॉ सौमी राय ने वेबिनार प्रस्तुत किया और पर्यटन मंत्रालय में अपर महानिदेशक रुपिंदर बरार ने इसका संचालन किया। वेबिनार में भारतीय स्वतंत्रता की गाथा तथा 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता युद्ध और उसके बाद 1947 में संपूर्ण आजादी मिलने तक की घटनाओं के क्रम का वर्चुअल रूपसे वृतांत प्रस्तुत किया गया। प्रस्तुतकर्ताओं ने उन धरोहरों एवं भवनों को रेखांकित किया, जिन्हें विद्रोह का खामियाजा भुगतना पड़ा या जो इसके परिणामस्वरूप अस्तित्व में आए। दिल्ली, कानपुर, मेरठ से लेकर देशभर के कई अन्य शहरों तक प्रस्तुतकर्ताओं ने दर्शकों को आंदोलनकारियों के बहादुरी, बलिदान एवं वीरता की कहानियां प्रदर्शित कीं।
वेबिनार प्रस्तुतकर्ताओं ने उन कारणों का उल्लेख किया, जिसकी वजह से भारतीय स्वतंत्रता के विद्रोह की ज्वालाएं फूट पड़ीं जैसे-दयनीय सामाजिक आर्थिक स्थितियां, भूमि एवं राजस्व प्रशासन की समस्याएं, अर्थव्यवस्था का विनाश, प्रशासन में भारतीयों की निम्न स्थिति, डॉक्टरीन ऑफ लैप्स, बहादुरशाह जफर के साथ दुर्व्यवहार, अवध को अपने कब्जे में करना, पक्षपातपूर्ण पुलिस एवं न्यायपालिका तथा भारतीय सिपाहियों के साथ भेदभाव। वेबिनार में जानकारी दी गई कि मार्च 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी में काम कर रहे एक आर्मी सर्जन डॉ गिल्बर्ट हैडो ने ब्रिटेन में रह रही अपनी बहन को 1857 में चल रहे एक विचित्र आंदोलन का उल्लेख करते हुए लिखा था-‘वर्तमान में पूरे भारत में एक सर्वाधिक रहस्यपूर्ण मामला चल रहा है, ऐसा लगता है कि किसी को भी यह पता नहीं है कि इसका अर्थ क्या है। यह भी ज्ञात नहीं है कि कहां से इसकी शुरूआत हुई, किसके द्वारा शुरू किया गया और इसका उद्देश्य क्या है, क्या इसका संबंध किसी धार्मिक समारोह से हो सकता है और क्या इसका संबंध किसी गुप्त समाज से है। भारतीय समाचार पत्र ऐसी अटकलों से भरे हुए हैं कि इसका क्या अर्थ हो सकता है। इसे चपाती आंदोलन कहा जा रहा है।’
चपाती आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ तक हिला दिया। ब्रितानियों ने भारत को अपेक्षाकृत कम लोगों की संख्या के साथ नियंत्रित किया और 250 मिलियन लोगों की एक बड़ी आबादी को पराजित कर दिया, इसलिए वे इस तथ्य से पूरी तरह अवगत थे कि किसी भी गंभीर विद्रोह की स्थिति में उनकी संख्या कितनी कम है। प्रस्तुतकर्ताओं ने बताया कि ब्रिटिश सेना में एक भारतीय सिपाही मंगल पांडे, जो 1857 में सिपाही विद्रोह या भारत की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के पीछे के प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे की भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने 29 मार्च 1857 के दोपहर की घटना का वर्णन किया जब बैरकपुर में तात्कालिक रूपसे तैनात 34वीं बंगाल नेटिव इंफैट्री के एक अधिकारी लेफ्टिनेंट बौघ को सूचना दी गई कि उसकी रेजीमेंट के कई जवान उत्तेजित स्थिति में हैं। प्रस्तुतकर्ताओं ने बताया कि सिपाही मंगल पांडे एक लोडेड मस्कट के साथ पैरेड ग्राउंड से रेजीमेंट के गार्ड रूम के सामने आ रहा है और दूसरे सिपाहियों को विद्रोह के लिए भड़का रहा है और धमकी दे रहा है कि जो भी पहला यूरोपीय व्यक्ति उसके सामने आएगा, उसे वह गोलियों से उड़ा देगा। दो ब्रितानी सिपाहियों पर हमला करने के कारण मंगल पांडे को 20 वर्ष की उम्र में 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई।
वेबिनार में मेरठ में सैनिक विद्रोह भड़कने के बाद विद्रोह की घटनाओं तथा किस प्रकार विद्रोही तेजी से दिल्ली पहुंच गए, जहां 81 वर्षीय बुजुर्ग मुगल शासक, बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया गया, जिसका क्रमवार वर्णन किया गया। शीघ्र ही विद्रोहियों ने उत्तर पश्चिम प्रांतों तथा अवध के एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया। प्रस्तुतकर्ताओं ने 1857 के प्रथम स्वाधीनता युद्ध से जुड़े कुछ कम ज्ञात तथ्यों एवं हस्तियों पर भी रोशनी डाली। फरीदाबाद के बल्लभगढ़ के नरेश राजा नाहर सिंह ने ब्रितानी सेनाओं से दिल्ली की सीमाओं की रक्षा की तथा 120 दिन तक दिल्ली को आजाद रखा। स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाइयों में 1857 के विद्रोह या भारत की स्वाधीनता की पहली लड़ाई में आरंभ में हुई बदली की सराय की लड़ाई। कानपुर पर कब्जा, बिबिघेर नरसंहार जब भारत के पूर्वी हिस्से से ब्रितानी शासन के खिलाफ हिंसक प्रतिरोध शीघ्र ही उत्तर दिशा की ओर बढ़ रहा था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली के रिज में एक सैन्य ठिकाना बनाया तथा रिइंफोर्समेंट्स की सहायता से 1857 के जुलाई मध्य तक कानपुर पर फिरसे अग्रेजों ने कब्जा कर लिया तथा सितंबर के आखिर तक दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1857 की शेष बची हुई अवधि तथा 1858 के अधिकतर समय का इस्तेमाल झांसी, लखनऊ एवं विशेष रूपसे अवध के देहाती क्षेत्रों में विद्रोह को कुचलने में किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली के उत्तरी क्षेत्र में दिल्ली के रिज में सैन्य ठिकाना बनाया और दिल्ली को घेरने की कोशिश शुरू हो गई, घेराबंदी लगभग 1 जुलाई से 21 सितंबर तक चली। कई सप्ताह तक ऐसा प्रतीत हुआ कि बीमारियां, थकावट एवं दिल्ली के विद्रोहियों द्वारा लगातार छापेमारी के कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों को वापस हटने को मजबूर होना पड़ेगा, लेकिन पंजाब में विद्रोह को दबा दिया गया जिसके कारण जॉन निकोलसन के तहत ब्रितानी, सिख एवं पख्तून सैनिकों के पंजाब मूवेबल टुकड़ी को 14 अगस्त को रिज पर ब्रितानी सैनिकों की सहायता करने का अवसर मिल गया। व्याकुलता से प्रतीक्षा कर रही ब्रितानी सेना को मिली इस अतिरिक्त मद से घेराबंदी की मजबूती बढ़ गई, उन्होंने दीवारों में और उनकी बंदूकों ने दीवारों में दरारें पैदा करते हुए विद्रोहियों के तोपखाने को शांत कर दिया, 14 सितंबर को दरारों एवं कश्मीरी गेट के जरिये शहर में घुसने की कोशिश की गई।
ब्रितानी हमलावरों ने शहर के भीतर उपस्थिति बना ली लेकिन उन्हें जॉन निकोलसन सहित सेना की भारी बर्बादी झेलनी पड़ी। एक सप्ताह की स्ट्रीट फाइटिंग के बाद ब्रिटिश लाल किले तक पहुंच गए। उन्होंने बहादुर शाह जफर पर कई प्रकार के आरोप लगाते हुए उन्हें अंग्रेजों के शासन वाले बर्मा (अब म्यांमार में) के रंगून में देश निकाला दे दिया। प्रस्तुतकर्ताओं ने स्वतंत्रता की पहली लड़ाई से संबंधित विभिन्न स्थानों एवं स्थलों की सूची बनाई और 1857 की आजादी की पहली लड़ाई के लोकप्रिय चरण का अनुभव साझा किया जैसे-बैरकपुर कैंटोनमेंट क्षेत्र मंगल पांडे सेनोटैफ एवं पार्क के लिए विख्यात, ग्वालियर का सुंदर किला जहां रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना के विरूद्ध लड़ते हुए शरण मांगी थी रानी लक्ष्मीबाई का समाधि स्थल। रानी लक्ष्मीबाई जो मणिकर्णिका के नाम से भी विख्यात हैं की शादी झांसी के महाराजा से हुई थी। झांसी का किला, झांसी कैंटोनमेंट सीमेट्री।
लखनऊ रेसीडेंसी कॉम्पलैक्स, ला माटिनियरी कॉलेज, जनरल हैवलॉक का मकबरा, आलमबाग पैलेस/ कोठी अलामारी, आलमबाग, सिकंदर बाग और महल, दिलखुश बाग और महल। कानपुर कैंटोनमेंट क्षेत्र में ऑल सेंट्स मेमोरियल चर्च, नाना राव पार्क (बिनिघर नरसंहार का पूर्व स्थल), सती चैरा घाट। आगरा का किला, आगरा कालेज लाइब्रेरी सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक है। मेरठ केंट जॉन चर्च, ब्रिटिश सीमेट्री, पैरेड ग्राउंड आदि। सत्ता का केंद्र दिल्ली के दो चरण हैं-कश्मीरी गेट और नार्दन रिज चरण। नार्दन रिज चरण-वाइस रीगल लौज 1902 में बनाया गया, फ्लैगस्टॉफ पावर, खूनी झील, हिंदू राव हाउस को अब अस्पताल म्यूटिनी मेमोरियल में बदल दिया गया है। कश्मीरी गेट चरण-कश्मीरी गेट, सेंट जेम्स चर्च, निकोलसन सीमेट्री, हथियार के भंडारण में उपयोग करने के लिए एक मजबूत भवन ब्रिटिश मैगजीन, टेलीग्राफ मेमोरियल, खूनी दरवाजा।
सन् 1857 के विद्रोह से संबंधित कई संग्रहालय हैं, जो बहादुरी और संघर्ष को प्रदर्शित करते हैं, इनमें 1857 पर संग्रहालय, लाल किला, आजादी के दीवाने संग्रहालय, शहीद स्मारक एवं गवर्नमेंट फ्रीडम स्ट्रगल म्यूजियम आदि शामिल हैं। रुपिंदर बरार ने वेबिनार में पर्यटन मंत्रालय की अतुल्य भारत टूरिस्ट फैसिलिटेटर सर्टिफिकेट प्रोग्राम की चर्चा की, जो गंतव्य, उत्पादों एवं कहानी के चरणों के बारे में जानकारी के साथ नागरिकों को रूपांतरित एवं प्रोत्साहित करने के लिए एक सक्षमकर्ता का काम भी करेगा। भारत के स्वाधीनता आंदोलन की कहानी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज के उल्लेखनीय योगदान का उल्लेख किए बिना नहीं कही जा सकती। भारत का सैन्य इतिहास बहुत आकर्षक है, जिनमें जैसलमेर का वार म्यूजियम, नई दिल्ली का एयर फोर्स म्यूजियम, गोवा का नैवल एवियेशन म्यूजियम, अंडमान एवं निकोबार का समुद्र नैवल मैरीन म्यूजियम शामिल हैं। ये म्यूजियम पिछले कई वर्ष से भारतीय सेना के हथियारों, वाहनों एवं विमानों को प्रदर्शित करते हैं।

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