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ऋण वसूली व्यवस्था मजबूत हुई-वित्तमंत्री

राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण का हो रहा विस्तार

संसद में वर्ष 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत की

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Thursday 4 July 2019 01:33:43 PM

finance minister nirmala sitharaman

नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज संसद में 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 के प्रभावी होने से ऋण वसूली में हाल की सफलता पर राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण तथा अपीली न्यायाधिकरण को मजबूत बनाने का प्रस्ताव रखा। निर्मला सीतारमण ने कहा कि दिवाला और दिवालिएपन के लिए प्रणालीबद्ध तरीके से व्यवस्था मजबूत बनाई जा रही है और फंसे हुए कर्जों की वसूली हो रही है। उन्होंने कहा कि 31 मार्च 2019 तक कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया से 94 मामलों का समाधान हुआ है और परिणामस्वरूप 1,73,359 करोड़ रुपये के दावों का निपटारा किया गया है तथा 28 फरवरी 2019 तक 2.84 लाख रुपये की कुल राशि के 6,079 मामले दिवाला तथा दिवालियापन संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत सुनवाई से पहले वापस लिए गए हैं।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार बैंकों को पहले के गैर-निष्पादित खातों से 50,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि आरबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को गैर-मानक से उन्नत बनाकर मानक संपत्ति कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यह सभी कदम आईबीसी प्रक्रिया में प्रवेश से पहले व्यापक ऋण देने की प्रणाली के लिए व्यवहार परिवर्तन दिखाते हैं। दिवाला तथा दिवालियापन संहिता को गैर-निष्पादक कॉरपोरेट कर्जदारों से कारगर ढंग से निपटने के लिए हाल के समय का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार मानते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि एनसीएलटी के आधारभूत ढांचे को बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि ऋण वसूली का समाधान समयबद्ध रूपसे किया जा सके। उन्होंने समीक्षा में कहा कि सरकार विलंब की समस्या के समाधान के उपायों पर गंभीरता से विचार कर रही है और सरकार ने एनसीएलटी के लिए न्यायिक तथा तकनीकी सदस्यों के 6 अतिरिक्त पदों का सृजन किया है। उन्होंने बताया कि एनसीएलटी के सर्किट पीठों की स्थापना पर विचार किया जा रहा है।
निर्मला सीतारमण ने कहा कि वर्तमान में प्रमुख शहरों में 20 पीठों में एनसीएलटी के 32 न्यायिक सदस्य तथा 17 तकनीकी सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि आईबीसी से ऋणदाता, कर्जदार, प्रवर्तक तथा कर्जदाता के बीच सांस्कृतिक बदलाव की शुरुआत हुई है, आईबीसी पारित होने से पहले ऋणदाता लोक अदालत, ऋण वसूली न्यायाधिकरण तथा एसएआरएफएईएसआई अधिनियम का सहारा लेते थे, पहले की व्यवस्था से 23 प्रतिशत की कम औसत वसूली हुई थी, जबकि आईबीसी व्यवस्था के अंतर्गत ऋण वसूली में 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। निर्मला सीतारमण ने कहा कि आईबीसी पारित किए जाने के बाद से भारत की दिवाला समाधान 2014 की रैंकिंग 134 से सुधरकर 2019 में रैंकिंग 108 हो गई है, भारत की रैंकिंग 134 कई वर्ष तक बनी रही थी। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष भारत को सर्वाधिक सुधार वाले क्षेत्राधिकार के लिए वैश्विक पुनर्संरचना समीक्षा पुरस्कार मिला था। निर्मला सीतारमण ने कहा कि जनवरी 2018 में आईएमएफ विश्व बैंक के अध्ययन में कहा गया कि भारत नई अत्याधुनिक दिवालियापन व्यवस्था की दिशा में बढ़ रहा है।
युवा उद्यमियों, पेशेवर लोगों तथा विद्वानों के हाथ में आईबीसी के भविष्य को देखते हुए वित्तमंत्री ने कहा कि सरकार एक उचित ढांचा बनाने की प्रक्रिया में है, इसमें कार्यक्रमों तथा संस्थानों को शामिल किया जाएगा। भारत के दिवाला तथा दिवालियापन बोर्ड ने ग्रेजुएट इंसॉलवेंसी प्रोग्राम लांच करने की घोषणा की है, यह अपने तरह का पहला कार्यक्रम उन लोगों के लिए है, जो दिवाला कार्यक्रम को अपने कैरियर के विषय के रूपमें तथा मूल्य श्रृंखला की भूमिका के रूपमें लेते हैं। निर्मला सीतारमण ने कहा कि अधिकतर सूक्ष्म अर्थव्यवस्थाओं ने सीमापार दिवाला कानून को विकसित किया है, इसे देखते हुए भारत ने सीमापार दिवाला पर यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल कानून अपनाने के लिए कदम उठाना शुरु कर दिया है और आईबीबीआई ने भी समूह तथा व्यक्तिगत दिवाला मामलों पर दो अलग-अलग कार्यसमूह बनाए हैं।

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