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इंक़लाबी कवि रमाशंकर 'विद्रोही' की जयंती

रमाशंकर 'विद्रोही' की जयंती पर संगोष्ठी और कविता पाठ

जन संस्कृति मंच दरभंगा के तत्वावधान में हुआ कार्यक्रम

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 17 December 2022 03:03:12 PM

seminar and poetry reading on the birth anniversary of ramashankar 'vidrohee'

दरभंगा (बिहार)। संवेदनात्मक ज्ञान और ज्ञानात्मक संवेदना के लोकधर्मी कवि और फ़ासीवाद विरोधी कार्यकर्ता और कवि रमाशंकर विद्रोही की जयंती पर जन संस्कृति मंच दरभंगा के तत्वावधान में संगोष्ठी हुई। इस अवसर पर जन संस्कृति मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ सुरेंद्र सुमन ने कहाकि हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर केबाद वाचिक परंपरा के सबसे बड़े कवि हैं रमाशंकर विद्रोही। उन्होंने कहाकि कबीर और विद्रोही दोनों का उद्देश्य फक़त कविताई नहीं था, ये दोनों सीधे इंकलाब चाहते थे, कविता तो उन्हें फोकट में मिली थी, उनके लिए कविता बस जरिया थी। डॉ सुरेंद्र सुमन ने कहाकि जब कभी अपवंचितों का राष्ट्र बनेगा रमाशंकर विद्रोही उसके पहले महाकवि होंगे। मजाज़ साहब के स्मृति दिवस पर भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने मज़ाज और विद्रोही के मिजाज को एकसा बतलाया और कहाकि दोनों को शोषण आधारित व्यवस्था के खिलाफ़ लड़ने वाले सहयोद्धा के रूपमें याद किया जाना चाहिए।
प्रोफेसर विनय शंकर ने रमाशंकर विद्रोही पर अपने श्रद्धाभाव प्रकट करते हुए कहाकि उनका जीवन एक क्रांति है, वे आम अवाम के स्वप्नों केलिए युद्धरत कवि थे, वास्तव में वे एक कवि रूपमें और फ़ासीवाद के खिलाफ योद्धा थे। प्रसिद्ध चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सूरज ने रमाशंकर विद्रोही की आजके दौर में प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहाकि रमाशंकर विद्रोही समाजवाद लाना चाहते थे, व्यवस्था बदलनी चाहते थे, क्योंकि आजभी जो सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था है, उसमें निचले पायदान का व्यक्ति शोषण का शिकार है, इसके ध्वंस केलिए जब-जब जनांदोलन उभरेंगे, रमाशंकर विद्रोही आगे-आगे मशाल लेकर चलते प्रतीत होंगे। संगोष्ठी के अध्यक्ष और जन संस्कृति मंच दरभंगा के जिलाध्यक्ष डॉ रामबाबू आर्य ने उन्हें मनुष्यता का बड़ा कवि बताया और कहाकि रमाशंकर विद्रोही ने फ़ासीवाद की आहट को बहुत पहले चिन्हित कर दिया था।
डॉ रामबाबू आर्य ने कहाकि साम्प्रदायिक कॉरपोरेट फ़ासीवाद से धूमिल है, वेणुगोपाल, आलोक धन्वा, गोरख पांडेय की तरह रमाशंकर विद्रोही अपने जीवन में संघर्षरत ही रहे हैं, उनकी कविता शोषण दमन पर आधारित व्यवस्था की समाप्ति का घोषणापत्र साबित होगा। कवि रमाशंकर विद्रोही जयंती पर मंजू कुमार सोरेन, डॉ दुर्गानंद यादव, मयंक कुमार, रूपक कुमार, पवन कुमार शर्मा आदि ने भी भाव विचार प्रकट किए। संगोष्ठी में किशुन कुमार, निरंजन भारती, राजीव कुमार आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय है। संगोष्ठी का संचालन जन संस्कृति मंच के जिला सचिव समीर ने किया। संगोष्ठी का समापन सामूहिक कविता पाठ एवं फ़ासीवाद विरोधी अभियान को बुलंद करने के संकल्प से हुआ।

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