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'सर्वोच्च न्यायालय की और भी पीठों की जरूरत'

उपराष्ट्रपति के कार्यकाल पर गृहमंत्री की पुस्तक का विमोचन

मीडिया निष्पक्ष चौकीदार और संदेशवाहक बने-उपराष्ट्रपति

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Monday 12 August 2019 04:46:04 PM

venkaiah naidu addressing the gathering at an event to release the book

चेन्नई। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने न्यायिक प्रणाली को लोगों के निकट लाने के लिए चेन्नई सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ स्थापित करने की आवश्यकता जताई है। विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग पीठों के लिए कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की अनुशंसा के साथ उपराष्ट्रपति ने कहा कि मुझे लगता है कि यह सही समय है, जब हमारे पास अधिक पीठ होने चाहिए, क्योंकि भारत में वादियों को लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ती है और बड़ी मात्रा में धन और ऊर्जा व्यय करना पड़ता है। वेंकैया नायडू ने चेन्नई में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की लिस्निंग, लर्निंग एंड लीडिंग शीर्षक से अपने दो साल के कार्यकाल की क्रमवार घटनाओं से संबंधित पुस्तक के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि केवल विधायिका और कार्यपालिका को ही लोगों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनना जरूरी नहीं है, बल्कि न्यायिक प्रक्रियाओं को भी लोगों के अधिक अनुकूल होना चाहिए। सांसदों और विधायकों के खिलाफ चुनाव याचिका और आपराधिक मामलों पर समयबद्ध तरीके से निर्णय करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि यह पाया गया है कि विधायकों के पूरे कार्यकाल के दौरान भी चुनाव याचिका और आपराधिक मामलों पर फैसले नहीं किए गए थे, जो चुनाव कानूनों के उद्देश्यों के ही विरुद्ध हैं। वेंकैया नायडू ने अन्य दलों में शामिल होने वाले सदस्यों को अयोग्य ठहराए जाने के मामलों में विधानमंडल के अध्यक्षों द्वारा शीघ्र निर्णय लेने का आह्वान करते हुए कहा कि दलबदल विरोधी कानून को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सभापति या अध्यक्ष की निष्क्रियता के कारण विधायक न केवल नई पार्टी में बने रहते हैं, बल्कि कुछ मामलों में मंत्री भी बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि न्याय के इस तरह के उपहास को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए और ऐसे मामलों में देरी से न्यायिक और विधायी निकायों में जनता का विश्वास खत्म हो जाएगा।
उपराष्ट्रपति ने ऐसे मामलों को छह महीने या एक साल के उचित समय में फैसला करने के लिए विशेष न्यायिक न्यायाधिकरणों का सुझाव देते हुए संविधान की 10वीं अनुसूची की फिर से समीक्षा करने, दलबदल विरोधी प्रावधानों को सीमित करने का आह्वान किया, ताकि ऐसे मामलों का समयबद्ध निपटान सुनिश्चित किया जा सके और खामियों को दूर करके इसे अधिक प्रभावी बनाया जा सके। उपराष्ट्रपति ने हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा विभिन्न न्यायालयों में बड़ी संख्या में मामलों के लंबित होने के बारे में दिए गए आंकड़ों का उल्लेख किया और कहा कि स्पष्ट रूपसे उच्चतम न्यायालय में लगभग 60,000 मामले और उच्च न्यायालयों में लगभग 44 लाख मामले लंबित हैं, हमें इस बड़ी संख्या को कम करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि न्याय में देरी का अर्थ न्याय से वंचित करना है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कानून लागू करने वाली मशीनरी और न्याय करने वाली संरचना सुलभ, विश्वसनीय, न्यायसंगत और पारदर्शी रूपसे समान होनी चाहिए। उपराष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि के सरकार के निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि कई दीवानी और आपराधिक मामले 25 वर्ष से लंबित हैं और हम चाहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय में दो प्रभाग हों-एक संवैधानिक मामलों से निपटने के लिए और दूसरा अपीलों के लिए। उन्होंने कहा कि दो प्रभागों के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक मुद्दों के लिए अधिक समय देने और इसे आम लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने में सक्षम बनाएगा। उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया को भी संशोधित किया जाना चाहिए और एक विश्वसनीय, पारदर्शी प्रक्रिया शुरु की जानी चाहिए, जोकि विवादों से दूर रहेगी। उपराष्ट्रपति ने सांसदों से दुष्क्रियाशील व्यवहार से बचने का आग्रह करते हुए राजनीतिक दलों से विधायकों और अन्य निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता अपनाने का आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मीडिया जोकि चौथा स्तम्भ है, सार्वजनिक चर्चा प्रवचन को आकार देने, सरकार की जवाबदेही बढ़ाने और दुनियाभर की विभिन्न घटनाओं पर समाचार और विचार प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र और जीवंत मीडिया लोकतंत्र को जीवित रखता है और सूचना, शिक्षा, मनोरंजन और व्यावहारिक विश्लेषण के माध्यम से लोगों के जीवन की गुणवत्ता को समृद्ध कर सकता है। कार्यक्रम में तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पाडी के पलानीस्वामी, तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम, विख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन, इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ के कस्तूरीरंगन, वरिष्ठ पत्रकार और तुगलक के संपादक एस गुरुमूर्ति, अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के अध्यक्ष डॉ प्रताप सी रेड्डी, फिल्मों के अभिनेता रजनीकांत, भारत के शिक्षा संवर्धन सोसायटी के अध्यक्ष एवं वीआईटी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ जी विश्वनाथन, अखिल भारतीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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