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चीन के पास भारत से दोस्ती का खास अवसर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन की पहली महत्वपूर्ण यात्रा

विश्व समुदाय की इस घटनाक्रम में गहरी दिलचस्पी

Thursday 26 April 2018 06:01:24 PM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

pm narendra modi

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27-28 अप्रैल 2018 को वूहान चीन की यात्रा करेंगे। आज चीन रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री ने एक वक्‍तव्‍य दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि मैं चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अनौपचारिक शिखर बैठक के लिए वूहान चीन जा रहा हूं, जहां चीन के राष्‍ट्रपति शी और मैं द्विपक्षीय और वैश्विक महत्‍व के अनेक मुद्दों और आतंकवाद पर भी विचारों का आदान-प्रदान करेंगे। उन्होंने कहा कि हम राष्‍ट्रीय विकास के लिए हमारी दूरदर्शिता और प्राथमिकताओं, खासतौर से वर्तमान और भविष्‍य की अंतर्राष्‍ट्रीय स्थिति के बारे में बातचीत करेंगे। उन्होंने कहा कि हम रणनीतिक और दीर्घकालिक संदर्भ में भारत-चीन के संबंधों की प्रगति की भी समीक्षा करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह चीन यात्रा कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है, जिसके नतीजे विश्व समुदाय की सोच को प्रभावित करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा ऐसे अवसर पर हो रही है, जब पिछले साल भारत और चीन में डोकलाम को लेकर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं और भारत की उच्चतम कूटनीति के कारण चीन को डोकलाम से हटना पड़ा। इस घटनाक्रम से विश्व समुदाय में भारत की कूटनीति की धाक जमी और विघटनकारी और आतंकवाद का संरक्षणदाता पाकिस्तान जैसा देश मुंहकी खाया। विश्व समुदाय ने माना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह बहुत बड़ी सफलता है, जिन्होंने धैर्य का पालन करते हुए चीन जैसे देश को डोकलाम से पीछे हटने को न केवल मजबूर किया, अपितु एशिया में भारत शांति प्रयासों का संवाहक बना। चीन के अख़बारों ने भी माना कि भारत ने उसपर जबरदस्त कूटनीतिक बढ़त हासिल की है। चीन अभीतक अपनी डोकलाम खीज से बाहर नहीं निकल पाया है और वह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उपद्रव मचा रहा है, इसके बावजूद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा आयोजित होना विश्व समुदाय के लिए कौतुह‌ल का विषय है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन के आजीवन राष्ट्रपति हो गए हैं, यह चीन की राजनीति में एक बड़ा बदलाव है। चीन हमेशा भारत के लिए कुछ न कुछ समस्या खड़ी करता रहा है, लेकिन यह एक ऐसा दौर आया है, जब भारत ने चीन को अपना महत्व समझाया है, जिसमें यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि चीन के भारत से जो व्यापारिक रिश्ते हैं, वे हर हाल में बने रहने चाहिएं, अन्यथा चीन की अर्थव्यवस्‍था को धराशाई होने में देर नहीं लगेगी। यह विश्लेषण चीन के भी व्यापारिक समुदाय की प्राथमिकता पर है, क्योंकि भारत एक बहुत बड़ा बाज़ार है, जहां चीन का सामान वहां के घर-घर में है। जिस समय चीन डोकलाम में हेकड़ी दिखा रहा था, उस समय वहां क‌ा कार्पोरेट चीन पर दबाव बनाए हुए था कि चीन सैनिक तौरपर भारत से ज्यादा शक्तिशाली माना जा सकता है, लेकिन व्यापार के मामले में चीन भारत का मुकाबला नहीं कर पाएगा। यह बात हर एक चीनी कार्पोरेट घराने को मालूम थी कि भारत को खो देने का मतलब यह है कि चीन ने चीन को खो दिया है।
भारत और चीन दोनों ही शक्तिशाली देश हैं और इस क्षेत्र में तेजी से अपनी नाभिकीय शक्ति बढ़ा रहे हैं। अब वह ज़माना नहीं है, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय भूखी-प्यासी भारतीय सेना की चीन से लाठी डंडों से लड़ाई हुई थी, जिसमें भारत को पराजय मिली, लेकिन आज भारत जल, थल और नाभिकीय युद्ध के लिए बहुत सक्षम हो गया है। चीन भारत की शक्ति को मान तो रहा है, लेकिन उसने इन दो-तीन वर्ष में पाकिस्तान से अपनी मित्रता बढ़ाई है और वह इस कोशिश में लगा है कि पाकिस्तान को सैन्य हथियारों से मजबूत कर उसकी भारत से भिड़ंत होती रहे। चीन की तिब्बत बहुत बड़ी कमजोरी है, जिसमें वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को सीधे समर्थन करने से कतराता है, वह तिब्बत के सामने मजबूर है, अन्यथा चीन अपनी दादागिरी से कभी बाज नहीं आता। चीन के सामने अमरीका भी एक बड़ी चुनौती है, जो चीन को एशिया का लीडर बनने से रोकती है। इन वर्षों में भारत और अमरीका बहुत करीब आए हैं और चीन के आसपास के देशों का भी भारत को जबरदस्त समर्थन मिला हुआ है। ये सारी स्थितियां चीन को मजबूर करती हैं कि उसकी भारत से मित्रता ही एक मात्र उपाय है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा में ये सारे विषय ही दाएं-बाएं रहेंगे। इस यात्रा पर विश्व समुदाय की बहुत पैनी नज़र रहेगी, जिसमें देखना है कि क्या नया सामने आता है, जिसपर भारत-चीन साथ चलेंगे।

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