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नौसेना कर रही है ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग

विशेषज्ञ टीम ने इसका विस्तृत विश्लेषण एवं आकलन किया

डाइविंग स्कूल के लेफ्टिनेंट कमांडर मयंक शर्मा का डिजाइन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 20 May 2021 02:12:49 PM

navy is doing oxygen recycling

नई दिल्ली। कोविड-19 की दूसरी लहर के बीच भारतीय नौसेना की दक्षिणी नौसेना कमान के डाइविंग स्कूल ने मौजूदा ऑक्सीजन (O2) की कमी को दूर करने के लिए एक 'ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम' की अवधारणा और डिजाइन का काम किया है। डाइविंग स्कूल के पास इस क्षेत्र में विशेषज्ञता है, क्योंकि स्कूल के उपयोग किए जाने वाले कुछ डाइविंग सेट्स में इस आधारभूत सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। इससे पहले केवड़िया में संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री के समक्ष इसी आईडिया वाले एक छोटे प्रयोगशाला मॉडल का प्रदर्शन किया जा चुका है। यह ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम मौजूदा ऑक्सीजन सिलेंडरों के जीवनकाल का दो से चार बार तक विस्तार करने के लिहाज से डिज़ाइन किया गया है, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मरीज के अंदर ग्रहण की गई ऑक्सीजन का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही वास्तव में फेफड़ों में अवशोषित है, शेष हिस्सा शरीर में पैदा की जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) समेत वातावरण में बाहर निकाल दिया जाता है।
उच्छ्वास की गई ऑक्सीजन का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते इसमें शामिल कार्बन डाईऑक्साइड को हटा दिया जाए, यह स्थिति हासिल करने के लिए ओआरएस से रोगी के मौजूदा ऑक्सीजन मास्क में एक दूसरा पाइप जोड़ा जाता है, जो कम दबाव वाली मोटर का उपयोग करके रोगी की निकाली गए हवा को अलग करता है। मास्क का इनलेट पाइप (O2 के लिए) एवं मास्क का आउटलेट पाइप (बाहर निकाली हवा के लिए) दोनों पाइप्स को हर समय गैसों का सकारात्मक दबाव एवं एक दिशात्मक प्रवाह बनाए रखने के लिए नॉन रिटर्न वाल्व के साथ फिट किया जाता है, ताकि रोगी की डाईल्यूशन हाईपोक्सिया के प्रति सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। निकाली गई गैसें मुख्य रूपसे कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन के तत्पश्चात एक बैक्टीरियल वायरल फिल्टर एंड हीट एंड मॉइस्चर एक्सचेंज फ़िल्टर में डाला जाता है, जिससे किसी भी प्रकार की वायरसजनित अशुद्धियां अवशोषित की जा सकें। वायरल फिल्ट्रेशन के बाद ये गैसें एक हाइग्रेड कार्बन डाईऑक्साइड स्क्रबर से एक हाइ एफिशिएंसी पर्टीक्युलेट फ़िल्टर से होकर गुजरती हैं, जो कार्बन डाईऑक्साइड एवं अन्य कणों को अवशोषित कर शुद्ध ऑक्सीजन को प्रवाहित होने देता है।
स्क्रबर से यह समृद्ध ऑक्सीजन रोगी के फेस मास्क से जुड़े श्वसन पाइप में डाली जाती है, जो इस प्रकार रोगी में ऑक्सीजन की प्रवाह गति में बढ़ोतरी कर देती है तथा सिलिंडर से आनेवाली ऑक्सीजन के इस्तेमाल में कमी आती है। ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम में हवा के प्रवाह को कार्बन डाईऑक्साइड स्क्रबर के आगे फिट किए गए मेडिकल ग्रेड पंप से बनाए रखा जाता है, जो सकारात्मक प्रवाह सुनिश्चित करता है, इससे रोगी को सांस लेने में आरामदायक सुविधा होती है। डिजिटल फ्लो मीटर ऑक्सीजन की प्रवाह दर की निगरानी करते हैं और ओआरएस में स्वचालित कटऑफ के साथ इनलाइन ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड सेंसर भी लगे होते हैं, जो ऑक्सीजन का स्तर सामान्य से घटने या कार्बन डाईऑक्साइड स्तर बढ़ने पर ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम को बंद कर देते हैं। हालांकि इस कटऑफ से सिलेंडर से आ रही ऑक्सीजन का सामान्य प्रवाह प्रभावित नहीं होता है, जिससे रोगी आसानी से सांस ले सकता है, भले ही ओआरएस कटऑफ के कारण या किसी अन्य कारण से बंद हो जाए।
ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम का पहला पूरी तरह से कार्यशील प्रोटोटाइप 22 अप्रैल 2021 को बनाया गया था और यह आईएसओ प्रमाणित फर्मों के पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में दक्षिणी नौसेना कमान में इनहाउस परीक्षणों और डिजाइन सुधारों की एक श्रृंखला से गुजरा। इसके बाद नीति आयोग के निर्देशों पर तिरुवनंतपुरम में श्रीचित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी के विशेषज्ञों की टीम ने इस प्रणाली का विस्तृत विश्लेषण एवं आकलन किया। एससीटीआईएमएसटी में विशेषज्ञों की टीम ने ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग प्रणाली के डिजाइन को संगत पाया तथा साथ ही कुछ अतिरिक्त संशोधनों का सुझाव भी दिया। एससीटीआईएमएसटी के निदेशक ने ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम को एक प्रारंभिक मूल्यांकन प्रमाणपत्र प्रदान किया था। अब मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार क्लीनिकल परीक्षणों के लिए इस प्रणाली को आगे बढ़ाया जा रहा है, जिसके शीघ्र पूरा होने की उम्मीद है, जिसके बाद यह डिजाइन देश में बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए स्वतंत्र रूपसे उपलब्ध होगी। ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम में उपयोग की जाने वाले सभी सामग्री देश में स्वदेशी और स्वतंत्र रूपसे उपलब्ध है।
ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम प्रोटोटाइप की कुल लागत ऑक्सीजन के पुनर्चक्रण के कारण एक दिन में 3,000 रुपये की अनुमानित बचत के कारण 10,000 रुपये रह गई है। देश में मौजूदा ऑक्सीजन क्षमता को बढ़ाने के अलावा ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम प्रणाली का उपयोग पर्वतारोहियों या सैनिकों द्वारा उच्च ऊंचाई पर, एचएडीआर संचालन और जहाज पर नौसैनिक जहाजों एवं पनडुब्बियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ऑक्सीजन सिलेंडरों का जीवनकाल बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम को डाइविंग स्कूल के लेफ्टिनेंट कमांडर मयंक शर्मा ने डिजाइन किया है। ऑक्सीजन रीसाइक्लिंग सिस्टम की डिजाइन का पेटेंट हो चुका है तथा इस आशय का आवेदन भारतीय नौसेना 13 मई 2021 को सौंप चुकी है।

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