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उत्तराखंड के राजभवन में मशरूम की खेती

मशरूम की खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा-राज्यपाल

मशरूम है स्वास्‍थ्य से लेकर रोज़गार तक फायदेमंद

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 6 February 2017 05:21:13 AM

mushroom farming in the raj bhavan of uttarakhand

देहरादून। उत्तराखंड के राजभवन उद्यान में मशरूम का उत्पादन शुरू हो चुका है। इस साल 10 जनवरी को बोए गए बटन मशरूम की पहली फसल 26वें दिन उपयोग हेतु तैयार हो गई, जिसे आज राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया गया। राज्यपाल ने इस अवसर पर कहा कि उत्तराखंड में मशरूम की खेती कोई नया प्रयोग नहीं है, बल्कि पोषक तत्वों से भरपूर मशरूम के घरेलू उपयोग और व्यावसायिक खेती के प्रति जनसामान्य को जागरूक करने की दृष्टि से राजभवन ने यह पहल की है। राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड में जिन क्षेत्रों में महिलाएं और बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं, उन क्षेत्रों में इसके उत्पादन पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि मशरूम प्रोटीन, रेशा, फॉलिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट तथा अमीनो एसिड का बहुत ही अच्छा स्रोत है।
राज्यपाल ने राजभवन उद्यान अधिकारियों को निर्देशित किया है कि आगामी 4-5 मार्च को राजभवन में आयोजित होने जा रहे वार्षिक कार्यक्रम वसंतोत्सव पुष्प प्रदर्शनी में राजभवन के इस प्रयास को विशेष रूप से प्रदर्शित किया जाए, ताकि इसके प्रति घरेलू व व्यावसायिक खेती के लिए लोगों को आकर्षित किया जा सके। राज्यपाल ने कहा कि विश्व में सर्वाधिक उत्पादित और सर्वाधिक लोकप्रिय मशरूम की खेती हर तरह से फायदेमंद है। राज्यपाल ने उद्यान विभाग से अपेक्षा की है कि मशरूम के घरेलू व व्यावसायिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए इसके उत्पादन के लिए आवश्यक प्रशिक्षण तथा राज्य सरकार से मिलने वाली सब्सिडी आदि के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु उत्तराखंड के सभी जिला उद्यान कार्यालयों को सक्रिय किया जाए।
व्यावसायिक तौर पर मशरूम उत्पादन आम आदमी के लिए आमदनी का बेहतर जरिया बन सकता है, क्योंकि इसकी मांग बाजार में हर मौसम में बनी रहती है और इसकी विभिन्न प्रजातियों से पूरे साल फसल ली जा सकती है। इसे घर के अंदर सामान्य सी कोठरी में भी आसानी से उगाया जा सकता है, इसलिए जंगली जानवरों से भी यह पूरी तरह सुरक्षित है। इसके एक बार बीज (खुम्भ) डालने के बाद 55 से 60 दिन तक 4-5 दिन के अंतराल में 4-5 फसलें लगातार ली जा सकती हैं। इस शाकाहारी खाद्य की खेती में उत्पादन लागत बहुत कम है, इसके उत्पादन के लिए बहुत ज्यादा तकनीकी ज्ञान या बड़े भूखंड की भी जरूरत नहीं होती है, घरेलू उपयोग के लिए इसे आसानी से नियमित रूप से उत्पादित किया जा सकता है।

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