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अंगदान किसी के लिए वरदान तो किसी का शोषण !

डॉ एच आर केशवमूर्ति

Sunday 18 August 2013 11:12:39 AM

organ donations

कोलकाता। भारत में मानव अंगों का व्यापार निर्धनता से ग्रस्त लोगों के शोषण को बढ़ावा दे रहा है, जिससे समाज में एक और गंभीर मानव अपराध की एक खतरनाक प्रवृति जन्‍म ले रही है, जिसका तुरंत उपाय ढूंढना जरूरी हो गया है। दरअसल अंगदान और प्रत्यारोपण हर वर्ष हजारों लोगों को जीवन का दूसरा अवसर प्रदान करता है। अमीर और गरीब के बीच भारी असमानता, मानव अंगों की मांग और देश में प्रौद्योगिकी की उपलब्धता जैसे कारणों से मानव अंगों का व्यापार जहां कुछ लोगों को धन प्रदान करता है, वहीं अन्य लोगों को राहत पहुंचाता है। अंगों का व्यापार निश्चित रूप से निर्धनता से ग्रस्त लोगों के शोषण को बढ़ावा देता है, क्योंकि वे तात्कालिक वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए धन के लालच में अंग बेचते हैं।
मानव अंगों को एक वस्तु बना देना सामाजिक, नैतिक और शिष्टाचार संबंधी मूल्यों का ह्रास है और कोई भी सभ्य समाज अंगों की जरूरतें पूरी करने के लिए इस व्यापार को एक विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अंगोंकी बिक्री के बारे में एक बयान में स्पष्ट रूप से कहा है कि ऐसा करना मानवाधिकारों संबंधी सार्वभौम घोषणा और स्वयं के संविधान का उल्लंघन है। ‘मानव शरीर और इसके अंगों को व्यापारिक लेन-देन का विषय नहीं बनाया जा सकता। तदनुरूप, अंगों के लिए धन प्राप्त करने या अदा करने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।’ हर वर्ष हजारों भारतीय अंग प्रत्यारोपण का इंतजार करते-करते मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
इसका कारण यह है कि प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे लोगों की संख्या और दान किए गए अंगों की संख्या के बीच भारी अंतराल है। हर वर्ष करीब 2.1 लाख भारतीयों को गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है लेकिन केवल 3 से 4 हजार के बीच गुर्दा प्रत्यारोपण हो पाते हैं। हृदय प्रत्यारोपण के मामले में भी स्थिति भिन्न नहीं है। भारत में हर वर्ष करीब 4 से 5 हजार रोगियों को हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन देश में अभी तक केवल 100 हृदय प्रत्यारोपण किए गए हैं। राष्ट्रीय अंधता नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीबी) की 2012-13 की रिपोर्ट के अनुसार 2012-13 में केवल 4,417 कार्निया उपलब्ध थे, जबकि हर वर्ष करीब 80 हजार से एक लाख के बीच लोगों को इनकी आवश्यकता होती है। भारत में फिलहाल 120 प्रत्यारोपण केंद्र हैं, जिनमें हर वर्ष करीब 3,500 से 4,000 के बीच गुर्दे प्रत्यारोपित हो पाते हैं। इन केंद्रों में से चार ऐसे केंद्र हैं, जिनमें हर वर्ष 150 से 200 के बीच यकृत (लीवर) प्रत्यारोपित किए जाते हैं। इनमें से कुछ केंद्रों में कभी कभार हृदय प्रत्यारोपण भी किए जाते हैं।
देश में डॉक्टर का मिलना बड़ा मुश्किल है। मौजूदा स्थिति के लिए जागरुकता का अभाव और समुचित बुनियादी सुविधाएं न होने को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। भारत में प्रशासनिक बाधाओं और रुढ़िवादी मानसिकता का दुष्प्रभाव भी अंग प्रत्यारोपण पर पड़ता है। अंग प्रत्यारोपण के बारे में अनेक भ्रांतियां व्याप्त हैं, जिन्हें दूर करना इस समस्या के समाधान के लिए जरूरी है। अधिकतर भारतीय आमतौर पर यह मानते हैं कि अंग छेदन धर्म और प्रकृति के खिलाफ है। कुछ लोगों को यह संदेह रहता है कि अंगों को प्राप्त करने के लिए अस्पताल का स्टाफ उनकी जान बचाने के लिए कठिन परिश्रम नहीं करेगा। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अंगों के लालच में उन्हें वास्तविक रूप में मरने से पहले मृत घोषित किया जा सकता है। अंग दान के लिए पंजीकरण की केंद्रीकृत व्यवस्था का अभाव होना भी अंग दान करने या दानकर्ताओं के बारे में आंकड़े प्राप्त करने के मार्ग में एक बड़ी रुकावट है। यदि रोगियों के संबंधियों को ब्रेन डेथ के बारे में जानकारी न हो, तो ब्रेन डेथ यानी मस्तिष्क मृत्यु को प्रमाणित करना भी एक समस्या है, जो अंग प्रत्यारोपण में एक रुकावट बनती है।
भारत में गुर्दा प्रत्यारोपण की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी और उसके बाद से एशियाई उप महाद्वीप में भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख राष्ट्र है। पिछले 4 दशकों में अंग प्रत्यारोपण के विकास के इतिहास से पता चलता है कि वाणिज्यिकता अंग दान का अभिन्न अंग बन गई है। सरकार ने मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (टीएचओ) 1994 में पारित किया था, जिसमें किसी गैर-संबंधी के अंग प्रत्यारोपण को गैर कानूनी और मस्तिष्क मृत्यु स्वीकार करने के साथ मृतक व्यक्ति के अंग दान को कानूनी विकल्प बनाया गया था। यह उम्मीद की जा रही थी कि मस्तिष्क मृत्यु वाले रोगियों के पूल का इस्तेमाल करकेगैर-संबंधी प्रत्यारोपण क्रियाकलापों में कमी आएगी, किंतु, टीएचओ अधिनियम के बावजूद न तो अंगों का व्यापार रुका और न ही अंगों की कमी पूरी करने के लिए मृतक दानकर्ताओं की संख्या में इजाफा हुआ है। मस्तिष्क मृत्यु की धारणा को स्पष्ट करने को प्रोत्साहित या प्रसारित नहीं किया गया। ज्यादातर गैर-संबंधी प्रत्यारोपण वर्तमान में प्राधिकार समिति की मंजूरी के साथ किए जा रहे हैं।
भारत सरकार ने 2011 में ‘मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम’ पारित किया, जिसमें मानव अंग दान के लिए प्रक्रिया को आसान बनाने के प्रावधान किए गए। इन प्रावधानों में रिट्रिवल सेंटर और मृतक दान कर्ताओं से अंगों के रिट्रिवल के लिए उनका पंजीकरण, स्वैप डोनेशन और गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती संभावित दानकर्ता के निकट संबंधियों से सहमति प्राप्त करने के लिए प्रत्यारोपण समन्वयकर्ता (यदि उपलब्ध हो) की सलाह से अस्पताल के पंजीकृत मेडिकल प्रेक्टिशनर द्वारा अनिवार्य जांच करना और यदि उनकी सहमति हो तो अंगों के रिट्रिवल के लिए रिट्रिवल सेंटर को सूचित करना शामिल है।
भारत में मृतक अंगदान की संभावनाएं व्यापक हैं, क्योंकि देश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या बहुत अधिक है। इस पूल का इस्तेमाल अभी किया जाना है। किसी भी समय प्रत्येक बड़े शहर में विभिन्न गहन चिकित्सा यूनिटों में 8 से 10 व्यक्तियों की मृत्यु ब्रेन डेथ के रूप में होती है। सभी अस्पतालों में होने वाली कुल मौतों में से करीब 4-6 प्रतिशत मस्तिष्क मृत्यु के रूप में सामने आती हैं। भारत में सड़क दुर्घटनाओं में करीब 1.4 लाख मृत्यु हर वर्ष होती हैं। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के एक अध्ययन के अनुसार इनमें से करीब 65 प्रतिशत मौतें सिर में गंभीर चोट लगने से होती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि करीब 90 हजार रोगियों की मृत्यु मस्तिष्क आघात से होती है।
ऐसा नहीं है कि लोग अंगदान नहीं करना चाहते, लेकिन अस्पतालों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे ब्रेन डेथ की पहचान करके उन्हें प्रमाणित किया जा सके। इसके अलावा मस्तिष्क मृत्यु वाले व्यक्ति के संबंधियों को कोई यह अधिकार प्रदान नहीं करता कि वे उसके अंग दान कर सकें। बच्चे से लेकर बड़े व्यक्ति तक कोई भी अंग दान कर सकता है। मस्तिष्क मृत्यु से अंग दान, जिसे शव संबंधी अंग दान भी कहा जाता है, के मामले भारत में अपेक्षाकृत बहुत कम हैं। स्पेन में प्रति दस लाख आबादी पर 35 व्यक्ति अंग दान करते हैं, ब्रिटेन में ऐसे व्यक्तियों की संख्या 27, अमरीका में 26 और आस्ट्रेलिया में 11 है, जबकि भारत में प्रति दस लाख आबादी पर मात्र 0.16 व्यक्ति अंग दान करते हैं। अंग दान की जानकारी के बारे में सबसे पहला कदम डोनर कार्ड पर हस्ताक्षर करना है। डोनर कार्ड कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है लेकिन किसी व्यक्ति की दान करने की इच्छा की अभिव्यक्ति है। डोनर कार्ड पर हस्ताक्षर करके अंग दान की इच्छा प्रकट करने के बाद यह भी महत्वपूर्ण है कि अपने निर्णय की जानकारी परिवार या मित्रों को अवश्य दी जाए। ऐसा करना इसलिए जरूरी है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों की सहमति अंग दान के लिए ली जाती है।
परिवार की स्वीकृति मिलने के बाद ही अंग दान के निर्णय को अंतिम समझा जाता है। महत्वपूर्ण अंग जैसे हृदय, लीवर (यकृत), लंग्स (फेफड़े), किडनी (गुर्दे), पेनक्रियाज़ (पाचन ग्रंथि), हार्ट वाल्व्स, स्किन, हड्डियां, लिगामेंट्स (अस्थिबंध), टेंडंस (शिराएं), वेन्स (पसलियां) आदि का दान मस्तिष्क मृत्यु के मामले में किया जा सकता है। मानव अंगों और टिशुओं के प्रत्यारोपण के बारे में प्रस्तावित नियम, 2013 के अंतर्गत अनेक ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनसे अंग दान के मार्ग की बाधाएं दूर हो सकती हैं। इन नियमों में यह ध्यान भी रखा गया है कि उनका दुरुपयोग न होने पाए और उनकी गलत व्याख्या न की जा सके। तदनुरूप सरकार नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन के अंतर्गत एक ऑन-लाइन नेटवर्क की स्थापना करने जा रही है। ऑन-लाइन सेवा दानकर्ताओं से सीधे संपर्क करने की व्यवस्था करेगी। यह संगठन स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है, जो देश में सभी अंग प्रत्यारोपणों के मामलों में नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा। देश में सभी अस्पताल चाहे वे प्राइवेट हों या सरकारी या जिला स्तरीय स्वास्थ्य केंद्र, इस नेटवर्क का हिस्सा होंगे। नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन के अलावा देशभर में चार क्षेत्रीय केंद्र भी स्थापित किए जाएंगे।
एक उम्मीद की जा रही है कि अंगों के पुनःसृजन में सहायक औषधियों की बदौलत वैज्ञानिक और इंजीनियर रोगी के स्वयं के सेल्स स्टेम सेल्स या खराब अंग से निकाले गए सेल्स से तैयार अंगों का भी इस्तेमाल कर सकेंगे। इससे न केवल महत्वपूर्ण अंगों की उपलब्धता में सुधार होगा, बल्कि इस समस्या से जुड़े सामाजिक-नैतिक मुद्दों का समाधान करने में भी मदद मिलेगी।

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