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शीघ्र न्याय से मानवीय गरिमा सुनिश्चित करें-बिरला

'मानवीय गरिमा संविधान की आत्मा: 21वीं शताब्दी में न्यायिक प्रतिबिंब'

लोकसभा अध्यक्ष का डॉ एलएम सिंघवी के स्मृति व्याख्यान में संबोधन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 4 September 2025 12:23:07 PM

lok sabha speaker in dr lm singhvi memorial lecture

नई दिल्ली। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने डॉ अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में आयोजित 11वें डॉ एलएम सिंघवी स्मृति व्याख्यान में ‘संविधान की आत्मा के रूपमें मानव गरिमा : 21वीं शताब्दी में न्यायिक प्रतिबिंब’ विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने त्वरित न्याय के माध्यम से मानवीय गरिमा की सर्वोच्चता को बनाए रखने केलिए विभिन्न हितधारकों केबीच संवाद की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने उल्लेख कियाकि कानूनी और प्रशासनिक प्रणालियों में अनेक बाधाएं न्याय में देरी का कारण बनती हैं। उन्होंने नागरिकों और विचारकों का सभी केलिए शीघ्र और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने के महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार करने का आह्वान किया। उन्होंने कहाकि हमें सामूहिक संवाद और चिंतन से यह सुनिश्चित करना हैकि न्याय सहज, सुलभ और त्वरित रूपमें प्रत्येक नागरिक तक पहुंचे, यही प्रयास हमें एक समावेशी, प्रगतिशील और समतामूलक समाज की ओर ले जाएगा और विकसित भारत के निर्माण में हमारी सामूहिक भूमिका तय करेगा।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस बातपर प्रकाश डालाकि बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में भारतीय संविधान निर्माताओं ने संविधान में मानवता, समानता, न्याय, सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों और स्वतंत्रता के सिद्धांतों को गहराई से समाहित किया। उन्होंने कहाकि संवैधानिक अनुच्छेदों और संविधान सभा की बहसों में मानवीय गरिमा पर विशेष जोर दिया गया है। ओम बिरला ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका केबीच आपसी सहयोग को महत्वपूर्ण बताया, ताकि वे अपनी कार्यप्रणाली को बेहतर बना सकें और सभी केलिए त्वरित न्याय सुनिश्चित कर सकें। उन्होंने उन विद्वानों की प्रशंसा की, जिन्होंने भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत बनाने में अपनी विशेषज्ञता का अनुकरणीय योगदान दिया है। न्यायिक सुधारों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहाकि भारत लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप अपने कानूनी ढांचे को निरंतर विकसित कर रहा है एवं मानवीय गरिमा और न्याय की रक्षा से जुड़ी चुनौतियां अभीभी बनी हुई हैं, इनके लिए व्यापक सुधारों और समाधानों की आवश्यकता है।
स्पीकर ओम बिरला ने पूर्व सांसद, विधिवेत्ता, राजनयिक और विद्वान डॉ एलएम सिंघवी के जीवन और विरासत पर प्रकाश डालते हुए उनकी यात्रा को प्रेरणादायक बताया। उन्होंने कहाकि देश में डॉ एलएम सिंघवी ने एक संवैधानिक विशेषज्ञ, विधिवेत्ता, लेखक और कवि के रूपमें महत्वपूर्ण योगदान दिया है और एक ऐसी विरासत छोड़ी, जो आजभी प्रेरणादायी है। ओम बिरला ने न केवल भारत पर, बल्कि दुनियाभर के संविधान निर्माण में डॉ एलएम सिंघवी के गहन प्रभाव को याद किया। उन्होंने भारतीय लोकतंत्र, संस्कृति, ज्ञान, व्यापार और विदेशों में भारतीयों के सम्मान को बढ़ावा देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला। ओम बिरला ने कहाकि डॉ एलएम सिंघवी का बहुमुखी व्यक्तित्व भारतीयों को नवाचार करने, रचनात्मक रूपसे सोचने और राष्ट्र केलिए सार्थक योगदान देने केलिए प्रेरित करता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई डॉ एलएम सिंघवी स्मृति व्याख्यान में मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहाकि न्यायपालिका ने मानवीय गरिमा को संविधान की आत्मा माना है, इसे सर्वव्यापी सिद्धांत माना है, जो संविधान की मूल भावना और दर्शन को रेखांकित करता है। उन्होंने कहाकि संविधान निर्माताओं केलिए मानवीय गरिमा एक केंद्रीय चिंता का विषय थी, यह एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की परिकल्पना से गहराई से जुड़ी हुई है। बीआर गवई ने कहाकि मानवीय गरिमा के विमर्श का एक महत्वपूर्ण पहलू यह हैकि यह व्यक्ति की स्वायत्तता विशेष रूपसे अपने जीवन केबारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता से आंतरिक रूपसे जुड़ा हुआ है, इसमें चुनाव, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय की स्वतंत्रता शामिल है। उन्होंने कहाकि मानव गरिमा लोकतंत्र के मूल मूल्य के रूपमें उभरती है, जो लोकतांत्रिक समाज के कामकाज केलिए केंद्रीय है। डॉ एलएम सिंघवी स्मृति व्याख्यान में भाषाविद्, राजनयिक, वकील, सांसद, लेखक, सर्वधर्म प्रतिपादक और सांस्कृतिक विद्वान, विचारक, वक्ता, उपस्थित थे।

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